बच्चों ने परेशान किया तो आश्रम में लेनी पड़ी शरण
बड़ामलहरा की गिरजा देवी ७१ साल की हो चुकी हैं। उनकी खुद की कोई संतान नहीं हुई तो वंश चलाने के लिए उन्होंने पति की दूसरी शादी के लिए सहमति दे गी। दूसरी पत्नी से बच्चे हुए , लेकिन वर्ष 2017 में डिप्टी रेंजर रहे पति की मौत के बाद बच्चो ने परेशान करना शुरु कर दिया। इससे तंग आकर गिरजा खुद ही आश्रम में रहने आ गई। अब उन्हें आश्रम में 14 साल हो गए हैं। लेकिन अब भी वे कहती है बेटा कपूत हो सकता है। पर मां हमेशा उसका भला ही चाहती है।
बड़ामलहरा की गिरजा देवी ७१ साल की हो चुकी हैं। उनकी खुद की कोई संतान नहीं हुई तो वंश चलाने के लिए उन्होंने पति की दूसरी शादी के लिए सहमति दे गी। दूसरी पत्नी से बच्चे हुए , लेकिन वर्ष 2017 में डिप्टी रेंजर रहे पति की मौत के बाद बच्चो ने परेशान करना शुरु कर दिया। इससे तंग आकर गिरजा खुद ही आश्रम में रहने आ गई। अब उन्हें आश्रम में 14 साल हो गए हैं। लेकिन अब भी वे कहती है बेटा कपूत हो सकता है। पर मां हमेशा उसका भला ही चाहती है।
परेशान होकर आए आश्रम
लवकुशनगर निवासी ८० बसंत पार कर चुकी कमालदेवी और उनके पति एक साल से आश्रम में रह रहे हैं। पति पटवारी रहे हैं। लेकिन दुर्भाग्य से बेटा अब इस दुनिया में नहीं है। पोता विवाद करता, इसलिए तंग आकर दोनों आश्रम में आ गए। अब यही उनकी जिंदगी गुजर रही है। पोता केवल पेंशन लेने के लिए उन्हें फोन करता है। फिर भी वे आश्रम में खुशी से रह रहे हैं। उन्हें अब भी दुख नहीं कि बेटे का बेटा क्या कर रहा है। उन्हें अब आश्रम ही घर और परिवार लगता है।
लवकुशनगर निवासी ८० बसंत पार कर चुकी कमालदेवी और उनके पति एक साल से आश्रम में रह रहे हैं। पति पटवारी रहे हैं। लेकिन दुर्भाग्य से बेटा अब इस दुनिया में नहीं है। पोता विवाद करता, इसलिए तंग आकर दोनों आश्रम में आ गए। अब यही उनकी जिंदगी गुजर रही है। पोता केवल पेंशन लेने के लिए उन्हें फोन करता है। फिर भी वे आश्रम में खुशी से रह रहे हैं। उन्हें अब भी दुख नहीं कि बेटे का बेटा क्या कर रहा है। उन्हें अब आश्रम ही घर और परिवार लगता है।
बेटों ने छोड़ा, फिर भी मां कह रही उनकी गलती नहीं
70 साल की लक्ष्मी चौहान के 2 बेटे व चार बेटियां हैं। लेकिन फिर भी उन्हें आश्रम में रहना पड़ रहा है। मां की ममता ऐसी है कि अब भी बेटों से मिलने की ललक है, लेकिन मजबूर हैं। बस राह देखती है कि शायद कभी कोई बेटा-बेटी उनसे मिलने आ जाए। इसी तरह दो बेटों की मां 72 वर्षीय शांति बाई भी आश्रम में रह रही हैं। एक बेटा दिव्यांग है, दूसरा सैलून चलाकर परिवार चलाता है। बुढ़ापे में जब उन्हें सहारे की जरूरत थी, तब उन्ही बेटों ने जिन्हें उन्होंने उंगली पकड़कर चलाना सिखाया, आश्रम में छोड़ दिया। शाङ्क्षत देवी कहती है बेटे क्या करते, बहू से नोक झोंक होने लगी थी। मुझे परेशान नहीं देख सकते थे, इसलिए आश्रम में छोड़ गए। दुख केवल इतना है कि आश्रम छोडऩे के बाद बेटों ने कभी हाल नहीं पूछा। लेकिन कोई बात नहीं बेटा भी मजबूर है।
70 साल की लक्ष्मी चौहान के 2 बेटे व चार बेटियां हैं। लेकिन फिर भी उन्हें आश्रम में रहना पड़ रहा है। मां की ममता ऐसी है कि अब भी बेटों से मिलने की ललक है, लेकिन मजबूर हैं। बस राह देखती है कि शायद कभी कोई बेटा-बेटी उनसे मिलने आ जाए। इसी तरह दो बेटों की मां 72 वर्षीय शांति बाई भी आश्रम में रह रही हैं। एक बेटा दिव्यांग है, दूसरा सैलून चलाकर परिवार चलाता है। बुढ़ापे में जब उन्हें सहारे की जरूरत थी, तब उन्ही बेटों ने जिन्हें उन्होंने उंगली पकड़कर चलाना सिखाया, आश्रम में छोड़ दिया। शाङ्क्षत देवी कहती है बेटे क्या करते, बहू से नोक झोंक होने लगी थी। मुझे परेशान नहीं देख सकते थे, इसलिए आश्रम में छोड़ गए। दुख केवल इतना है कि आश्रम छोडऩे के बाद बेटों ने कभी हाल नहीं पूछा। लेकिन कोई बात नहीं बेटा भी मजबूर है।