कलेक्टर द्वारा बीते दिनों निरीक्षण करने के बाद जिला असपताल का प्रतिदिन भ्रमण कर व्यवस्थाओं को दुरुस्त कराने की जिम्मेदारी दी है। जिसको लेकर शुक्रवार को शाम जिला पंचायत सीइओ हिमांशु चंद्र ने जिल अस्पताल पहुंचकर वहां की व्यवस्थाएं देखी और निर्देश दिए थे। जिसके बाद शनिवार को सुबह करीब १० बजे फिर वह अस्पताल पहुंचे और सिविल सर्जन के साथ भ्रमण किया। अस्पताल की हालत देखकर नाराजगी जताई और अस्पताल में जो कमियां हैं उनका स्टीमेट बनाकर उसके पास भेजने के लिए कहा है।
जिला अस्पताल में कहने के लिए तो पांच लिफ्ट हैं, ताकिं मरीजों और नि:शक्तजनों को सीडिय़ां न चढऩा पड़े। लेकिन अस्पताल प्रबंधन द्वारा सभी लिफ्ट को बंद रखा गया है। इससे लोगों को लिफ्ट का लाभ नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में नि:शक्तजन और मरीजों को सीढिय़ों से वार्डों में जाना पड़ रहा है। जिससे उन्हें काफी समस्या हो रही है। अस्पताल की चौथी मंजिल में भर्ती मरीज के परिजन रविंद्र कुशवाहा ने बताया कि वह पैरो से दिव्यांग है और उसका चाचा यहां पर भर्ती है। उसे दवाई खाना आदि लाने के लिए बार-बार सीढिय़ों से आना-जाना करना पड़ रहा है। जिससे उसे काफी परेशानी होती है। वहीं यहां पर भर्ती मरीज के परिजनों भूपेंद्र, सुनीता, रतन, दीपा आदि लोगों ने बताया के यहां पर दो तीन दिन से अधिकारी आते हैं उसी समय लिफ्ट चालू की जाती हैं और अधिकारियों के जाते ही फिर से बंद कर दी जातीं है।
जिला अस्पताल में जगह-जगह गुटके, तम्बाकू के पीक और बीडी, सिगरेट आदि पड़े होने के चलते सिलिस सर्जन डॉ. आएस त्रिपाठी ने कडा रुख अपनाते हुए अस्पताल आने वाले लोगों की तलाशी की गई और वार्डों में मरीजों के परिजनों की जांच की गई। इस दौरान बडी मात्रा में लोगों के पर से गुटका, बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू आदि जब्त किए गए। उन्होंने अस्पताल में लेडीस और जेंट्स सुरक्षा गार्ड को इसकी जिम्मेदारी दी है। जिनके द्वारा मरीजों और उनके परिजनों से गुटके तंबाकू व नशीली सामग्री जब्त की जा सकेंगी। बिल्डिंग के अंदर प्रवेश करने के पहले मरीजों की चेकिंग की जा रही है। सिविल सर्जन ने बताया कि जिला तंबाकू नियंत्रण समिति के द्वारा यह अभियान चलाया जा रहा था। लेकिन नशा मुक्ति अभियान को सफल बनाने के लिए कलेक्टर के निर्देश पर एक मेल और एक फीमेल सिक्योरिटी रखी गई है। ताकि इससे जिला अस्पताल परिसर स्वच्छ व साफ बना रहे।
– जिला अस्पताल के डॉक्टरों सहित अधिकांश पैरामेडिकल स्टाफ के आने और जाने में अपनी मनमानी करते हैं जिससे ओपीडी और इमरजेंसी में मरीजों को बेहतर चिकित्सा सेवाएं नहीं मिल पा रही है।
– जिला अस्पताल में बच्चों के लिए वेंटीलेटर नहीं होने से कई बार बच्चों की मौत होती है या फिर बाहर के अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों के लिए रेफर किया जाता है।
– अधिकतर मामलों में बीमारी, सड़क हादसे में घायलों को प्राथमिक उपचार के बाद तुरंत मेडिकल कॉलेज के लिए रेफर कर दिया जाता है।
– रात में आने वाले मरीजों को जिला अस्पताल से दवाई नहीं दी जाती हैं। रात में मात्र बाहर से मेडिकल स्टोरों से ही दवाई लाना लोगों की मजबूरी है।
– अस्पताल के विभिन्न वार्डों में रखे मेडिकल बेस्ट का कंटेनरों में रखा कचरा समय पर नहीं उठाया जा रहा। जिससे वहां पर मरीजों को दुर्गंध और गंदगी से दिक्कतें होती है।
– शौचालयों की सही से साफ-सफाई नहीं होती।
– शौचालयों में लगे नलों की टौटियों से बीते दो माह से पानी बह रहा है, लेकिन सुधार नहीं कराया जा रहा है।
– अस्पताल भवन में जगह-जगह पर पीक और गंदगी पड़ी रहती है।
– भवन के अंदर कुत्तों और अन्य जानवरों का जमवाड़ा रहता है। उन्हें भगाने वाला कोई नहीं है।
– कई डॉक्टरों के अपने चेम्बर में नहीं बैठते हैं।
– अस्पताल में हेल्प डेस्क नहीं होने से मरीजों को डॉक्टरों से इलाज कराने और अन्य काम के लिए काफी भटकना पड़ता है।
– आईसीयू में एसी नहीं होने से मरीजों को कई सारी समस्याओं से जूझना पड़ता है।
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इनका कहना है :
कलेक्टर द्वारा निरीक्षण किया गया था और निर्देश भी दिए थे। जिस पर मेल वार्ड और सर्जिकल वार्डो को नए भवन की तीसरे और चौथी मंजिल में शिफ्ट किया गया है। पहली और दूसरी मंजिल में आईसीयू, एसएनसीयू, लेवर रूम, प्रसूता वार्ड, प्रसव उपरांत महिला वार्ड आदि रहेंगे। अभी नए भवन में कई व्यवस्थाएं नहीं होने से पूरी तरह से बिल्डिंग हमे हैंडओवर नहीं की गई है। इसके लिए ऑक्सीजन सप्लाई लाइन, एसी लाइन आदि चालू कराने के लिए टीम आएगी और एसएनसीयू के लिए टीम आकर बेरीफाई करेगी, तब यह वार्ड शिफ्ट किए जाएंगे।
डॉ. आरएस त्रिपाठी, सीएस, जिला अस्पताल, छतरपुर