छतरपुर

टेंडर व्यवस्था की कमजोरियों से ही टपकता है ‘हनी’

ई-टेंडर के बाद भी रास्ते निकाल मनमाफिक तरीके से दिए जाते हैं टेंडर

छतरपुरOct 10, 2019 / 01:35 am

हामिद खान

टेंडर व्यवस्था की कमजोरियों से ही टपकता है ‘हनी’

छतरपुर/इंदौर . हनीट्र्रैप मामला सामने आने के बाद सरकार की टेंडर व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं।मनमानी रोकने के लिए सरकार ने टेंडर प्रक्रिया को ऑनलाइन करने के साथ ही पारदर्शी करने के दावे किए पर हनीट्रैप मामले ने न सिर्फ कई के चरित्रों को, बल्कि पूरी व्यवस्था की खामियों को ही उजागर कर दिया। मामले की तो जांच जारी है, पर व्यवस्थाओं की कमजोरियों को दूर करने पर कोई चर्चा नहीं हो रही है।
शर्तें तय करना
अपने किसी चहेते को टेंडर दिलाने के लिए ज्यादातर सरकारी अफसर इसका उपयोग करते हैं। इसमें संबंधित ठेकेदार की विशेष योग्यता को ही टेंडर शर्तों में मुख्यतौर पर रखा जाता है। ऐसे में टेंडर में केवल एक ही व्यक्ति भाग ले पाता है। टेंडर की प्रक्रिया को शून्य कर फिर से टेंडर बुलाए जाते हैं। दो बार टेंडर प्रक्रिया में एक-एक व्यक्ति के ही भाग लेने के बाद तीसरी बार प्रक्रिया में नियमानुसार उसी व्यक्ति को टेंडर मिल जाता है।
तकनीकी योग्यता
यदि किसी टेंडर में चहेते व्यक्ति के अलावा कोई अन्य भी आता है, तो उसे तकनीकी योग्यता का आधार बनाकर प्रक्रिया से बाहर कर दिया जाता है। चूंकि तकनीकी योग्यता की जांच का पूरा जिम्मा अफसरों के पास रहता है, इसलिए वे इसका मनमाना उपयोग करते हैं।
ठेकेदारों को मना करना
सभी ठेकेदार अफसरों के नियमित संपर्क में रहते हैं। बड़े ठेकेदार भी प्री-बीड के दौरान प्रोजेक्ट की स्थिति जानने अफसरों के पास आते हैं। उस समय अन्य ठेकेदारों को अफसर काम कठिन और दिक्कतों वाला बताकर कठिन योग्यताओं को रख देते हैं। ऐसे में कई बार बड़े ठेकेदार भाग ही नहीं लेते।
पेटी कांट्रेक्ट या सबलेट
यदि कोई चहेता ठेकेदार बड़ा टेंडर लेने के लिए योग्य नहीं है तो उसके लिए पेटी कांट्रेक्ट या सबलेट का रास्ता निकाला जाता है। काम का बड़ा हिस्सा या कभी-कभी पूरा काम ही अफसर मुख्य ठेकेदार को कहकर अपने चहेते को दिलवा देते हैं। उसको मिलने वाले मुनाफे का प्रतिशत भी इसमें तय हो जाता है।
शार्ट टेंडर
कसी काम को तेजी से पूरा करने के लिए शार्ट टेंडर प्रक्रिया को अपनाया जाता है। इसमें काम की स्थिति को दर्शाते हुए टेंडर की प्रक्रिया को बेहद कम समय के लिए रखा जाता है, जिसकी जानकारी चहेते ठेकेदारों को देकर उन्हें ही प्रक्रिया में भाग लेने के लिए कहा जाता है।
बोली पर नजर
टेंडर ऑपरेटर खोलता है। उसके जरिए टेंडर की समय सीमा समाप्त होने के ऐन पहले नजर रखी जाती है। जिन लोगों ने टेंडर फार्म जमा किए, उनकी दर ऑपरेटर मुख्यालय में बैठकर देख लेता है और ऐनवक्त पर उससे कम दर डलवाकर चहेतों को टेंडर दे दिया जाता है।
अतिरिक्त में फायदा
अफसर चहेते ठेकेदारों से टेंडर की दरों से भी कम दरों पर टेंडर डलवा काम दिलवा देते हैं। इस नुकसान की भरपाई उसी टेंडर के नाम पर ज्यादा काम करवा अतिरिक्त काम कागजों में तो काफी बताए जाते हैं, मौके पर बेहद कम कर ठेकेदार का मुनाफा तय कर दिया जाता है।
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