पवन मिश्रा ने बताया कि पूरे क्षेत्र में सागौन, केम, जामुन, बहेड़ा, पीपल, तेंदू, अर्जुन आदि वनस्पतियों के वर्षों पुराने पेड़ स्थित है जिन पर यंहा के आदिवासीयों का जीवन आधारित है। इतना ही नहीं यहां अनेक प्रकार के दुर्लभ पक्षियों, गिलरियो, बंदरों, भालुओं, हिरण और मोरों सहित कई प्रकार के जीव जंतुओं का जीवन भी निर्भर है। इस पूरे क्षेत्र में पानी की पहले से ही कमी है और भूजलस्तर काफी नीचे है। लाखों पेड़ों के कटने से यहां के पारिस्थितिक तंत्र पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। वनस्पति से बादलों के आकर्षण में कमी के चलते और पेड़ों की अनुपस्थिति में जो पानी गिरेगा वह भी बहकर निकल जाएगा जिससे सूखे के हालात पैदा होंगे।
पवन मिश्रा के साथ पहुंचे हिन्दू उत्सव समिति के कार्यकर्ताओं ने वृक्षों को रक्षा सूत्र बांधकर उनसे चिपककर जंगल की रक्षा का संकल्प लिया। मिश्रा ने कहा इतिहास गवाह है कि पर्यावरण और प्रकृति से खिलवाड़ करके दुनिया की किसी भी संस्कृति का संवर्धन नही हुआ बल्कि वे काल के गाल में समा गईं। निश्चित रूप से इस पिछड़े क्षेत्र को विकास की महती आवश्यकता है परंतु अपने जल जंगल और जमीन को खोकर नही। आगामी दिनों में जंगल बचाने की रणनीति तैयार की जाएगी। उनके साथ समिति के कमल अवस्थी, मयंक त्रिपाठी, हिंमांशु अग्रवाल, आकाश अवस्थी, लोकेंद्र सोनी, हर्ष शुक्ला, दीपेंद्र रैकवार, विकास शामिल रहे ।