सुंदर सरोवर देखकर बनवाया गया था गायत्री मंदिर, अब वही तलैया बन गई नापदान
छतरपुरPublished: May 22, 2019 07:51:01 pm
– जलसंकट से हर कोई जूझता है, लेकिन तालाब बचाना कोई नहीं चाहता- शहर के रियासतकालीन तालाबों पर कब्जा ही हुआ, उन्हें बचाने की पहल किसी ने नहीं की
छतरपुर। कभी यह शहर चंदेल और रियासतकालीन तालाबों से भरपूर था, मुख्य सड़कों के किनारे केवल जलाशयों का कल-कल करते पानी का प्रवाह लोगों को सुकून और आनंद की अनुभूति कराता था, लेकिन अब वही जलाशय, तालाब और तलैयां अतिक्रमण से घिरने के कारण अपनी ही दुर्दशा पर आंसू बहा रहे हैं। शहर के सभी तालाबों पर कब्जा है। कब्जा हटाने के आदेश भी हाईकोर्ट तक से हैंं, लेकिन इन तलाबों को बचाना कोई नहीं चाहता है। जनभागीदारी से कुछ तालाबों को बचाने के प्रयास हुए तो सक्षम सहयोग नहींं मिलने से उनकी स्थिति पहले जैसी ही हो गई। इन्हीं प्रमुख तालाबों में से एक सुंदर सरोवर थी सांतरी तलैया। महाराजा छत्रसाल ने जब यह शहर बसाया था, उस समय के इतिहास में यहां एक सूर्य मंदिर और उसके किनारे सांतरी तलैया होने का ही उल्लेख मिलता है। इसके बाद बाकी के तालाब बनाए गए। बस स्टैंड पर गायत्री शक्ति पीठ के ठीक सामने यह जलाशय लोगों को कभी स्वच्छ जल और प्राकृतिक सौंदर्य की अनुभूति दिया करता था। इसी को देखकर ही कई साल पहले यहां पर गायत्री शक्ति पीठ का निर्माण किया गया था। लेकिन कालांतर में धीरे-धीरे यह जलाशय अपने अस्तित्व को खोता चला गया। लोगों ने कब्जा किया, उसमें अपने घरों के नामदान डाल दिए और रही-सही कसर अतिक्रमणकारियों ने कर दी। शहर के नालों की गंदगी भी इसमें डाली जाने लगी। कल तक जो सरोवर गायत्री शक्ति पीठ और यहां से जुड़े लोगों के लिए वरदान था, वहीं जलाशय गंदगी और दुर्गंध के कारण अभिशाप बन गया है। इन दिनों यह जलाशय चोई से घिरा हुआ है। कचरा और गंदगी भी इसमें भरी है। कई बार सामाजिक स्तर पर प्रयास हुए, लेकिन हर बार परिणाम प्रतिकूल रहे।
सांतरी तलैया का वास्तविक खसरा नंबर ६१६/२, रकवा- ८.९० एकड़ अर्थात ३.६०२ हैक्टेयर है। लेकिन धीरे-धीरे इस पर कब्जा होता चला गया और इसका रकवा घटता चला गया। अब यह जलाशय अपने अस्तित्व से ही संघर्ष कर रहा है। इसके बाद भी अगर एक बार सामूहिक रूप से तालाब बचाने के लिए प्रयास होता है तो अभी भी इसके वैभव को लौटाया जा सकता है।
रियासतकाल में हुई थी 7 तालाबों की स्थापना :
महाराजा छत्रसाल ने 3११ साल पहले वर्ष 1707 में छतरपुर नगर की स्थापना की थी। रियासतकाल के 24३ सालों के इतिहास में जलाशयों के रूप में 7 तालाबों का निर्माण हुआ। आजादी के ७२ सालों में शहर की आबादी जहां 1५ गुना बढ़कर सवा दो लाख पहुंच गई है, लेकिन शहर में एक भी नए जलाशय को विकसित नहीं किया गया है। प्राचीन तालाबों पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण किए गए हैं। हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद जिला प्रशासन इन तालाबों से अतिक्रमण से मुक्त नहीं करा पाया है। कोई भी अफसर इस मामले में हाथ नहीं डालना चाहता है।
तीन साल पहले तत्कालीन कलेक्टर डॉ. मसूद अख्तर ने 2 मई 2016 को शहर के आधा दर्जन तालाबों को अतिक्रमण मुक्त करने के आदेश दिए थे। उन्होंने हाईकोर्ट जबलपुर के निर्देशों के पालन में तहसीलदार को कार्रवाई करने के आदेश दिए थे। कलेक्टर कोर्ट द्वारा जारी आदेश में कहा गया था कि हाईकोर्ट की जनहित याचिका नंबर 6373 वर्ष 2014 में हुए आदेश के पालन में शहर के सभी तालाबों में अतिक्रमण खत्म करने के अभियान चलाया जाना जरूरी है। याचिकाकर्ता गोविंद शुक्ला ने इस मामले में कलेक्टर से हाईकोर्ट का आदेश पालन कराने की मांग की थी। इसके बाद कलेक्टर ने शहर के प्रताप सागर, रानी तलैया, किशोर सागर, ग्वाल मगरा तालाब, संकट मोचन राव सागर तालाब, सांतरी तलैया, विंध्यवासिनी तालाब को अतिक्रमण मुक्त करने के आदेश दिए थे। कलेक्टर ने आदेश में लिखा है कि किशोर सागर के चार अतिक्रमणकारी, ग्वालमगरा में 21 अतिक्रामकों पर तुरंत कार्रवाई की जाए। इसके अलावा में सांतरी तलैया, विंध्यवासिनी तालाब और प्रताप सागर में पटवारी को सीमांकन करने के बाद अतिक्रमण पाए जाने की अवस्था में उसे हटाने के आदेश दिए थे। साथही कलेक्टर ने तहसीलदार छतरपुर को धारा 248 का हवाला देते हुए दो माह में सभी तालाबों का वास्तविक क्षेत्रफल सुनिश्चित करने के निर्देश दिए थे। लेकिन दो माह से लेकर दो साल और अब तीन साल भी गुजर गए, लेकिन तालाबों का सीमांकन ही ठीक से नहीं किया गया।
राजाओं का था जल संरक्षण पर जोर :
बुंदेली इतिहास के जानकार प्रोफेसर डॉ. बहादुर सिंह परमार बताते है कि महाराजा छत्रसाल का जल और वन संरक्षण पर बहुत अधिक जोर था। जब महाराजा छत्रसाल ने छतरपुर को बसाया तब सिर्फ यहां सूर्य मंदिर के पास स्थित सांतरी तालाब के अस्तित्व में होने का उल्लेख इतिहास में है। इससे स्पष्ट है कि शहर के शेष 6 तालाबों का विकास राजाओं ने कराया है। 1785 में छतरपुर में परमार वंश की स्थापना हुई। 162 साल तक शासन करने वाले परमार राजाओं ने शहर के सबसे बड़े प्रताप सागर, किशोर सागर, रानी तलैया और संकट मोचन तालाब का निर्माण कराया था।
सात तालाबों का 55 हेक्टेयर रकबा :
शहर में सात तालाबों का रकबा करीब 55 हेक्टेयर है। यह तालाबों का मूल डूब क्षेत्र है। इस रकबा पर भी बड़े पैमाने पर अतिक्रमण है। डूब क्षेत्र से लगे भराव क्षेत्र में निजी कब्जे करके भवनों का निर्माण कर दिया गया है। यदि इन तालाबों का अतिक्रमण समाप्त हो गया और तालाबों में पानी आने वाले जल स्त्रोत पुराने समय की भांति खोल दिए जाए तो शहर में जल संकट नहीं होगा। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट में जनहित याचिका लगाई गई थी। कोर्ट के आदेश के पालन में जिला प्रशासन तालाबों से अतिक्रमण हटाने के आदेश तो अक्सर देता रहता है लेकिन वास्तविक कार्रवाई कभी नहीं होती है, लिहाजा स्थिति जस के तस रहती हैं।
आजादी के बाद नहीं बना कोई जलाशय :
आजादी के समय शहर की आबादी करीब 15 हजार थी, जो अब बढ़कर सवा दो लाख हो गई है। आबादी तो करीब 1५ गुना बढ़ गई पर जलाशयों के विकास के नाम पर कुछ नहीं किया गया। नए जलाशयों के निर्माण के विपरीत सभी तालाबों के ओने नीचे कर दिए गए हैं। ताकि बारिश के मौसम में तालाब के बीच में भवन बनाकर रहने वालों लोगों के घरों में पानी न जाए। इस कारण तालाब सूखे बने रहते हैं।