ये है मामला
शहर में महोबा रोड पर प्रसिद्ध जानराय टौरिया मंदिर हैं। राजस्व रिकॉर्ड के मुताबिक 13 खसरा नबंर पर 2.114 हेक्टेयर जमीन मंदिर की है। मंदिर की संपत्ति शासकीय है, जिसका प्रबंधक कलेक्टर छतरपुर हैं। लेकिन राजस्व रिकॉर्ड में कलेक्टर के अलावा महंत भगवान दास श्रंगारी महाराज का नाम दर्ज है। जबकि एसडीएम छतरपुर व रजिस्ट्रार पब्लिक ट्रस्ट ने कभी इन्हें मंदिर का पुजारी नियुक्त नहीं किया है। मंदिर के पुजारी का नाम भी राजस्व रिकॉर्ड में मालिक के बतौर दर्ज नहीं होता है। लेकिन इस मामले में पुजारी तक न होने के बावजूद नाम दर्ज है। जिसे रिकॉर्ड से हटाने और महंत को पद से हटाने के लिए मलका पीठ के पुजारी आशुतोष ब्रम्हचारी ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई। जिस पर ुसुनवाई के बाद हाईकोर्ट के जज विशाल धगट ने मामले की सुनवाई रजिस्ट्रार पब्लिक ट्रस्ट से कराने के निर्देश दिए हैं।
शहर में महोबा रोड पर प्रसिद्ध जानराय टौरिया मंदिर हैं। राजस्व रिकॉर्ड के मुताबिक 13 खसरा नबंर पर 2.114 हेक्टेयर जमीन मंदिर की है। मंदिर की संपत्ति शासकीय है, जिसका प्रबंधक कलेक्टर छतरपुर हैं। लेकिन राजस्व रिकॉर्ड में कलेक्टर के अलावा महंत भगवान दास श्रंगारी महाराज का नाम दर्ज है। जबकि एसडीएम छतरपुर व रजिस्ट्रार पब्लिक ट्रस्ट ने कभी इन्हें मंदिर का पुजारी नियुक्त नहीं किया है। मंदिर के पुजारी का नाम भी राजस्व रिकॉर्ड में मालिक के बतौर दर्ज नहीं होता है। लेकिन इस मामले में पुजारी तक न होने के बावजूद नाम दर्ज है। जिसे रिकॉर्ड से हटाने और महंत को पद से हटाने के लिए मलका पीठ के पुजारी आशुतोष ब्रम्हचारी ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई। जिस पर ुसुनवाई के बाद हाईकोर्ट के जज विशाल धगट ने मामले की सुनवाई रजिस्ट्रार पब्लिक ट्रस्ट से कराने के निर्देश दिए हैं।
जिला न्यायालय भी खारिज कर चुका है मालिकाना दावा
भगवान दास श्रंगारी महाराज ने मंदिर की जमीन पर मालिकाना हक के लिए जिला न्यायालय में अपील दायर की थी। जिस पर फैसला देते हुए न्यायालय तृतीय अपर जिला न्यायाधीश छतरपुर ने 29 जनवरी 1998 को फैसला देते हुए महंत का दावा खारिज कर दिया। जिसमें महंत ने मंदिर की शासकीय जमीन पर स्वामी के बतौर उनका नाम दर्ज करने की अपील की गई थी। इस मामले में हाईकोर्ट ने भी मालिकाना हक की याचिका पर सुनवाई के बाद खारिज कर दिया था।
भगवान दास श्रंगारी महाराज ने मंदिर की जमीन पर मालिकाना हक के लिए जिला न्यायालय में अपील दायर की थी। जिस पर फैसला देते हुए न्यायालय तृतीय अपर जिला न्यायाधीश छतरपुर ने 29 जनवरी 1998 को फैसला देते हुए महंत का दावा खारिज कर दिया। जिसमें महंत ने मंदिर की शासकीय जमीन पर स्वामी के बतौर उनका नाम दर्ज करने की अपील की गई थी। इस मामले में हाईकोर्ट ने भी मालिकाना हक की याचिका पर सुनवाई के बाद खारिज कर दिया था।
मंदिर की जमीन पर मैरिज गार्डन व दुकानें
याचिकाकर्ता आशुतोष ब्रम्हचारी का आरोप है कि मंदिर की बेशकीमती जमीन पर एक मैरिज गार्डन और कई दुकानों का निर्माण कराया गया है। महंत भगवान दास रुपए लेकर मंदिर की सरकारी जमीन बेच रहे है और लोगों को कब्जा करा रहे हैं। महंत को कभी भी मंदिर का पुजारी भी नियुक्त नहीं किया गया है, लेकिन वे मंदिर व उसकी संपत्ति पर कब्जा जमाए हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला देकर उनका नाम राजस्व रिकॉर्ड और पद से उन्हें हटाने के लिए याचिका लगाई गई थी। हाईकोर्ट के निर्देश पर पब्लिक रजिस्ट्रार के पास आवेदन किया जाएगा।
एसडीएम कोर्ट में गबन का प्रकरण है लंबित
वर्ष 2004 में तात्कालीन एसडीएम बीएल मिश्रा ने मंदिर की आय की राश के गबन का केस भगवानदास श्रंगारी के खिलाफ शुरु किया था। जो अभी भी कोर्ट में लंबित हैं। वहीं एक और महत्तवपूर्ण तथ्य यह है कि भगवान दास ने खुद कलेक्टर को लिखे पत्रों में मंदिर की जमीन को नजूल जमीन बताते हुए अतिक्रमण हटवाने के लिए वर्ष 2015 और 2016 में कई बार लिखा था। मंदिर की जमीन पर राजस्व रिकॉर्ड में कलेक्टर का नाम प्रबंधक बतौर दर्ज है। लेकिन राजस्व विभाग से मिलीभगत कर खसरा में महंत भगवान दास का नाम भी दर्ज किया गया है। जिसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई थी।
वर्ष 2004 में तात्कालीन एसडीएम बीएल मिश्रा ने मंदिर की आय की राश के गबन का केस भगवानदास श्रंगारी के खिलाफ शुरु किया था। जो अभी भी कोर्ट में लंबित हैं। वहीं एक और महत्तवपूर्ण तथ्य यह है कि भगवान दास ने खुद कलेक्टर को लिखे पत्रों में मंदिर की जमीन को नजूल जमीन बताते हुए अतिक्रमण हटवाने के लिए वर्ष 2015 और 2016 में कई बार लिखा था। मंदिर की जमीन पर राजस्व रिकॉर्ड में कलेक्टर का नाम प्रबंधक बतौर दर्ज है। लेकिन राजस्व विभाग से मिलीभगत कर खसरा में महंत भगवान दास का नाम भी दर्ज किया गया है। जिसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई थी।