scriptअपेक्षित पड़ी चंदेल कालीन एतिहासिक धरोहरें, संरक्षित करना भूला निभाग | Historical heritage of Chandel carpet, required to be preserved | Patrika News

अपेक्षित पड़ी चंदेल कालीन एतिहासिक धरोहरें, संरक्षित करना भूला निभाग

locationछतरपुरPublished: Sep 17, 2019 12:05:05 am

Submitted by:

Unnat Pachauri

– ब्यास बदौरा में खजुराहो की तरह बने हैं चंदेल कालीन मंदिर, सरकार ध्यान दे तो पर्यटक स्थल में हो सकते हैं तब्दील, स्थानीय लोगों को भी मिलेगा रोजगार

अपेक्षित पड़ी चंदेल कालीन एतिहासिक धरोहरें, संरक्षित करना भूला निभाग

अपेक्षित पड़ी चंदेल कालीन एतिहासिक धरोहरें, संरक्षित करना भूला निभाग,अपेक्षित पड़ी चंदेल कालीन एतिहासिक धरोहरें, संरक्षित करना भूला निभाग,अपेक्षित पड़ी चंदेल कालीन एतिहासिक धरोहरें, संरक्षित करना भूला निभाग,अपेक्षित पड़ी चंदेल कालीन एतिहासिक धरोहरें, संरक्षित करना भूला निभाग,अपेक्षित पड़ी चंदेल कालीन एतिहासिक धरोहरें, संरक्षित करना भूला निभाग,अपेक्षित पड़ी चंदेल कालीन एतिहासिक धरोहरें, संरक्षित करना भूला निभाग,अपेक्षित पड़ी चंदेल कालीन एतिहासिक धरोहरें, संरक्षित करना भूला निभाग

– अशोक शुक्ला
चंदला। बुंदेलखंड के छतरपुर जिले में ऐतिहासिक और प्राचीन बेमिसाल धरोहरें हैं, लेकिन अपेक्षा के कारण यहह धरोहर अपने पहचान खोती जा रही हैं। विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थल खजुराहो के पाषाण शिल्प की तरह खजुराहो से 50 किलोमीटर दूर चंदला के निकट ग्राम ब्यास बदौरा में चंदेल राजाओं द्वारा बनाए गए प्राचीन मंदिर इन दिनों अपेक्षा के कारण धूल में मिल रहे हैं। इन मंदिरों और तालाबों पर खजाना की चाह में खुदाई करने वालों की नजरें लगी हुई हैं। समाचार पत्रों के अलावा स्थानीय लोगों की पहल पर व्यास बदौरा के चंदेल कालीन मंदिरों को पुरातत्व विभाग ने अपने अधीन लेकर इन मंदिरों के कायाकल्प का काफी काम कराया। लेकिन कुछ समय बाद अधूरा कायाकल्प का अभियान बंद कर दिया गया। जिसके बाद से अब तक ऐतिहासिक धरोहरें अपेक्षा की दंश झेल रही हैं। ग्राम व्यास बदौरा में 11 वीं शताब्दी में चंदेल राजाओं ने पत्थर पर अनोखी नक्काशी करके आकर्षक मंदिरों का निर्माण कराया था। इन मंदिरों की निर्माण शैली खजुराहो के मंदिर से काफी मिलती है, लंबे समय से यह मंदिर अपेक्षित पड़े रहे और मंदिरों से जुड़ा हजारों एकड़ का तालाब भी रखरखाव के अभाव में सैकड़ों सालों से फूटा पड़ा है तालाब के रकवे में गांव बस गए और लोग खेती करने लगे हैं। यहां तक तालाब के रकवे में खेती करने वाले किसान भूमि स्वामी बन गए। 11 वीं शताब्दी के मंदिर अतीत और अपेक्षित वर्तमान के प्रतीक बने हुए इन मंदिरों में प्रमुख रूप से शिव मंदिर आकर्षण का केंद्र हैं। जिसके गर्भ गृह में और मुख्य द्वार के गेट पर भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश की प्रतिमाएं पाषाड़ पर उकेरी गई हैं। मंदिर की दहलीज पर विशाल धनुष की आकृति उभरी है, ऐसा मानना है कि धनुष में मंदिर का गूढ़ रहस्य छिपा हुआ है, इसी तरह इस मंदिर के पास योगिनी मंदिर, बारादरी मंदिर, अपनी कलाकृति के कारण आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। स्थानीय लोगों की मांग पर मंदिरों के संबंध में समाचार सुर्खियों में आए और तब वर्ष 2011-12 में विभाग ने मंदिरों को अपने संरक्षण में लिया था। उस समय एक कार्ययोजना तैयार कर पुरातत्व विभाग ने मंदिरों के रखरखाव, सुरक्षा और संरक्षण के लिए कार्य शुरू कराया गया था। इसके लिए पुरातत्व विभाग ग्वालियर ने शासन के करोड़ों रुपए खर्च कर इन मंदिरों का कायाकल्प भी किया गया। चंदला गौहानी मार्ग पर बंशिया तक तालाब की बंधान से 2 किलोमीटर डामरीकृत सड़क भी बनाई गई थी। लेकिन 75 फीसदी काम होने के बाद अचानक कुछ वर्ष पहले काम रोक दिया गया और तब से लेकर आज तक एक बार फिर अनूठे पाषाड़ सिल्प मंदिर अपेक्षित होने का दंश झेल रहे हैं। आने वाले समय में यदि प्रशासन ने मंदिरों के लिए कारगर कदम नहीं उठाए गए तो 11वीं सदी की ऐतिहासिक धरोहर वक्त की मार से धूल में मिल जाएगी।
बदहाल हो गया विशाल तालाब
ब्यास बदौरा में चंदेल राजाओं ने 11वीं सदी में विशाल तालाब का निर्माण कराया था जिसका 2 किलोमीटर लंबा 50 मीटर चौड़ा मजबूत बंधान आज भी दिखाई देता है जो बर्षों पहले से फूटा पड़ा है। जिसके रकवे में ग्राम खुर्द गुड़ा, बंशिया, व्यास बदौरा, पडऱी, घूरा, चौबिन ताला और कनभई सहित 7 गांव बसे हुए हैं। इस तालाब की मजबूत बंधन देखकर तालाब की विशालता का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस तालाब में मड़इयन घाट पर सीढिय़ां बनी हैं, ऐसा मानता है कि चंदेल रानियां तालाब में स्नान करती होगीं और फिर शिव मंदिर, योगिनी मंदिर में पूजा अर्चना करने जाती होंगी। शासन चाहे तो इस तालाब को बंधवा कर तालाब के रकवे में बसे गांवों को विस्थापित कर एक बांध के रूप में क्षेत्र में सिंचाई की संभावना बढ़ा सकती है।
प्राचीन धरोहरों की हो रही खुदाई
गांव के रहने वाले राममिलन तिवारी और ७५ वर्षीय हल्कू तिवारी ने बताया कि बरसों से अपेक्षित पड़ी इन चंदेल कालीन धरोहरों पर धन के लालच में खजाने में चोरों की नजर लगी हुई है। इन मंदिरों के अलावा गांव के दूसरे छोर में स्थित कुछ मंदिरों के गर्भ ग्रह में खुदाई भी की गई है धन की लालच में हालांकि ऐसा एक भी मामला सामने नहीं आया कि मंदिरों के नीचे दबी संपत्ति किसी को मिली हो पर फिर भी दफीना खोर (खजाना के लालची) धन की लालच में मंदिरों को मिटाने में जुटे हैं। शिव मंदिर की दहलीज पर बनी विशालकाय धनुष की आकृति उभरी हुई है जिसे मंदिर के नीचे दबे अकूत खजाने का संकेतक मानकर दफीना गिरोह सक्रिय हैं। अगर प्रशासन ने समय रहते ध्यान नहीं दिया तो इनका वजूद नष्ट होने में यह लोग कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
पर्यटन की बढ़ सकती हैं संभावनाएं, मिलेगा रोजगार
पर्यटन विभाग इन मंदिरों को वर्तमान स्वरूप में भी अगर संरक्षित कर रहा है तो आने वाले समय में पर्यटकों के आने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। बशर्ते इन मंदिरों के आसपास उठने बैठने की, साफ सफाई और स्वच्छ पानी पीने की व्यवस्था मुहैया करा दी जाए, तो उसी दिन से पर्यटकों का आना-जाना शुरू होना निश्चित है। क्योंकि चंदेल कालीन व्यास बदौरा की ऐतिहासिक धरोहरें आज भी अपनी खूबसूरती समेंटे चली आ रही हैं। इसके साथ स्थानीय रहवासियों के लिए रोजगार के अवसर भी खुलेंगे और गांव से हो रहा पलायान पर भी कमी आएगी।

टाल मटोली में लगे अधिकारी

इनका कहना है
पुरातत्व को संरक्षित करने का कार्य प्रदेश सरकार द्वारा किया जाता है। हमारे अंडर में छतरपुर जिले में मात्र खजुराहो के मंदिर ही हैं। इसके अलावा राज्य सरकार के अधीन होता है।
कमलकांत वर्मा, सहायक संरक्षण अधिकारी, भारतीय पुरातत्व विभाग
इनका कहना है
यह कार्य हमारी ग्वालियर शाखा द्वारा कराया गया था। लेकिन बाद में बंद क्यों कर दिया गया इसकी जानकारी हमारे पास नहीं है।
आशुतोष , असिसटेंट क्यूरेटर, पुरातत्व विभाग, धुबेला (छतरपुर)

अपेक्षित पड़ी चंदेल कालीन एतिहासिक धरोहरें, संरक्षित करना भूला निभाग
अपेक्षित पड़ी चंदेल कालीन एतिहासिक धरोहरें, संरक्षित करना भूला निभाग
अपेक्षित पड़ी चंदेल कालीन एतिहासिक धरोहरें, संरक्षित करना भूला निभाग
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो