scriptदो सीमाओं के फेर में नष्ट हो रही ऐतिहासिक धरोहर, पुरातत्व विभाग नहीं दे रहा ध्यान | Historical heritage being destroyed by two borders, the archeology dep | Patrika News

दो सीमाओं के फेर में नष्ट हो रही ऐतिहासिक धरोहर, पुरातत्व विभाग नहीं दे रहा ध्यान

locationछतरपुरPublished: Sep 20, 2020 07:14:32 pm

Submitted by:

Unnat Pachauri

– लवारिश हालत में है महत्वपूूर्ण धरोहर रनगढ़ किला

दो सीमाओं के फेर में नष्ट हो रही ऐतिहासिक धरोहर, पुरातत्व विभाग नहीं दे रहा ध्यान

दो सीमाओं के फेर में नष्ट हो रही ऐतिहासिक धरोहर, पुरातत्व विभाग नहीं दे रहा ध्यान

चंदला से अशोक शुक्ला की रिपोर्ट

चंदला। बुंदेलखंड के छतरपुर जिले में ऐतिहासिक और प्राचीन बेमिसाल धरोहरें हैं, जिनकी अपेक्षा के कारण वह अपनी पहचान खोती जा रही हैं। छतरपुर जिले के पर्यटन नक्शे में कई ऐसी ऐतिहासिक धरोहरें शामिल नहीं की गई, जो पर्यटन के क्षेत्र में आकर्षण का केंद्र बन सकती हैं। ऐसी ही एक प्राचीन और ऐतिहासिक धरोहर रनगढ़ का किला है, जिसका दो सीमाओं के फेर में अस्तित्व ही समाप्त होता जा रहा है। विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल खजुराहो से महज 85 किलोमीटर दूर सरवई अंचल में उत्तर प्रदेश की सीमा से गुजरी केन नदी के मध्य में स्थित रनगढ़ का किला चरखारी रियासत के समय निर्मित कराया गया था। जो अपेक्षा के कारण अपना अस्तित्व ही खोता चला जा रहा है। उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के ग्राम गौर शिवपुर व मध्य प्रदेश के ग्राम हाजीपुर, बारीखेड़ा के पास से गुजरी केन नदी के मध्य स्थित छोटी पहाड़ी में रनगढ़ का किला रिसौरा रियासत की रखवाली के लिए सैनिक सुरक्षा चौकी के रूप में चरखारी रियासत के द्वारा 18वीं सदी में निर्मित कराया गया था।
भीषण बाढ़ भी नहीं हिला पाई थी किले की दीवारें
केन नदी के मध्य स्थित रनगढ़ का किला भारी बारिश में कई बाढ़ों का सामना कर चुका है। केन नदी में कई बार आई बाढ़ की तबाही का मंजर न सिर्फ छतरपुर जिले के नदी किनारे बसे गांवों ने झेला है। बल्कि उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के नदी किनारे बसे गावों का भी नुकसान हुआ था। लेकिन बाढ़ का पानी कभी भी किले की दहलीज को नहीं छू पाया। किले के अंदर कई तैखाने बने हुए हैं, उसी के अहाते में एक बेहद सुरक्षित कुआं है। रनगढ़ किले के दो प्रमुख द्वार हैं। जिसमें एक पूर्वी क्षेत्र में व दूसरा दक्षिणी क्षेत्र में बेहद सुरक्षित व आकर्षक तरीके से बनाया गया है। पूर्वी द्वार में दो बरामदे भी बने हैं जहां बैठकर बारिश के दिनों में केन नदी का प्राकृतिक सौंदर्य देखने लायक बनता है।
एक दशक पहले मिली थी अष्टधातु की विशाल तोप
रानगढ़ का किला अपनी ऐतिहासिक कहानी को संजोए हुए पर्यटन के क्षेत्र में एक दशक पहले सुर्खियों में आया था जब यहां दक्षिणी दरवाजे के नीचे 10 कुंटल बजनी अष्टधातु की तोप रेत में दबी लावारिस हालत में पाई गई थी। जिसके स्वामित्व को लेकर दोनों राज्यों में सीमा विवाद की स्थिति निर्मित हुई थी। दोनों राज्यों के राजस्व अमले के द्वारा सीमा की नाप की गई थी जिसमें किले का दक्षिणी द्वार मध्य प्रदेश की सीमा में निकला था, जिस कारण छतरपुर जिला प्रशासन ने तोप अपने कब्जे में लेकर पुरातत्व विभाग को सुपुर्द कर दी थी।
भगवान शंकर की विशाल मूर्ति का हुआ निर्माण
दो सीमाओं के फेर में गुमनामी के अंधेरे से किले को बाहर निकालने का बीड़ा रामबाबू कोटेदार ग्राम गौर और रामकिशोर निषाद ग्राम शिवपुर ने उठा रखा है। इन्हीं के प्रयासों से विगत 12 वर्षों से किले में मकर संक्रांति के दिन विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। किले का विकास हो इस प्रेरणा के मद्देनजर गौर व शिवपुर निवासी इन दोनों व्यक्तियों ने किले को आस्था से जोडऩे का निर्णय लिया, फिर दोनों व्यक्तियों ने शिवपुर, हाजीपुर, गौर, नरैनी, मऊ, गोयरा, बारीखेड़ा, इमलाही, गिरवां, महुआ, कछार आदि ग्राम से पाई पाई चंदा इक_ा कर भगवान शंकर की विशाल मूर्ति का निर्माण किले के प्रांगण में कराया। उस नवनिर्मित मूर्ति को देखने आस पास के ग्रामों से सैकड़ों श्रद्धालु किले में पहुंचते रहे हैं। मूर्तिकार बिनोद कुमार दीक्षित नरैनी ने बताया की मूर्ति का निर्माण पूरा हो चुका है जिसे बनाने में छ: माह का समय लगा है, मूर्ति पर पेंट होना बाकी है, जो जन सहयोग से जल्द ही हो जाएगा।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो