केंद्रीय विद्यालय छतरपुर के प्राचार्य बिसन सिंह राठौर के मार्गदर्शन में 1 अप्रेल से विद्यार्थियों से पुरानी पुस्तकें जमा कराने का सिलसिला शुरू हो गया है। विद्यार्थियों को यह भी छूट रहती है कि वह स्वयं अपनी स्वेच्छा से जिस किसी बच्चे को पुरानी पुस्तकें देना चाहे उन्हें दे दे। स्वयं न देने की स्थिति में बच्चों से कक्षा अध्यापक पुस्तके जमा करा लेते हैं और संबंधित कक्षा में अध्ययन करने वाले बच्चों को पुस्तकें उपलब्ध कराते हैं। इसके पीछे मंशा यह है कि संबंधित कक्षा में आने वाले बच्चे को बिना पैसे खर्च किए पुस्तके मिल जाएंगी साथ ही पुस्तकों को दोबारा छापने के लिए कागज की जरूरत नहीं पड़ेगी। क्योंकि कागज के लिए पेड़ों की कटाई होती है। पर्यावरण को बनाए रखने के लिए यह अभियान चल रहा है। सीनियर बच्चों की पुस्तकें जूनियर बच्चों के काम आ रही हैं । इसलिए सीनियर बच्चे स्वयं प्रेरित होकर अपनी पुस्तकें उपहार स्वरूप स्कूल में जमा कर रहे हैं।
किताब-कॉपियों के बढ़े दामों से मिलेगी राहत
पुरानी किताबों के एक्सचेंज के कारण छात्रों को नई किताबें नहीं खरीदनी होगी। ऐसे में किताबों के दाम में हुई करीब 20 प्रतिशत बढोत्तरी का भार भी छात्रों के अभिभावकों पर नहीं पड़ेगा। इसके साथ ही छात्रों में एक दूसरे के सहयोग करने की भावना भी जाग-त होती है। वहीं, छात्रो के बीच समाजिक ताना बाना भी मजबूत होता है।
पुरानी किताबों के एक्सचेंज के कारण छात्रों को नई किताबें नहीं खरीदनी होगी। ऐसे में किताबों के दाम में हुई करीब 20 प्रतिशत बढोत्तरी का भार भी छात्रों के अभिभावकों पर नहीं पड़ेगा। इसके साथ ही छात्रों में एक दूसरे के सहयोग करने की भावना भी जाग-त होती है। वहीं, छात्रो के बीच समाजिक ताना बाना भी मजबूत होता है।