छतरपुरPublished: Nov 12, 2018 12:30:34 pm
dharmendra singh
संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है निर्जला उपवास, सूर्य की वहन छठ मइया की होती है उपासना
Worship of Sun’s sister Chatha Maiya
छतरपुर. छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्यदेव की उपासना का पर्व है। मुख्य रूप से बिहार, उत्तप्रदेश के पूर्वांचल इलाके से जुड़े लोग इस पर्व को मनाते हैं,छतरपुर में बिहार और पूर्वांचल से जुड़े लोग इस पर्व को मनाते हैं। प्रताप सागर तालाब और अपने घरों में लोग इस पर्व को उत्सव के रुप में मनाते हैं। प्रताप सागर तालाब पर इस व्रत को करने वाले सामूहिक रुप से डूबते और फिर उगते सूर्य को अध्र्य देते हैं। बाराणसी से कर्मकांड़ की पढ़ाई करने वाले मुन्नीलाल पाठक बताते हैं कि, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठी मइया सूर्य देव की बहन हैं। छठ पर्व में सूर्योपासना करने से छठ मइया प्रसन्न होती हैं,। ऐसी मान्यता है कि, छठ माई संतान प्रदान करती हैं। सूर्य जैसी तेजमान संतान के लिये भी यह उपवास रखा जाता है। इसके अलावा घर परिवार को सुख शांति व धन धान्य से संपन्न करती हैं। सूर्य देव की आराधना का यह पर्व कार्तिक शुक्ल षष्ठी पर मनाया जाता है। कार्तिक छठ पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से जाना जाता है।
चार दिन का है पर्व
छठ पूजा चार दिन का पर्व है,जो मुख्य रुप से कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है,लेकिन इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय के साथ होती है। मान्यता है कि इस दिन व्रती स्नान आदि कर नये वस्त्र धारण करते हैं, शाकाहारी भोजन लेते हैं। व्रती के भोजन करने के पश्चात ही घर के बाकि सदस्य भोजन करते हैं। दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को पूरे दिन व्रत रखा जाता है,शाम को व्रत रखने वाला भोजन ग्रहण करता है, इसे खरना कहा जाता है। इस दिन अन्न व जल ग्रहण किए बिना उपवास किया जाता है। शाम को चाव व गुड़ से खीर बनाकर खाई जाती है। नमक और शक्कर का इस्तेमाल नहीं किया जाता। तीसरे दिन यानि षष्ठी के दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है। इसमें ठेकुआ विशेष होता है। प्रसाद व कई तरह के मौसमी फल लेकर बांस की टोकरी में सजाये जाते हैं। टोकरी की पूजा कर सभी व्रती सूर्य को अघ्र्य देने के लिये तालाब, नदी या घाट आदि पर जाते हैं। स्नान कर डूबते सूर्य की आराधना की जाती है। उसके अगले दिन यानि सप्तमी को सुबह सूर्योदय के समय भी सूर्यास्त वाली उपासना की प्रक्रिया को दोबारा किया जाता है।
ये हैं छठ से जुड़ी पौराणिक कथाएं
इस व्रत की परंपरा से जुड़े छतरपुर के कई बुजुर्ग बताते हैं कि, पहली छठ पूजा सूर्यपुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर उन्हें अघ्र्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अघ्र्य दान की परंपरा प्रचलित है। इसके बाद माता सीता तथा द्रौपदी ने भी इस व्रत का पालन किया। जब पांडव अपना राजपाठ जुए में हार गए तब दौपदी ने राजपाट वापस पाने की मनोकामना के साथ छठ व्रत किया था। इसके बाद पांडवों को अपना राजपाट वापस मिला था। इसके अलावा एक कथा ये भी है कि, नि:संतान राजा प्रियवंद से महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराया तथा राजा की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी गई। इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति तो हुई, लेकिन वह जीवित नहीं था। राजा प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान चले गए और उसके वियोग में प्राण त्यागने लगे। तभी श्मशान में भगवान की मानस पुत्री देवसेना ने प्रकट होकर राजा से कहा कि वे सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण षष्ठी कही जाती हैं। उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को इसके लिए प्रेरित करने को कहा। इसके बाद राजा ने पुत्र की कामना से देवी षष्ठी का व्रत किया। उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं कि राजा ने ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को की थी। तभी से छठ पूजा इसी दिन की जाती है।
फैक्ट फाइल
तिथि और पूजा समय
नहाय खाय- रविवार 11 नवंबर
खरना- सोमवार 12 नवंबर
सायं कालीन अघ्र्य- मंगलवार 13 नवंबर
प्रात: कालीन अघ्र्य- बुधवार 14 नवंबर