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समय पर नहीं मिलते डॉक्टर, न दवा न जांच,रेफरल सेंटर बने अस्पताल

locationछतरपुरPublished: Oct 25, 2021 05:44:00 pm

Submitted by:

Dharmendra Singh

ग्रामीण अंचल में स्वास्थ्य सेवाएं बदतर, जिला चिकित्सालय की सेवाएं भी लचर36 प्राथमिक स्वाथ्य केन्द्र, 11 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र और जिला चिकित्सालय,फिर भी समस्या

ग्रामीण अंचल में स्वास्थ्य सेवाएं बदतर

ग्रामीण अंचल में स्वास्थ्य सेवाएं बदतर

छतरपुर। जिले की 17 लाख 62 हजार 857 आबादी के लिए कहने को तो 36 प्राथमिक स्वाथ्य केन्द्र, 11 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र और एक जिला चिकित्सालय है। लेकिन प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में न तो डॉक्टर न दवा मिलती है। यही वजह है कि जिला चिकित्सालय में मरीजों का दबाव अधिक हैं, रोजाना एक हजार से ज्यादा मरीज ओपीडी में आते हैं। मौसमी बीमारी के सीजन में ये संख्या 1०००से 1२00 तक रोजाना हो जाती है। जिला अस्पताल में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है,अन्य स्टाफ भी पर्याप्त नहीं है। जो स्टाप उपलब्ध है, उनमें खासकर डॉक्टर समय से नहीं आते हैं। मरीजों की भीड़ कई घंटे डॉक्टर का इंतजार करती है। जब डॉक्टर आते हैं,तो भारी तादात में मरीज को देखने होता है,इसलिए डॉक्टर इलाज के नाम पर बस औपचारिकता करते हैं। डॉक्टर द्वारा लिखी जाने वाली सभी जांच हो नहीं रही हैं। इतना ही नहीं जिला अस्पताल के डॉक्टर अस्पताल के बाहर उपलब्ध दवाएं प्रीस्क्रिप्शन में लिखते पाए जाते हैं।
गंभीर मरीज कर देते हैं रेफर
जिला में सबसे बड़ा अस्पताल जिला चिकित्सालय है, लेकिन वो भी गंभीर मरीजों के लिए रेफरल सेंटर बन गया है। जिलेभर के स्वाथ्य केन्द्रों से रेफर होकर आने वाले मरीजों और आपातकालीन सेवा में आने वाले मरीजों को झांसी,ग्वालियर रेफर कर दिया जाता है। जिले के स्वास्थ्य केन्द्र और जिला अस्पताल सिर्फ छोटी-मोटी बीमारियों के इलाज तक सीमित हैं। दुर्घटना या गंभीर बीमारी के आधा दर्जन मरीज को रोजाना रेफर कर दिया जाता है।
मेडिकल कॉलेज का निर्माण शुरु नहीं
आमचुनाव के पहले मेडिकल कॉलेज निर्माण की कवायद तेजी से की गइ र्थी, प्रभारी डीन जीएस पटेल ने जिला अस्पताल में उपलब्ध संसाधन और स्टाफ की रिपोर्ट शासन को भेजी,इधर निर्माण स्थल पर बोर्ड लगा दिया गया। लेकिन न तो निर्माण कार्य अबतक शुरु हो सका है । नवजात मृत्यु दर (आइएमआर) और मैटरनल मॉर्टिलिटी रेट (एमएमआर) जैसे स्वास्थ्य संकेतकों के वर्ष 2015-16 के आंकड़ों के आधार पर बनाई गई इस इंडेक्स पर 21 बड़े राज्यों, आठ छोटे राज्यों और सात केंद्र शासित प्रदेशों की तीन अलग-अलग श्रेणियों में रैंकिंग की गई है। इस रैकिंग के अनुसार मध्यप्रदेश स्वास्थ्य सूचकांक में 21 बड़े राज्यों में से 17वें नबंर पर है।
ये कहना है लोगों का
नहीं मिलते डॉक्टर
स्वास्थ्य सेवाएं लचर हैं, न डॉक्टर अस्पताल में समय पर आते हैं, न 108 की सेवाएं मिल पाती है। जिला अस्पताल के महिला वार्ड में डॉक्टर हमेशा नहीं रहते हैं,जब भी वहां जाओ,कोई न कोई कराहता रहता है। छोटी-मोटी बीमारियों के अलावा बड़ी बीमारियों का इलाज नहीं होता है, डॉक्टर रेफर कर देते हैं।
अंजू अवस्थी,समाजसेवी
दवा और जांच भी नहीं
न डॉक्टर मिलते हैं,न दवा और न जांच हो रही है। शहर से लेकर गांव तक स्वास्थ्य सेवाएं लचर हैं। गरीबी रेखा के नीचे और मध्यम वर्ग के लोग मजबूरन व्यवसायी डॉक्टरों के यहां जाने के लिए मजबूर हैं। सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलने से लोगों को अपने खेत और गहने गिरवी रखकर इलाज कराना पड़ रहा है।
शंकर सोनी,समाजसेवी
नाम की है इमरजेंसी सेवा
जिला अस्पताल में सबसे ज्यादा मरीज आते हैं,लेकिन यहां इमरजेंसी सेवा बेहतर नहीं है। रात में या त्योहार के दिन विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं रहते हैं। इमरजेंसी सेवा जूनियर डॉक्टर के भरोसे रहती है। नर्सिंग स्टाफ का व्यवहार भी अच्छा नहीं है।
गीता सिंह,गृहणी
नहीं होता अच्छा इलाज
सरकार की तमाम योजनाएं हैं,लेकिन उनका क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो रहा है। करोड़ों रुपए खर्च होते हैं,लेकिन इलाज अच्छा नहीं होता है। परेशानी होकर अंतत: निजी अस्पताल जाना पड़ता है,भले ही कर्ज लेकर इलाज कराना पड़े।
देवीदीन कुशवाहा,दुकानदार
बाहर से लेना पड़ती है दवा
जब भी तबीयत खराब होती है,तो अस्पताल में दिखाने पर जो दवाएं लिखी जाती हैं,वो अस्पताल में मिलती ही नहीं है, बाहर के मेडिकल से दवाएं लेना पड़ती है। जबकि सरकार हर साल बड़ी रकम नि:शुल्क इलाज के लिए खर्च कर रही।
अरूण चौरसिया, दुकानदार
फैक्ट फाइल
प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र – ३६
सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र – ११
जिला चिकित्सालय – ०१

बॉक्स
जिले की कुल जनसंख्या 17,62,857
कुल ग्रामीण जनसंख्या 1,363,604
कुल शहरी जनसंख्या 399,253
कुल पुरुष 93,59,06
कुल महिलायें 82,69,51

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