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नई शिक्षा नीति में डिजिटल साक्षरता पर जोर, बढ़ाने होंगे संसाधन

locationछतरपुरPublished: Aug 07, 2020 08:18:53 pm

Submitted by:

Dharmendra Singh

निजी स्कूलों की फीस नियंत्रण की नई नीति में बात नहींप्री-प्राइमरी से बढ़ेगा आंगनबाडियों पर बोझ

national education policy

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छतरपुर। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने डिजिटल साक्षरता पर जोर दिया गया है। शिक्षा में प्रौद्योगिकी के उपयोग के लिए एक राष्ट्रीय शिक्षा प्रौद्योगिकी फ़ोरम बनाने का प्रस्ताव भी है। शिक्षाविद निधि सत्यव्रत चतुर्वेदी का कहना है कि इसे चलाने के लिए पर्याप्त इंटरनेट कनेक्टिविटी और कंप्यूटर की आवश्यकता होगी। 2016-17 के यूडीआईएसई आंकड़ों के अनुसार, केवल 53.5 फीसदी सरकारी स्कूलों में बिजली कनेक्शन है। 9.85 प्रतिशत के पास एक कार्यात्मक कंप्यूटर है और 4.09 प्रतिशत के पास इंटरनेट कनेक्शन हैं। इस नीति को कार्यान्वित करने के लिए इन सुविधाओं की उपलब्धता करानी होगी। इसके लिए शिक्षकों की डिजिटल
शैक्षिक क्षमता को भी बढ़ाना होगा।
निजी स्कूलों पर निगरानी नहीं
उन्होंने बताया कि नई शिक्षा नीति निजी संस्थानों को पूर्ण स्वायत्तता देती है जिसमें उन्हें मनमाने तौर पर फी़स निर्धारित करने, आदि की छूट भी शामिल है। वहीं दूसरी ओर यह नीति उन संस्थानों में आरक्षण के मामले में कुछ नहीं कहती। मनमानी रोकने के लिए
सरकार की तरफ से किसी भी तरह की निगरानी, स्वतंत्र ऑडिट या दंड का उल्लेख नहीं किया गया है। उन्होंने ये भी बताया कि नई शिक्षा नीति में 2019 के ड्राफ्ट से उस प्रस्ताव को हटा दिया गया जिसमें कि 3 से 18 वर्ष के बीच के सभी बच्चों को शिक्षा का अधिकार देने की बात कही गई थी। जबकि 2009 में ही राष्ट्रीय मुफ़्त एवं अनिवार्य शिक्षा कानून पास हो चुका है।
आंगनवाड़ी कार्यकताओं के अधिकारों की बात नहीं
निधि ने बताया कि नीति प्री प्राइमरी शिक्षा के महत्व पर ज़ोर देती है, जिसके अंतर्गत प्राइमरी स्कूल जाने से पहले बच्चे का बौद्धिक विकास हो सके। इसके अंतर्गत सरकार ने प्री प्राइमरी और प्ले स्कूलों को आंगनवाडिय़ों के साथ जोडऩे की पेशकश की है। आंगनवाडिय़ां सार्वजनिक स्वास्थ्य और पोषण प्रणाली का एक हिस्सा हैं ना कि पूर्वप्राथमिक शिक्षा देने के लिए प्रशिक्षित। आंगनवाड़ी
कार्यकर्ताओं पर पहले से ही अत्याधिक काम का बोझ है। औसत अनुपात में एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता पर 56 छात्र होंगे। लंबे समय से ये कार्यकर्ता मासिक आय में बढ़ोतरी, पेंशन और स्थाई नौकरियों की मांग कर रही हैं। और उनके अधिकारों को अभी भी मान्यता नहीं दी गई है। इसको कैसे लागू किया जाएगा इस बारे में यह नीति कोई बात नहीं करती।
महंगी होगी पढ़ाई
शिक्षा समवर्ती सूची यानि कॉन्करेंट लिस्ट का विषय है, जिसमें भारतीय संविधान द्वारा स्थापित कुछ विषयों पर केन्द्र और राज्यों का समानांतर अधिकार होता है। पर एनईपी 2020 केंद्रीकरण की प्रवृत्ति दिखाती है और एक विविध शैक्षिक पारिस्थितिकी तंत्र यानि बेहतर शिक्षा का वातावरण बनाने में राज्यों और बोर्डों की भूमिका को कम करती है। एनईपी में सरकार ने ग्रेडिड ऑटोनोमी या श्रेणीबद्ध स्वायत्तता का मॉडल लाने की बात कही है। इसके तहत विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की ग्रेडिंग की जाएगी जिसके हिसाब से उन्हें स्वायत्तता दी जाएगी। इसका मतलब है की पढ़ाई और महंगी हो जाएगी, फ़ीस भरने की क्षमता पढ़ाई का स्तर निर्धारित करेगी और कमज़ोर या वंचित तबके के छात्रों के लिए उच्च स्तरीय कॉलेजों में शिक्षा पाना मुश्किल हो जाएगा।
1986 की सिफारिश दोहराई
नई शिक्षा नीति जीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करने की सिफ़ारिश करती है। यह वही आंकड़ा है जो 1968 में भारत की पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सुझाया गया था और 1986 में दोहराया गया था। आज के परिवेश में जब शिक्षा पर खर्च जीडीपी का
मात्र 3 फीसदी है, यह पर्याप्त नहीं है। नई शिक्षा नीति में 2019 के ड्राफ्ट से उस प्रस्ताव को हटा दिया गया जिसमें कि 3 से 18 वर्ष के बीच के सभी बच्चों को शिक्षा का अधिकार देने की बात कही गई थी। जबकि 2009 में ही राष्ट्रीय मुफ़्त एवं अनिवार्य शिक्षा कानून पास हो चुका है।
भर्ती और पदोन्नति में योग्यता मेरिट
नीति 2035 तक सकल नामांकन अनुपात यानी ग्रॉस इनरोलमेंट रेश्यो को 50 फीसदी तक पहुंचाने का प्रस्ताव करती है। 2018-19 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात 26.3 प्रतिशत है, जो कि 2011-12 के 20.8 प्रतिशत की
तुलना में मामूली सुधार है। नीति में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों और राज्यों के बीच असमानता जैसे अन्य कारकों का उल्लेख नहीं है। इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है, इस पर कोई ठोस कार्ययोजना का उल्लेख नहीं है। नीति शिक्षकों की भर्ती और पदोन्नति में योग्यता या मेरिट सुनिश्चित करने की बात भी करती है। परंतु मेरिट को कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है।
उच्च शिक्षा आयोग निर्माण की सिफारिश
एनईपी हितों के टकराव को कम करने के उद्देश्य से एक उच्च शिक्षा आयोग के निर्माण की सिफारिश करती है, जिसके तहत चार स्वतंत्र कार्यक्षेत्र स्थापित किए जाएंगे। राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक परिषद जो चिकित्सा और कानूनी शिक्षा को छोड़कर उच्च शिक्षा में सभी मौजूदा नियामकों की जगह लेगी। मेटा मान्यता प्राप्त निकाय के रूप में राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद , उच्च शिक्षा अनुदान परिषद जो पारदर्शी मानदंडों के आधार पर उच्च शिक्षा संस्थानों को निधि देगा। सामान्य शिक्षा परिषद, जो उच्च शिक्षा के लिए परिणामों की रूपरेखा तैयार करेगा। ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टीचर्स एजुकेशन और बार काउंसिल जैसी सभी पेशेवर परिषदें मानक स्थापित करने तक ही सीमित होंगी और उनकी कोई निर्णायक भूमिका नहीं होगी। नीति एक राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन यानि एनआरएफ़ बनाने का प्रस्ताव करती है, जो मूल रूप से सभी विषयों में अनुसंधान को निधि देगा। नीति के अंतिम संस्करण में प्रस्तावित एनआरएफ़ को वार्षिक अनुदान में दिए जाने वाले 20000 करोड़ रुपए है।
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