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हीरा खदान के लिए पर्यावरण एनओसी की प्रक्रिया शुरु, वन भूमि व पेड़ों का हुआ सर्वे

locationछतरपुरPublished: Dec 24, 2020 07:09:39 pm

Submitted by:

Dharmendra Singh

दो-तीन दिन में वन विभाग भोपाल भेजेगा रिपोर्ट, तय होगी वन भूमि व पेड़ों की क्षतिपूर्ति राशिक्षतिपूर्ति राशि जमा होने और वन भूमि के बदले भूमि देते ही कंपनी को मिलेगी खदान की जमीन

364 हेक्टेयर में लगेगी हीरा खदान

364 हेक्टेयर में लगेगी हीरा खदान

छतरपुर। बक्स्वाहा में लगने वाली एशिया के सबसे कीमती जैम क्वालिटी के हीरे की खदान 2022 के आखिर तक शुरू करने की दिशा में तेजी से काम चल रही है। लगभग 60 हजार करोड़ रूपए की इस खदान में उत्खनन की मंजूरी मप्र सरकार ने बिरला गु्रप को दी है। बिरला गु्रप उत्खनन के पहले सभी अनुमतियों को हासिल करने में जुटा है। छतरपुर जिला खनिज विभाग से सभी अनुमतियां लेने के बाद अब पर्यावरण मंजूरी की प्रक्रिया भी शुरु हो गई है। स्टेज वन क्लीयरेस के लिए वन विभाग ने वन भूमि व पेड़ों का सर्वे पूरा कर लिया है, जिसकी रिपोर्ट दो से तीन दिन में छतरपुर से भोपाल भेजी जाएगी। उसके बाद वन भूमि व पेड़ों की क्षतिपूर्ति राशि तय होगी। फस्ट स्टेज की क्लीयरेंस मिलने के बाद केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय से एनओसी की प्रक्रिया की जाएगी।
364 हेक्टेयर में लगेगी हीरा खदान
बक्स्वाहा में 364 हेक्टेयर वन भूमि पर हीरे का खनन होना है। वन विभाग से उक्त जमीन हासिल करने के लिए सरकार को राजस्व क्षेत्र की इतनी ही जमीन एवं इस पर लगे लाखों पेड़ों की कटाई का खर्च, पेड़ों की कीमत और नई जमीन पर पेड़ों को उगाने का खर्च वन विभाग को देना पड़ेगा। बक्स्वाहा के पास डायमंड खदान के बंदर प्रोजेक्ट के लिए बिड़ला ग्रुप के माइनिंग प्लान को इंडियन ब्यूरो ऑफ माइंस ने मंजूरी दे चुका है। बिड़ला ग्रुप वनभूमि के बदले जमीन देने और प्लांटेशन की प्रक्रिया करेगा, जिसके बाद वन विभाग की जमीन बिडला ग्रुप को खनन के लिए हैंडओवर की जाएगी।
बिडला ग्रुप को करना होगी वनों की क्षतिपूर्ति
बिडला ग्रुप को वन क्षेत्र में खनन परियोजना शुरु करने के लिए खदान के लिए ली गई वन विभाग की जमीन के बरावर और पेड़ों की भी क्षतिपूर्ति करना होगी। तभी खदान क्षेत्र की वनभूमि हैंडओवर हो पाए। इसके लिए खनन परियोजना में जाने वाली वन भूमि के बदले जमीन देने के साथ ही काटे गए पेड़ों का प्लांटेशन भी कराना होगा। बिडला ग्रुप काटे गए पेड़ों के बराबर पेड़ लगाने होंगे। इसके साथ ही ली गई वन भूमि के बदले वन विभाग को उतनी ही जमीन देनी होगी। प्लांटेशन पर बिड़ला ग्रुप को 7 से 11 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर खर्च करना होगा। वहीं, प्लांटेशन के लिए जमीन भी देनी होगी। कुल मिलाकर करीब 15 लाख रुपए हेक्टेयर की दर से क्षतिपूर्ति करना होगी। वन क्षतिपूर्ति होने की शर्त पर ही केन्द्रीय वन मंत्रालय द्वारा फारेस्ट क्लीयरेंस देने की प्रक्रिया होगी।
माइनिंग प्लान पहले ही हो चुका है मंजूर
इंडियन ब्यूरो ऑफ माइन्स (आइबीएम) के क्षेत्रीय कार्यालय जबलपुर की टीम ने जुलाई माह के अंत में बंदर प्रोजेक्ट का दौरा किया था। भारतीय खान ब्यूरो जबलपुर के उप खान नियंत्रक, वरिष्ठ भूवैज्ञानिक के साथ ही बिडला ग्रुप के भूवैज्ञानिकों और जिला खनिज अधिकारी और राजस्व विभाग की टीम ने माइनिंग एरिया का प्राथमिक सर्वे किया था। बिडला ग्रुप, आईबीएम और खनिज विभाग के अधिकारी माइनिंग प्लान फाइनल करने से पहले दो से तीन बार और सर्वे किया। जिसके बाद प्लान को मंजूरी मिल चुकी है।

टारगेट समय से पहले शुरु हो सकता है खनन
सरकार ने कंपनी को तीन साल तक के लिए वन एवं पर्यावरण की स्वीकृति सहित अन्य औपचारिकताओं को पूरा करने का समय दिया है। कंपनी को ये लीज 50 साल के लिए दी गई है। लेकिन कंपनी जिस गति से प्रोजेक्ट पर काम कर रही है, ऐसे में तीन साल बाद खनन की योजना समय से पहले शुरु हो सकती है। वर्तमान में औपचारिकताओं को पूरा करने की रफ्तार के अनुसार डेेढ साल में बंदर प्रजोक्टे से हीरा खनन शुरु होने की संभावना है।
सर्वे हो गया है
हीरा खदान के लिए वन भूमि व पेड़ों का सर्वे पूरा कर लिया गया है। दो से तीन दिन में कागजी कार्यवाही करके रिपोर्ट भोपाल भेज दी जाएगी। क्षतिपूर्ति की राशि भोपाल से तय होगी।
संजीव झा, डीएफओ
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