आस्था: शारीरिक कष्ट दूर करने या मनोकामना की पूर्ति के लिए पेड़ पर ठोकते हैं सांक
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छतरपुरPublished: Aug 23, 2019 08:28:46 pm
पेड़ को सांकल गौड़ बब्बा का प्रतीक मानते हैं ग्रामीण50 साल से ज्यादा समय से लोग कर रहे पूजा
People have been worshiping for more than 50 years
बजीर खान
नौगांव। कहते हैं, मानो तो भगवान, न मानो तो पत्थर, आस्था का यही विश्वास लोगों द्वारा अगल-अलग तरीके और चीजों पर रहता है। कुछ इसी तरह ही छतरपुर जिले के नौगांव जनपद क्षेत्र के छोटे से गांव बरट में एक पेड़ पर लोगों की ऐसा आस्था है, कि शारीरिक कष्ट हो या कोई मनोकामना पूरी करनी हो तो लोग पेड़ की पूजा करते और मनोकामना पूरी होने पर पेड़ में लोहे की सांकल ठोकर पूजा-पाठ करते हैं। पेड़ से लोगो की आस्था 50 साल से ज्यादा समय से जुड़ी हुई है। श्रद्धालुओं द्वारा मनोकामना पूरी होने पर कई टन लोहे की सांकल इस पेड़ में ठोकी जा चुकी हैं। जो उनकी आस्था के प्रतीक के रुप में आज भी वहां मौजूद हैं।
देवी-देवताओं के स्थान पर है चमत्कारी पेड़
बरट गांव में तालाब किनारे कई मंदिर व देवी देवताओं के स्थान बने हुए हं,ै जो ग्रामीण इलाके में आस्था के साथ ही चमत्कारी मंदिर माने जाते हैं। गांव के रहने वाले 80 वर्षीय वाला राजपूत बताते है कि गांव में तालाब किनारे कई चमत्कारी देवी देवताओं के स्थान हैं, जिसमें 12 वी सदी का चन्देल शासन में बनाया गया शिव मंदिर भी है, जो विशाल सांपो के साए में रहता है। इसके साथ ही हरदौल, गोड़ बब्बा के स्थान के साथ ही बजरंग बली का प्राचीन मंदिर भी है। इसी मंदिर से ही कुछ दूरी पर देवी देवताओं के चबूतरे के पास यह वर्षो पुराना अंकोल (अकोला) का पेड़ लगा हुआ हैं, जो लोगों की आस्था का प्रतीक बना हुआ है।
दूर-दूर से आते हैं लोग
यह अद्भुत अकोला का चमत्कारी पेड़ क्षेत्र के लोगो के साथ ही दूर दराज के लोगों के लिए भी आस्था का प्रतीक बना हुआ है। गांव की रहवासी 70 वर्षीय कौशल्या यादव बताती है कि हमारी तीन पीढिय़ों से इस चमत्कारी पेड़ का जिक्र सुनते और देखते आ रहे है। इस पेड़ में अभी भी हजारो सांकल लटकी हुई है। जबकि लाखों सांकल पेड़ के तनों में समा चुकी हैं। गांव के उमरचन्द राजपूत, कमलापत विश्वकर्मा, कली राजपूत ने बताया कि इस चमत्कारी पेड़ पर जो भी लोग अपनी-अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मनोकामनाए पूर्ण होने के बाद वह सांकल, नारियल व सिन्नी दाने का प्रसाद चढ़ाते और सांकल को पेड़ की शाखाओं में ठोकते हैं।