ब्यास बदौरा में चंदेल राजाओं ने 11वीं सदी में विशाल तालाब का निर्माण कराया था जिसका 2 किलोमीटर लंबा 50 मीटर चौड़ा मजबूत बंधान आज भी दिखाई देता है जो बर्षों पहले से फूटा पड़ा है। जिसके रकवे में ग्राम खुर्द गुड़ा, बंशिया, व्यास बदौरा, पडऱी, घूरा, चौबिन ताला और कनभई सहित 7 गांव बसे हुए हैं। इस तालाब की मजबूत बंधन देखकर तालाब की विशालता का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस तालाब में मड़इयन घाट पर सीढिय़ां बनी हैं, ऐसा मानता है कि चंदेल रानियां तालाब में स्नान करती होगीं और फिर शिव मंदिर, योगिनी मंदिर में पूजा अर्चना करने जाती होंगी। शासन चाहे तो इस तालाब को बंधवा कर तालाब के रकवे में बसे गांवों को विस्थापित कर एक बांध के रूप में क्षेत्र में सिंचाई की संभावना बढ़ा सकती है।
गांव के रहने वाले राममिलन तिवारी और ७५ वर्षीय हल्कू तिवारी ने बताया कि बरसों से अपेक्षित पड़ी इन चंदेल कालीन धरोहरों पर धन के लालच में खजाने में चोरों की नजर लगी हुई है। इन मंदिरों के अलावा गांव के दूसरे छोर में स्थित कुछ मंदिरों के गर्भ ग्रह में खुदाई भी की गई है धन की लालच में हालांकि ऐसा एक भी मामला सामने नहीं आया कि मंदिरों के नीचे दबी संपत्ति किसी को मिली हो पर फिर भी दफीना खोर (खजाना के लालची) धन की लालच में मंदिरों को मिटाने में जुटे हैं। शिव मंदिर की दहलीज पर बनी विशालकाय धनुष की आकृति उभरी हुई है जिसे मंदिर के नीचे दबे अकूत खजाने का संकेतक मानकर दफीना गिरोह सक्रिय हैं। अगर प्रशासन ने समय रहते ध्यान नहीं दिया तो इनका वजूद नष्ट होने में यह लोग कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
पर्यटन विभाग इन मंदिरों को वर्तमान स्वरूप में भी अगर संरक्षित कर रहा है तो आने वाले समय में पर्यटकों के आने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। बशर्ते इन मंदिरों के आसपास उठने बैठने की, साफ सफाई और स्वच्छ पानी पीने की व्यवस्था मुहैया करा दी जाए, तो उसी दिन से पर्यटकों का आना-जाना शुरू होना निश्चित है। क्योंकि चंदेल कालीन व्यास बदौरा की ऐतिहासिक धरोहरें आज भी अपनी खूबसूरती समेंटे चली आ रही हैं। इसके साथ स्थानीय रहवासियों के लिए रोजगार के अवसर भी खुलेंगे और गांव से हो रहा पलायान पर भी कमी आएगी।
टाल मटोली में लगे अधिकारी इनका कहना है
पुरातत्व को संरक्षित करने का कार्य प्रदेश सरकार द्वारा किया जाता है। हमारे अंडर में छतरपुर जिले में मात्र खजुराहो के मंदिर ही हैं। इसके अलावा राज्य सरकार के अधीन होता है।
कमलकांत वर्मा, सहायक संरक्षण अधिकारी, भारतीय पुरातत्व विभाग
यह कार्य हमारी ग्वालियर शाखा द्वारा कराया गया था। लेकिन बाद में बंद क्यों कर दिया गया इसकी जानकारी हमारे पास नहीं है।
आशुतोष , असिसटेंट क्यूरेटर, पुरातत्व विभाग, धुबेला (छतरपुर)