200 हेक्टेयर में हैं पान के बरेजे
पत्रिका सर्वे के अनुसार जिले में करीब 200 हेक्टेयर में पान के बरेजे में ख्ेाती हैं। महाराजपुर में 35 हेक्टेयर, गढ़ीमलहरा में करीब 60 हेक्टेयर और पिपट व पनागर में 100 से 120 हेक्टेयर एरिया में पान की खेती हैं। जिसमें सालाना करीब 15 करोड़ के पान का व्यापार होता हैं। मौजूदा रिपोर्ट के अनुसार पान का एक भी बरेजा ऐसा नहीं बचा हैं, जहां फसल का नुकसान नहीं हैं। किसान 90 प्रतिशत तक नुकसान बता रहे हैं। ऐसे में 10 करोड़ तक का नुकसान पान की फसल में बताया जा रहा हैं।
पहली बार हुआ इतना बड़ा नुकसान, व्यापार भी ठप
पान व्यापारी किशन चौरसिया का कहना है कि अपने जीवन में पहली बार इतना बड़ा नुकसान देखने मिला हैं। जिससे पान का व्यापार भी ठप पड़ा हैं। उनके अनुसार पहले जो 100 से अधिक बंडल निकलते थे, अब 10 पर आंकड़ा आ गया हैं। जितना पान बच रहा हैं वह भी दाग वाला निकल रहा हैं। इससे भाव भी नहीं मिल पा रहा हैं। व्यापारी इस पान को फरवरी तक स्टॉक करके रखता था। इस समय रेट भी अच्छा मिलता था, लेकिन इस बार पूरा व्यापार ठप हो गया हैं।
न्यूनतम पारा और ओलावृष्टि बनी वजह
दिसंबर और जनवरी में बार-बार निचले स्तर तक पहुंचे पारा और बारिश के साथ हुई ओलावृष्टि पान के लिए रोग का काम कर गई। यहीं वजह थी कि एक-दो झटके में ही पान की पूरी फसल बर्बाद हो गई। किसान हरिश्चंद्र चौरसिया गढ़ीमलहरा, छन्नूलाल चौरसिया पनागर, दिनेश चौरसिया पिपट के अनुसार एक हेक्टेयर में 80 से 100 पारी की खेती होती हैं। जिसमें डंठल लगे पान के बीज से खेती की जाती हैं। ओलावृष्टि और पारा गिरने से कारण बेल की बेल खराब हो गई। जिससे पान के पत्तों का झडऩा शुरू हो गया और पूरी फसल खराब हो गई। हालांकि, तालाब किनारे वाली फसलों में ५० प्रतिशत तक नुकसान बताया जा रहा हैं।
पारी के हिसाब से होगा नुकसान का आंकलन
दो साल से पान की फसल का नुकसान हो रहा हैं। पिछली बार भी सर्वे हुआ था, लेकिन मुआवजा किसानों तक नहीं पहुंचा था। इस बार कमलनाथ सरकार द्वारा पान किसानों को मुआवजा देने की बात कही हैं। जिस पर तहसील महाराज द्वारा सर्वे कराना शुरू कर दिया गया हैं। जानकारी के अनुसार सर्वे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होगा। जिसमें कुल पारी को निकालने के बाद खराब हुई पारी की संख्या को निकालकर फसल नुकसानी का प्रतिशत निकाला जाएगा। इसके आधार पर मुआवजा तय होगा। शासन द्वारा 25 से 35 प्रतिशत तक नुकसान पर 30 हजार रुपए हेक्टेयर और 35 से ऊपर पर 40 हजार रुपए हेक्टेयर देने की घोषणा की हैं।
न बदला तरीका न सरकार ने ली सुध
पत्रिका ने जब किसानों के बीच जाकर जायजा लिया तो दो और तस्वीर सामने आई। पहली पान की परंपरागत खेती। जो किसान शुरू से लेकर अब तक उसी पद्धति पर करते चले आ रहे हैं। इस संवेदनशील खेती के लिए हर मौसम नुकसानदायी होता हैं। बावजूद इसके अब तक इस पर कोई अनुसंधान नहीं हो सका। गढ़ीमलहरा और बाद में नौगांव में पान अनुसंधान केंद्र तो खोला गया, लेकिन वह भी नाम के लिए ही साबित हुआ। खेती के तरीके को अगर उन्नत किया जाए तो इस तरह की नुकसानी में कमी आ सकती हैं। दूसरी वजह सरकार द्वारा पान किसानों की सुध नहीं लेना हैं। शिवराज सरकार ने पान विकास निगम लाने की घोषणा की थी, लेकिन सरकार जाते ही वह भी खटाई में चली गई। अब कमलनाथ सरकार से पान किसानों को उम्मीद हैं। अलग निगम होने से किसानों के रजिस्ट्रेशन से लेकर, फसल का अनुपात भी रजिस्टर्ड होगा। जिससे किसानों को अनुदान और मदद मिलने की संभावनाएं भी बढ़ जाएंगी।
वर्जन
पान की फसल में बेजा नुकसान हुआ हैं। शासन प्रशासन को चाहिए कि तत्काल मुआवजा की व्यवस्था किसानों को की जाए। जिससे वह नया बीज लेकर फिर से फसल लगा सकें। सर्वे की धीमी गति से भी किसान परेशान हैं।
चितरंजन चौरसिया, प्रगतिशील किसान
आनंद जैन, तहसीलदार महाराजपुर