कटहरा गांव तक पहुंच गई ग्रेनाइट पत्थर खदान, जमीन से नीचे बनती जा रही सुरंग, पर्यावरण संकट के लिए गंभीर समस्या बन रही है पत्थर खदानें
छतरपुर. जिले के लवकुशनगर अनुभाग क्षेत्र की खनिज संपदा स्थानीय लोगों के जीवन के लिए ही नासूर बन गई है। जिन नियम और शर्तों पर शासन-प्रशासन से लेकर पर्यावरण विभाग ने खदान के लिए फॉच्र्यून स्टोन्स लिमिटेड कंपनी को लीज दी थी, वास्तविकता में उनमें से एक का भी पालन ठीक ढंग से नहीं किया गया है। पिछले २५ सालों से लवकुशनगर क्षेत्र के ग्राम कहटरा में चल रही ग्रेनाइट खदान में काम करने वाले मजदूरों की सिलकोसिस बीमारी से लगातार मौत हो रही हैं। जिन कारणों से मजदूरों को यह बीमारी हो रही है, उन्हें दूर करने के लिए कंपनी को जो मापदंड पूरे करने थे, वे कंपनी ने नहीं किए। यही वजह है कि मजदूरों की जान खतरे में पडऩे लग गइ्र। नियमानुसार जिस खदान की लीज दी गई थी उस क्षेत्र में काम शुरू करने से पहले ही फॉच्र्यून स्टोन्स लिमिटेड को ग्रीन वेल्ट विकसित करना था। खदान के चारों ओर सुरक्षा की द्रष्टि से बाउंड्रीवाल बनानी थी और खदान के चारों तरफ गालैंड के रूप में गहरी खादी खोदनी थी, ताकि बड़े पत्थर नीचे आने से पहले एक स्थान पर रुक सकें और पानी का बहाव न रुक पाए। लेकिन इनमें से किसी भी नियम का पालन नहीं किया गया। केवल रिकॉर्ड पर ग्रीन बेल्ट दर्शाकर हर दो साल में पर्यावरण मंत्रालय की स्वीकृति ली जा रही है। जबकि ग्रीन बेल्ट के नाम पर पूरे खदान क्षेत्र में एक भी पेड़ नहीं लगाया गया है। इससे खदान से उठने वाले धूल-धुएं के प्रदूषण से कटहरा सहित आस-पास के गांव के लोगों को सीधे जूझना पड़ रहा है। वहीं दूसरी ओर खदान की निर्धारित लीज से भी ज्यादा क्षेत्र में उत्खनन करके जमीन के अदर तक से पत्थर निकाले जा रहे हैं। इससे यह खदान कटहरा गांव के पास तक पहुंच गई है। आने वाले समय में गांव के लोगों को अपने स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए यहां से विस्थापन करने की नौबत आ जाएगी।
खांसी से कमजोर हो गए फेंफड़े, प्रदूषण घोंट रहा दम
7 हजार की आबादी वाली ग्राम पंचायत कटहरा के ग्रामीणों का जीवन बीमारी, प्रदूषण और गरीबी-भुखमरी के बीच गुजर रहा है। खांसी से उनके फेंफड़े कमजोर हो चले हैं। धुएं-धूल की धुंध के बीच कटहरा गांव के लोगों का भविष्य अंधकारमय हो गया है। ग्रेनाइट खदान की डस्ट से यहां काम करने वाले कटहरा गांव के मजदूरों को सिलकोसिसि नाम की बीमारी का शिकार बना दिया है। लेकिन रोजगार की मजबूरी ने उनका जीवन खदान तक ही सीमित कर दिया है। खदान में काम करने वाले मजदूरों तक को मेडिकल सुविधाएं मिल रही हैं, जबकि ग्रेनाइट उत्खनन करने वाली कंपनी पूरे क्षेत्र के गांवों में निशुल्क चिकित्सा शिविर लगाने, कटहरा में अस्पताल भवन का निर्माण करने, अस्पताल में निशुल्क डॉक्टर की व्यवस्था करने और आस-पास के गांवों में टैंकर से निशुल्क पानी वितरण की योजनाएं केवल कागजों पर चला रही है। जबकि जमीनी हकीकत इसके विपरीत है। न गांव में अस्पताल है, न डॉक्टर, पेयजल का संकट कभी कम नहीं हुआ। टैंकर से पानी का वितरण भी आज तक नहीं कराया गया। कटहरा में तालाब के गहरीकरण से लेकर सामूहिक कन्या विवाह के आयोजन के दावे भी झूठे साबित हुए हैं। गांव के देवकीनंदन, आशाराम, रामगुलाम ने बताया कि कंपनी ने जो वायदे किए थे, वे एक भी पूरे नहीं किए। केवल यहां के लोगों का शोषण हुआ है।
जान हथेली पर लेकर काम करते हैं मजूदर
हर साल लवकुशनगर क्षेत्र की खदानों से करीब 100 करोड़ रुपए से अधिक का टर्न-ओवर करने वाली फॉच्र्यून स्टोन्स लिमिटेड कंपनी की कटहरा स्थिति खदान में काम करने वाले मजदूर अपनी जान हथेली पर लेकर हर समय मौत से सामना करते हैं। मजदूरों की सुरक्षा के लिए न तो मॉस्क है, न हेल्मेट और न ही जूत व ग्लब्स होते हैं। पीने के लिए भी उन्हें साफ पानी नहीं मिल रहा है। विस्फोट के बीच कई मजदूर काम करते मिले। परमेश्वरीदीन ने बताया कि दो माह पहले ही उनके एक साथी की मौत इसी खदान में घायल होने के बाद हो गई थी। दलपत और हरसेवक ने बताया कि बीमारी के कारण आधा दर्जन लोग यहां से इसलिए काम छोड़कर भाग चुके हैं, क्योंकि वे जो कमाते थे, पूरा रुपया उनके इलाज में ही लग जाता था।
नहीं है ठोस अवशिष्ट पदार्थ का प्रबंधन
खदान में प्रस्तावित उत्खनन से पहले पांच सालों के दौरान जो भी अवशिष्ट पदार्थ निकलेगा उसको लीज क्षेत्र के बाहर कंपनी को स्वयं के क्षेत्र में रखाना चाहिए था लेकिन कटहरा खदान में चारों तरफ ठोस अवशिष्ट पदार्थ बिखरा पड़ा है। खुदाई के पश्चात लीज क्षेत्र का पुर्नभरण कार्य भी किया जाना चाहिए, लेकिन यहां सभी नियमों को ताक पर रखकर लगातार खुदाई की जा रही है, इससे यह खदान गांव के महज 10-15 मीटर दूर ही रह गई है।
ग्रीन वेल्ट की जगह बन गया रेगिस्तान
पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति के अनुसार खनिज अयस्क खदान क्षेत्र में उत्खनन शुरू करने से पहले ही ग्रीन बेल्ट विकसित किया जाना चाहिए। सुरक्षा मानको का ध्यान रखना चाहिए, लेकिन कटहरा स्थित खदान पूरे गांव को रेगिस्तान बना रही है। हर कहीं धूल, धुआं के गुबार, पत्थरों से पटी जमीन और बेतरतीब तरीके से किया जाने वाला उत्खनन देखकर ही यहां चल रही प्रकृति की विनास लीला का अंदाजा लगाया जा सकता है। जबकि नियमानुसार हरित पट्टिका का विकास किया जाना चाहिए था। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। ग्रेनाइट खनन कर रही कंपनी ने अब तक 32 हजार 55५ पौधे लगाने का दावा किया है। लेकिन यह पेड़ कहां लगे और कहां गायब हो गए, कुछ भी पता नहीं चला। खदान क्षेत्र में कहीं भी वानस्पितिक सुंदरता के लिए यहां कुछ नहीं किया गया। खदान क्षेत्र की सड़क पर नियमिति पानी का छिड़काव, रखरखाव और आबादी एरिया की सुरक्षा को लेकर भी यहां कोई काम नहीं किया गया है। केवल खनिज का दोहन करके ही मजदूरों का शोषण किया जा रहा है।
कंपनी का दावा
1. खदान क्षेत्र में धूलीय वातावरण में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए डस्ट मास्क उपलब्ध करवाए गए हैं।
2. लीज क्षेत्र के चारों तरफ वृक्षारोपण किया जा रहा है।
3. वाहन एवं मशीनों का उचित रखरखाव किया जा रहा है जिससे उनसे होने वाला उत्सर्जन नियंत्रित रहे।
4. धूल के प्रदूषण को कम करने के लिए लीज क्षेत्र की परिधि एवं खदान रोड के किनारे वृक्षारोपण।
5. खदान की रोड पर जल छिड़काव की व्यवस्था की गई है जो कि लगातार जारी रहेगी।
6. ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए मुख्य स्त्रोत क्षेदन, विस्फोट सामग्री संकलन मशीन एवं परिवहन होते हैं।
7. जल प्रदूषण नियंत्रण के लिए सभी तरह के जरूरी उपाय किए जा रहे हैं। कई प्रकार की विधियां अपनाई जाती हैं।
जमीनी हकीकत :
1. खदान क्षेत्र में काम करने वाले किसी भी मजदूर को आज तक कोई भी मास्क नहीं दिया गया।
2.लीज क्षेत्र के चारो तरफ कहीं भी पौधे नहीं लगाए। इस साल एक भी पौधा नहीं रोपा गया।
३. खदान क्षेत्र मे चल रही मशीनें-वाहनों के निकलने वाला धुआं मजदूरों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है।
4. खदान क्षेत्र में कहीं भी पौधा नहीं लगाया गया है। सड़क के किनारे पौधों की जगह पत्थर डले हैं। मुख्य सड़क पर वाहनों की कतारें रहती हैं।
5. खदान क्षेत्र में हर जगह धुएं और धूल के गुबार ही दिखते हैँ। कहीं भी जल छिड़काव की कोई व्यवस्था नहीं है। मजदूरों तक को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं है।
6. खदान क्षेत्र में हर समय मशीनों, वाहनेां की तेज आवाजें, विस्फोट के धमाके और भारी शोर-शराबा होता है। गांव की मुख्य सड़क पर दिनभर वाहनों की आवाजाही होती है।
7. खदान क्षेत्र में जगह-जगह गड्ढों में पानी भरा है। खदान से निकलने वाले पानी में सिल्ट की मात्रा इतनी है कि उसे पीकर ही मजदूर बीमार हो रहे हैं।
जीएम विदेश यात्रा पर हैं, उनसे ही बात करिए
पौधे लगाने के लिए योजना है, जल्द ही प्लांटेशन कराया जाएगा। बाउंड्रीवॉल निर्माण के लिए कंपनी स्तर से ही काम होता है। इसलिए कंपनी के जीएम सुरेश शर्मा ही इस बारे में बता पाएंगे। वे अभी विदेश यात्रा पर गए हैं। पर्यावरण विभाग की स्वीकृति कैसे और कहा से मिलती है वे ही बता पाएंगे। खदान की मजदूरों की सुरक्षा और उन्हें साफ पेयजल उपलब्ध करवाने के लिए जल्दी पहल की जाएगी।
– एस सिंह, साइट इंजीनियर, कटहरा खदान
यह गंभीर चूक है, इस पर कार्रवाई करेंगे :
– पर्यावरण विभाग की अनुमति और नियम शर्तों के अनुसार खदान क्षेत्र में ग्रीन बेल्ट विकसित किया जाना अनिवार्य था, लेकिन इस दिशा में अगर कंपनी ने काम नहीं किया तो यह गंभीर चूक है। यह अपराध की श्रेणी में आता है। तुरंत टीम भेजकर निरीक्षण कराया जाएगा और वरिष्ठ अधिकारियों को प्रतिवेदन भेजकर कार्रवाई कराई जाएगी।
– देवेष मरकाम, जिला खनिज अधिकारी
टीम भेजकर पूरे मामले की पड़ताल कराई जाएगी
– कटहरा में उत्खनन करने वाली ग्रेनाइट कंपनी ने अगर नियम-शर्तों का पालन नहीं किया है तो इस बारे में तुरंत टीम भेजकर जांच कराई जाएगी। अगर कंपनी मापदंडों का पालन नहीं करती है तो उसके खिलाफ कार्रवाई प्रस्तावित कराई जाएगी।
– रमेश भंडारी, कलेक्टर