इलाज संभव, नि:शुल्क मिलती है दवाएं फिर भी हर साल 80 मौत
एक टीबी अस्पताल और 17 डॉट सेंटर, लेकिन दवा समय पर न मिलने से बढ़ रहे मल्टी ड्रग रसिस्टेंड(एमडीआर) के मरीज
सरकारी आंकड़ों से ज्यादा होती है मौतें, लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में नहीं होती दर्ज
60 से 70 किलोमीटर दूर से कफ की डब्बी हाथ में लेकर छतरपुर आते हैं मरीज

छतरपुर। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में टीबी के कुल मरीजों की संख्या की एक तिहाई संख्या भारत में है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने टीबी मुक्त भारत के लिए 2025 तक का लक्ष्य रखा है। लेकिन सरकारी तंत्र की लापरवाही के कारण टीबी मुक्त होने के बजाए टीबी के मामले गंभीर होते जा रहे हैं। जिले में टीबी के मरीजों की न केवल संख्या बढ़ रही है,बल्कि समय से दवा न मिलने से मल्टी ड्रस रसिस्टेंड (एमडीआर) मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है। पचाल साल पहले टीबी का इलाज खोज लिया गया था, लेकिन जिले में आज भी सरकारी आंकड़ों में हर साल 80 से 100 लोग टीबी के कारण मौत के मुंह में समा रहे हैं। जबकि जिले की सच्चाई ये है कि लगभग 5 गुना मरीज टीबी के कारण जान गंवा रहे हैं। जिले के टीबी यूनिट लवकुशनगर, नौगांव और बिजावर में होने के बावजूद इन इलाकों में मरीज और मौत के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं।
समय से नहीं मिलता उपचार
टीबी से पीडि़त मरीज को उपचार नहीं मिल पा रहा है। टीबी अस्पताल हो या डॉट सेंटर, सभी जगह मरीजों को समय से दवा नहीं मिल पाती है। कभी मरीज को दवा के नाम पर तो कभी रजिस्ट्रेशन के नाम पर परेशान किया जाता है। अंतत मरीज परेशान होकर निजी अस्पताल जाने को मजबूर हैं। जहां, अनियमित उपचार मिलने से टीबी के ड्रग रसिस्टेंड मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। जिन मरीजों का फस्र्ट स्टेड में मात्र छह माह इलाज देकर ठीक किया जा सकता है, उन मरीजों को थोड़ी सी लालच के चलते कई वर्ष तक इलाज करते हैं, जिससे मरीज को ड्रग रसिस्टेंड हो जाता है। जिसके बाद हर दवा मरीज पर असर नहीं करती है। इसके अलावा ऐसे मरीजों के संपर्क में आने वाले भी ड्रग रसिस्टेंड टीबी के शिकार हो जाते हैं।
लवकुशनगर इलाके में ज्यादातर बंद रहते हैं डॉट सेंटर
जिले के सर्वाधिक टीबी प्रभावित इलाकों में शामिल लवकुशनगर में 6 डॉट सेंटर बनाए गए हैं। लेकिन इस इलाके के ज्यादातर डॉट सेंटर अक्सर बंद रहते हैं। लवकुशनगर मुख्यालय पर क्षेत्र के सभी डॉट सेंटर्स के प्रभारी दिलीप अहिरवार है, मरीज श्रीकेश प्रजापति ने बताया कि, सेंटर प्रभारी नौंगाव से अप-डाउन करते और सप्ताह में सिर्फ दो दिन ही आते हैं। जिससे मरीजों को दवा के लिए नौगांव व छतरपुर आना पड़ता है। गौरिहार निवासी अमित पटेल ने बताया कि, वे 2 दिन से दवा के लिए परेशान हैं। जब दवा नहीं मिली तो छतरपुर आए हैं। डॉ. महेन्द्र गुप्ता से मिलकर दवा दिलाए जाने की गुहार लगाई है। राजनगर इलाके के टिकरी निवासी राममिलन यादव ने बताया कि, वे पिछले 2 साल से परेशान है, दवा शुरु करने के लिए रुपए भी लिए गए, लेकिन समय से उपचार नहीं मिलने से ठीक नहीं हो पाए हैं। क भी भी दवाएं समय से नहीं मिल पाती हैं।
बड़ामलहरा में नहीं कर रहे जांच
बिजावर क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले बड़ामलहरा टीबी जांच सेंटर पर मरीजों की मल्टी ड्रग रसिस्टेंड जैसी जांच के लिए मरीज को हाथ में खकार की डब्बी लेकर छतरपुर भेजा जाता है। जबकि सैंपल को जांच के लिए मरीज के हाथ से नहीं भेजी जानी चाहिए, क्योंकि इससे रास्ते में संक्रमण फैलने का खतरा रहता है। नथुआ पटेल ने बताया कि, गरीब मरीज के लिए जांच सेंटर पर ही पहुंचना आर्थिक रुप मुश्किल होता है, उपर से उन्हें 50से 60 किलोमीटर दूर छतरपुर भेजा जाता है। मरीज के साथ कम से कम दो परिजन भी होते हैं। इस तरह से मरीज पर आर्थिक बोझ पड़ता है। जबकि शासन के नियम के मुताबिक मरीज को दवा और जांच के लिए कहीं भी भेजा नहीं जाना है। मरीज कूरा अहिरवार निवासी राजापुरवा ने बताया कि, उन्हें जांच के लिए छतरपुर भेजा गया था।
नौगांव में नहीं बैठते डॉक्टर
मध्यप्रदेश व उत्तप्रदेश के लगभग 50 जिलों के मरीज टीबी के इलाज के लिए नौगांव अस्पताल आते हैं। लेकिन यहां सरकारी व्यवस्था इतनी लचर और दलालों का नेटवर्क इतना तगड़ा है, कि मरीज सरकारी अस्पताल के बजाए डॉक्टरों के बंगलों पर चले जाते हैं। सरकारी अस्पताल में 6 डॉक्टर पदस्थ हैं, लेकिन ओपीडी में केवल दो या तीन डॉक्टर ही उपलब्ध रहते हैं। इसके अलावा डॉट्स की दवा पाने के लिए मरीजों को काफी परेशान होना पड़ता है। सुकवां निवासी मरीज लखन बरार ने बताया कि उन्हें दवा देने के लिए परेशान किया जाता है। ग्रामीण इलाके मरीजों को यहां से दवा नहीं मिलती है, ऐसा कहकर भगाया जाता है। मरीज सत्यप्रकाश लोधी, मातादीन ने बताया कि, निजी अस्पताओं और डॉक्टरों के दलाल अस्पताल के अंदर और बाहर सक्रिय रहते हैं, जो परेशान मरीज को डॉक्टरों के निजी क्लीनिक ले जाते हैं।
दो दिन आते हैं
टीबी सुपरबाइजर दिलीप अहिरवार को तीन जगह का चार्ज है। इसलिए लवकुशनगर में सप्ताह में केवल दो दिन ही आते हैं।
डॉ. सत्यप्रकाश शाक्यवार, बीएमओ,लवकुशनगर
दिखवाता हूं
जिले में 3 यूनिट है, जिनमें 3 एसटीएस और 3 एसटीएलएस हैं, जिनपर कार्यरत सुपरवाइजरों के पास दो से तीन जगह का चार्ज है। जांच, दवा और फॉलोअप की जिम्मेदारी है। जांच सैंपल मरीज को नहीं दिया जाना चाहिए. मुझे जानकारी मिली है, मैं दिखवाता हूं।
डॉ. व्हीएस वाजपेयी,सीएमएचओ
फैक्ट फाइल
वर्ष 2018
चिंहित मरीज-२६८०
ठीक हुए मरीज-1079
मौत - 80
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