शहर के देरी रोड पर रहने वाली नीलम चतुर्वेदी मूक प्राणियों के संरक्षण और गायों की सेवा के लिए लोगों के लिए मिशाल बन गई हैं। स्वास्थ्य विभाग में पदस्थ कृष्णदत्त चतुर्वेदी और सुधा चतुर्वेदी की तीन बेटियों में से दूसरे नंबर की नीलम तीन साल पहले संविदा शिक्षक वर्ग एक में अंग्रेजी शिक्षक की नौकरी करती थी। वे टीकमगढ़ से सटे ग्राम डारगुवां के सरकारी स्कूल में पढ़ाने जाती थी। इसी दौरान उनके साथ ऐसी घटना हुई कि उन्होंने नौकरी छोड़कर जानवरों की सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। नीलम ने दो साल पुरानी नौकरी से इस्तीफा देकर गायों की सेवा शुरू कर दीं। नीलम बताती हैं कि जिस गांव में वे पढ़ाने जाती थीं, वहां के लोग अपनी फसलों को जानवरों से बचाने के लिए उन्हें एक छोटे से कमरे में बंद करके भूखा-प्यासा रखते थे। एक छोटे से कमरे में 50 से 70 गायों को ठूंस-ठूंसकर भर देते थे। उनकी करुण पुकार सुनकर मन में अजीब सा लगा तो उन्होंने गायों को छोडऩा शुरू कर दिया। जब तक वे स्कूल में रहती तब तक एक भी गाय बंद नहीं रह पाती थी। इसके बाद उन्हें लगा कि इन जानवरों के प्रति इंसानों के अंदर प्रेम जगाना जरूरी है तो फिर जीवन का लक्ष्य बना लिया। नीलम ने अपने घर में ही आवारा घूमने वाली गायों को पालना शुरू कर दिया। घर के बाहर ही एक दर्जन गायों को रोज चारा, भूसा खिलाने और उनकी सेवा करना शुरू कर दिया। वे साल भर के लिए अपने घर पर भूसा खरीदकर रखती हैं। बछड़े हुए तो उनको घर के कमरे में हीटर लगाकर अपने साथ लिटाना और उनकी सेवा करना शुरू कर दिया। इसके बाद भूखी-प्यासी गायों को जा-जाकर चारा डालने और पानी पिलाने की सेवा में जुट गईं। पिछले साल उन्हेंने शहर में 100 से ज्यादा स्थानों पर सीमेंट की टंकियां रखवाकर गायों के लिए पानी का इंतजाम करवाया और लोगों को भी इस काम के लिए प्रेरित किया। इस साल भी उन्होंने 70 स्थानों पर सीमेंट की टंकियां रखवाई हैं। नीलम शहर की कॉलोनियों और मोहल्लों में जाकर लोगों को इस बात के लिए प्रेरित करती हैं कि वे सिर्फ गाय का दूध ही खरीदें ताकि ज्यादा से ज्यादा गायों का पालन हो। इसके अलावा घरों के बाहर गायों के लिए पानी की टंकी रखवाने और गाय को पालने के लिए भी वे प्रेरित कर रही हैं। एमए अंग्रेजी, एमएसडब्ल्यू और एलएलबी कर चुकी नीलम इन दिनों पशुओं के लिए शहर की गौचर भूमि मुक्त कराने के लिए काम कर रही हैं। इसके अलावा वे सड़कों पर आवारा घूमने वाले मवेशियों को गोद दिलवाने के लिए अभियान चला रही है। शहर के अलग-अलग क्षेत्रों में वे अब तक ३०० से ज्यादा मवेशियों को लोगों को गोद दिलवा चुकी हैं। घालय गांयों का इलाज करने के लिए वे अपनी स्कूटी में प्राथमिक इलाज के लिए मलम-पट्टी भी अपने साथ लेकर चलती हैं।