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एेसा समर्पण दिला सकता है इलाके को जलसंकट से निजात, इस काम में मिल रहा इनका साथ

locationछतरपुरPublished: Feb 22, 2018 12:20:11 pm

गौ सेवा, पर्यावरण और जल संरक्षण को बनाया जीवन का लक्ष्य

Dedication, water conservation, youth, organization, service

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छतरपुर। बुंदेलखंड के युवाओं में कुछ अलग करने की प्रतिस्पर्धा तेजी से बढ़ रही है। कोई कॅरियर की दिशा में कुछ अलग करना चाह रहे हैं तो कुछ सेवा को ही अपने जीवन का ध्ये बनाकर अपने आप को समर्पित कर बैठे हैं। ऐसे ही युवा शहर में चल रहे सेवा कार्यों को लेकर मिशाल बन गए हैं। कोई पर्यावरण और जल संरक्षण सहित कृषि के क्षे9 में काम कर रहा है तो कोई गौसेवा और मूक प्राणियों की खुशहाली के लिए समर्पित है। शहर के ऐसे ही दो युवाओं की कहानी है जो लोगों के लिए किसी प्रेरणा स्त्रोत से कम नहीं है।
घर-परिवार छोड़कर प्रकृति के लिए समर्पित हो गए डॉ. बालेंदु :
शहर के सटई रोड पर रहने वाले डॉ. बालेंदु शुक्ल ने १७ साल पहले अपना घर छोड़कर एक खेत को अपना ठिकाना बनाया और समाज व पर्यावरण के लिए जीवन समर्पित कर दिया। एमए अर्थशास्त्र से करने वाले बालेंदु पीएसपी की तैयारी कर रहे थे। नौकरी के बाद शादी और फिर परिवार बसाने की तैयारी थी, लेकिन उन दिनों बुंदेलखंड में चल रही सूखे के हालातों ने इनका ह्दय परिवर्तन ऐसा किया कि सीधे पानी बचाने, पेड़ लगाने और पशुओं को बचाने की मुहिम में जुट गए। पर्यावरण संरक्षण संघ नाम से संस्था बनाकर बालेंदु ने कलेक्ट्रेट छतरपुर में एक पार्क स्थापित किया। इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। जब घर वालों ने शादी के लिए दवाब बनाया तो घर छोड़ा और काली मंदिर के पीछे स्थित अपने खेत पर रहने लगे। जीवन भर शादी नहीं करने का व्रत लेकर इन्होंने अपना काम शुरू किया। बालेंदु ने बारिश का जल संरक्षण करने के लिए रेन वाटर और रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने का अभियान चलाया। उन्होंने खुद ही इस काम को सीखा और अब तक जिलेभर में 1500 से ज्यादा घरों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम फिट किए। छोटे जलाशयों में बोरी बंधान बनाए। इस बीच उन्हें लगने लगा कि पेड़ों को लगाना भी जरूरी है तो खेत पर ही नर्सरी तैयार करके निशुल्क पौधे बांटने लगे। गौशाला में दो दर्जन गांयों को रखकर आत्मनिर्भर गौशाला बना ली। इसमें गौ उत्पाद बनाने, सौर ऊर्जा संयंत्र से बिजली बनाने, गौबर गैस, जैविक खाद बनाने से लेकर आदर्श ग्राम्य जीवन के लिए जरूरी सभी गतिविधियों के सफल प्रयोग किए। इसके लिए बालेंदु शुल्क को मप्र शासन ने साल २००८ में शंकरचार्य सम्मान से नवाजा था। २०१६ में राष्ट्रीय स्वाभिमान अवार्ड भी इन्हें दिया गया। मप्र जैव विविधता वोर्ड ने इनकी गौशाला का आत्म निर्भर गौशाला की सूची में दर्ज कर 5 हजार रुपए का पुरस्कार दिया। इन दिनों बालेंदु अपनी गौशाला में एक दर्जन गायों को संरक्षित करने के साथ अपनी साढ़े तीन एकड़ की खेती में आर्गेनिक खेती करके किसानों के लिए एक आदर्श खेती का मॉडल तैयार करके काम कर रहे हैं। एक एकड़ में सब्जी और दो एकड़ में गेंहू-चना की खेती करके वे किसानों को अपने खेत पर बुलाकर प्रशिक्षण देते हैं।

मूक पशुओं की सेवा के लिए नौकरी छोड़कर हो गई समर्पित :
शहर के देरी रोड पर रहने वाली नीलम चतुर्वेदी मूक प्राणियों के संरक्षण और गायों की सेवा के लिए लोगों के लिए मिशाल बन गई हैं। स्वास्थ्य विभाग में पदस्थ कृष्णदत्त चतुर्वेदी और सुधा चतुर्वेदी की तीन बेटियों में से दूसरे नंबर की नीलम तीन साल पहले संविदा शिक्षक वर्ग एक में अंग्रेजी शिक्षक की नौकरी करती थी। वे टीकमगढ़ से सटे ग्राम डारगुवां के सरकारी स्कूल में पढ़ाने जाती थी। इसी दौरान उनके साथ ऐसी घटना हुई कि उन्होंने नौकरी छोड़कर जानवरों की सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। नीलम ने दो साल पुरानी नौकरी से इस्तीफा देकर गायों की सेवा शुरू कर दीं। नीलम बताती हैं कि जिस गांव में वे पढ़ाने जाती थीं, वहां के लोग अपनी फसलों को जानवरों से बचाने के लिए उन्हें एक छोटे से कमरे में बंद करके भूखा-प्यासा रखते थे। एक छोटे से कमरे में 50 से 70 गायों को ठूंस-ठूंसकर भर देते थे। उनकी करुण पुकार सुनकर मन में अजीब सा लगा तो उन्होंने गायों को छोडऩा शुरू कर दिया। जब तक वे स्कूल में रहती तब तक एक भी गाय बंद नहीं रह पाती थी। इसके बाद उन्हें लगा कि इन जानवरों के प्रति इंसानों के अंदर प्रेम जगाना जरूरी है तो फिर जीवन का लक्ष्य बना लिया। नीलम ने अपने घर में ही आवारा घूमने वाली गायों को पालना शुरू कर दिया। घर के बाहर ही एक दर्जन गायों को रोज चारा, भूसा खिलाने और उनकी सेवा करना शुरू कर दिया। वे साल भर के लिए अपने घर पर भूसा खरीदकर रखती हैं। बछड़े हुए तो उनको घर के कमरे में हीटर लगाकर अपने साथ लिटाना और उनकी सेवा करना शुरू कर दिया। इसके बाद भूखी-प्यासी गायों को जा-जाकर चारा डालने और पानी पिलाने की सेवा में जुट गईं। पिछले साल उन्हेंने शहर में 100 से ज्यादा स्थानों पर सीमेंट की टंकियां रखवाकर गायों के लिए पानी का इंतजाम करवाया और लोगों को भी इस काम के लिए प्रेरित किया। इस साल भी उन्होंने 70 स्थानों पर सीमेंट की टंकियां रखवाई हैं। नीलम शहर की कॉलोनियों और मोहल्लों में जाकर लोगों को इस बात के लिए प्रेरित करती हैं कि वे सिर्फ गाय का दूध ही खरीदें ताकि ज्यादा से ज्यादा गायों का पालन हो। इसके अलावा घरों के बाहर गायों के लिए पानी की टंकी रखवाने और गाय को पालने के लिए भी वे प्रेरित कर रही हैं। एमए अंग्रेजी, एमएसडब्ल्यू और एलएलबी कर चुकी नीलम इन दिनों पशुओं के लिए शहर की गौचर भूमि मुक्त कराने के लिए काम कर रही हैं। इसके अलावा वे सड़कों पर आवारा घूमने वाले मवेशियों को गोद दिलवाने के लिए अभियान चला रही है। शहर के अलग-अलग क्षेत्रों में वे अब तक ३०० से ज्यादा मवेशियों को लोगों को गोद दिलवा चुकी हैं। घालय गांयों का इलाज करने के लिए वे अपनी स्कूटी में प्राथमिक इलाज के लिए मलम-पट्टी भी अपने साथ लेकर चलती हैं।

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