छतरपुरPublished: Dec 18, 2018 01:27:15 am
Neeraj soni
मुसीबत: गांव में नहीं मिल रहा रोजगार, खेती से हो रहा नुकसान
Half of the 50 villages in the district are migrated
छतरपुर। बुंदेलखंड का पलायन से पुराना नाता है। खासकर सर्दियों के दिनों में बड़े शहरों की तरफ बसों और ट्रेनों में भरकर ग्रामीण जाने लगते हैं। हर बार की तरह जिले में चुनाव होने के बाद ग्रामीण क्षेत्रों से लोग परिवार सहित घर-गांव छोड़कर बड़े शहरों की ओर रुख कर रहे है। जिले के 50 से अधिक गांवों में अब तक आधी आबादी रोजगार की तलाश में बाहर जा चुकी है। गांव तेजी से खाली हो रहे हैं। लेकिन शासन-प्रशासन स्तर पर इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। अफसर केवल इतना कह रहे हैं कि हम जल्द ही गांवों में ही लोगों को रोजगार देने का प्रयास करेंगे।
गांव में काम न मिलने से परिवार की रोजी रोटी चलाने के लिए ग्रामीण गांवो को छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहे है। यह सिलसिला थमने की बजाए बढ़ ही़ रहा है, जिससे बडी़ संख्या में गांव सूने हो गए हैं। रोजी रोटी कमानें गए गांवो के लोग केवल वृद्धो और बच्चों को छोड़ गए है। सैकड़ों घरों में लटके ताले बुंदेलखंड में रोजी रोटी के संकट की सच्चाई को बयान कर रहे हैं। मौसम की बेरूखी से खेती किसान के हर साल का नुक्सान का सौदा बन गई हैं। वही एसी हालत में परिवार की रोजी रोटी चलाने की मजबूरी के लिए ग्रामीणो के सामने एक ही रास्ता बचा है वो है पलायन। बड़ी संख्या में अपना घर, खेती, गांव,मां बाप और बच्चों को छोड़कर शहरों की ओर चले गए है। स्थिति यह है कि ग्रामीणों को गांव में काम दिलाने के लिए कथित तौर पर तो कई योजनाएं संचालित की गई है। लेकिन उनका लाभ सही मायने में ग्रामीणों को मिलने के बजाय योजना संचालक अधिकारियों और पंचायत प्रतिनिधियों तक ही सीaमित है। व्यापक स्तर पर फर्जीवाड़ा करके एसी योजनाओं का लाभ ग्रामीण को नही दिया गया है इसी का नतीजा है कि बेरोजगार ग्रामीण रोटी के लिए काम की तलाश में पलायन को मजबूर है। आंकड़ो पर नजर डालते तो एक शासकीय संस्था द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार छतरपुर जिले के ५० फीसदी गांवों के ४५ से ५० फीसदी लोग अब तक पलायन कर चुके हंै। अन्य गांवों से भी पलायन के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। अंदरूनी क्षेत्रों में बसे २० प्रतिशत गांवों से २५ प्रतिशत लोग शहरो की तरफ जा चुके ह।ै इसी तरह अन्य मजरे-टोले लगभग सूने हो चुके है। सबसे अधिक पलायन बिजावर और बड़ामलहरा विकासखंड के अन्तर्गत ग्राम धरमपुरा, लखनवा, जैतपुर, किसनपुर, एरोरा, बड़ागांव, खरयानीं, पलकोंहा, विजयपुर, अमरोनी, राजपुरा, नंदगाय, रेतपुरा, रामगढ़, खैरा, डिलारी, शाहगढ़, पिपरिया, गढ़ा, भरतौली, अनगौर, पिपट, पनागर, रामटोरिया सहित करीब दो दर्जन गांवों में है। पलायन की दर्द भरी तस्वीर इन गांवों में देखने को मिल रही है।
ग्रामीण बोले, काम करने नहीं जाएंगे तो खाएंगे क्या :
छतरपुर के बस स्टेंड सहित खजुराहो के रेलवे स्टेशन पर दिल्ली व अन्य बड़े शहरो की ओर काम की तलाश में जाने वाले ग्रामीणों को देखकर इस आंचल से पलायन की बढ़ती रफतार का अन्दाजा लगाया जा सकता है। मजबूरी में गांव नहीं छोडऩे वाले गा्रमीण रूंधे गले से बताते है की गांव में काम नहीं है और खेती साथ दे नहीं रही। एसे में गांव नही छोड़ेंगे तो परिवार का पेट कैसे पालेगे। बाजना क्षेत्र के धनीराम आदिवाशी, रामू कोंदर, किसनगढ़ आंचल के कलुआ अहिरवार, कमलीबाई, रामदास अदिवासी और रज्जू सेन ने बताया की खरीफ की फसल असमय बरसात के कारण खराब हो गई थी। जमा पूंजी भी नही निकल पाई। रबी की फसल में सिंचाई के लिए पानी कम होने से नुक्सान की संभावना देखते हुए कम बुआई की है एसे में पैसे कमाने केलिए गांव छोडऩा पड़ रहा है। गांव में परिवार के कुछ सदस्य, बच्चे भर रह गए है। क ई ग्रामीणों ने बताया की गांव छोडऩा किसी को अच्छा नही लगता, लेकिन जब खाने के लाले पडऩे लगे तो गांव छोड़कर जाना ही है।
न मुआवजा मिला न फसल बीम की रकम:
जब जब फसल पर सूखा या अतिवृष्टि की मार पड़ी तब-तब सरकार की ओर से किसानों को दिलासा देकर पर्याप्त मुआबजा देने का ऐलान किया गया। इसके साथ ही किसानो की फसलों का बाकायदा कागजों पर बीमा करने का अभियान भी चलाया गया, लेकिन न ही किसानों को मुआबजा मिला और न ही नुक्सान होने पर फसल बीमा की राशि का लाभ मिल सका। किसान प्रदर्शन और शिकायत पत्रों के द्वारा फसल में नुक्सान की भरपाई की मांग करते हुए अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों चक्क र लगाते रहे और नतीजा कुछ नहीं निकला। इस पूरी प्रक्रि या में मुआवजा की सर्वे सूची में बार बार फसल में घाटे से टूट चुके किसान के सामने पलायन के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है।
गांवों में रोजगार उपलब्ध करवाएंगे
जिले में कई कारणों से लोग गांव छोड़कर काम के लिए शहर जाते रहे है। यदि प्रशासन की नाकामी बताकर पलायन का कारण गिनाए गए तो ये गलत है। अभी चुनाव हुए है। आचार संहिता लगी रही, इसलिए कई काम रूक गए थे। अब धीरे-धीरे प्रशासन का कार्य सुचारू हो रहा है। गांवों में विकास कार्य के जरिए ग्रामीणो को काम दिया जाएगा। अन्य योजनाओं के लाभ भी दिलाएंगे
डीके मौर्य, अपर कलेक्टर छतरपुर