सरकारी में भी नहीं हैं इंतजाम
शहर में स्थित २२ में से तीन चार अस्पतालों के पास में ही एनओसी है, जिसमें भी फायर सेफ्टी के मानकों को पूरा नहीं किया है, लेकिन जुगाड़ की एनओसी मिल गई है। वहीं निजी के साथ सरकारी अस्पतालों में भी आग की घटनाओं से निबटने के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। हालात हैं कि जिला अस्पताल में आग से निबटने के लिए कई फायर सिस्टम हैं लेकिन लम्बे समय से मैंटीनेंस नहीं कराया गया। जिससे वह कब धोका दे जाएं कह नहीं सकते। वहीं इसके साथ की टीवी अस्पताल, सीएचसी, पीएचसी में भी आग की घटनाओं से बचाव के लिए कोई इंतजाम नहीं हैं।
शहर में स्थित २२ में से तीन चार अस्पतालों के पास में ही एनओसी है, जिसमें भी फायर सेफ्टी के मानकों को पूरा नहीं किया है, लेकिन जुगाड़ की एनओसी मिल गई है। वहीं निजी के साथ सरकारी अस्पतालों में भी आग की घटनाओं से निबटने के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। हालात हैं कि जिला अस्पताल में आग से निबटने के लिए कई फायर सिस्टम हैं लेकिन लम्बे समय से मैंटीनेंस नहीं कराया गया। जिससे वह कब धोका दे जाएं कह नहीं सकते। वहीं इसके साथ की टीवी अस्पताल, सीएचसी, पीएचसी में भी आग की घटनाओं से बचाव के लिए कोई इंतजाम नहीं हैं।
प्रदेश में हो चुकीं हैं कई घटनाएं
जबलपुर व भोपाल के अस्पताल के अलावा राज्य के शिवपुरी, सतना, जबलपुर में भी आग लगने की घटनाएं हो चुकी हैं। इन घटनाओं के बाद सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञों की समितियों ने अलग-अलग जगह के लिए अलग-अलग सिफारिशें की थीं। यह सिफारिश भी की गई थी कि प्रत्येक अस्पताल के एसएनसीयू में आपातकालीन द्वार होना चाहिए, लेकिन अधिकतर अस्पतालों में इस पर अमल नहीं हुआ। 10 साल से ज्यादा पुराने एसी नहीं लगाने की सिफारिशें भी हुईं थीं, लेकिन इस पर भी अमल नहीं हुआ। सबसे बड़ी बात यह कि नेशनल क्वालिटी एश्योरेंस स्टैंडर्ड में अस्पतालों में अर्थिंग जांचने के लिए एक मशीन होनी चाहिए, पर किसी जिले के अस्पताल में यह नहीं है।
जबलपुर व भोपाल के अस्पताल के अलावा राज्य के शिवपुरी, सतना, जबलपुर में भी आग लगने की घटनाएं हो चुकी हैं। इन घटनाओं के बाद सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञों की समितियों ने अलग-अलग जगह के लिए अलग-अलग सिफारिशें की थीं। यह सिफारिश भी की गई थी कि प्रत्येक अस्पताल के एसएनसीयू में आपातकालीन द्वार होना चाहिए, लेकिन अधिकतर अस्पतालों में इस पर अमल नहीं हुआ। 10 साल से ज्यादा पुराने एसी नहीं लगाने की सिफारिशें भी हुईं थीं, लेकिन इस पर भी अमल नहीं हुआ। सबसे बड़ी बात यह कि नेशनल क्वालिटी एश्योरेंस स्टैंडर्ड में अस्पतालों में अर्थिंग जांचने के लिए एक मशीन होनी चाहिए, पर किसी जिले के अस्पताल में यह नहीं है।
इनका कहना है
हमने जिले के सभी निजी अस्पतालों में पत्र भेजकर फायर सहित इलेक्ट्रिकल एनओसी की जानकारी मांगी है। जिनमें से कुछ की ही जानकारी आई है। बाकी की जानकारी नहीं आने पर अग्रिम कार्रवाई की जाएगी।
अनूप त्रिपाठी, प्रभारी निजी अस्पताल प्रबंधन
हमने जिले के सभी निजी अस्पतालों में पत्र भेजकर फायर सहित इलेक्ट्रिकल एनओसी की जानकारी मांगी है। जिनमें से कुछ की ही जानकारी आई है। बाकी की जानकारी नहीं आने पर अग्रिम कार्रवाई की जाएगी।
अनूप त्रिपाठी, प्रभारी निजी अस्पताल प्रबंधन