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दवाओं के असर की जांच बिना हो रहा इलाज, बढ़ रहे ड्रग रेजिस्टेंस के मरीज

locationछतरपुरPublished: Jan 19, 2020 12:57:54 am

निजी अस्पतालों में सीबी नॉट जांच के बिना हो रहा इलाज, सामान्य टीबी मरीज भी हो रहे गंभीर

Investigation of the effect of drugs without treatment, patients of increasing drug resistance

Investigation of the effect of drugs without treatment, patients of increasing drug resistance

छतरपुर. जिले में टीबी के मरीजों की न केवल संख्या बढ़ रही है,बल्कि सही इलाज न मिलने से मल्टी ड्रग्स रेजिस्टेंस (एमडीआर) मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है। पिछले पांच साल से हर साल 125 से 150 मरीज ड्रग रेजिस्टेंस के केस सामने आते रहे हैं। लेकिन पिछले वर्ष 2019 में ड्रग रेजिस्टेंस के 205 मामले सामने आए। टीबी का सही इलाज नहीं मिलने से पिछले पांच साल में हर साल 80 से 100 मरीजों की टीबी के कारण मौत हो रही है। जिले में टीबी मरीजों की मौत का प्रतिशत कुल मरीजों का 8 प्रतिशत के आसपास बना हुआ है। ज्यादातर लोग निजी अस्पतालों व निजी चिकित्सकों से टीबी का इलाज कराते हैं। लेकिन प्राइवेट में टीबी के मरीज पर दवा के असर का पता लगाने वाली सीबी नॉट जांच की सुविधा नहीं है। इस वजह से ड्र्ग रेसिस्टेंड के मरीज बढ़ रहे है और टीबी की बीमारी लाइलाज हो गई है। जबकि 50 साल पहले वैज्ञानिकों ने इस बीमारी का इलाज खोज लिया था। लेकिन जिले में आज भी सरकारी आंकड़ों में हर साल 80 से 100 लोग टीबी के कारण मौत के मुंह में समा रहे हैं। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में टीबी के कुल मरीजों की संख्या की एक तिहाई संख्या भारत में है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने टीबी मुक्त भारत के लिए 2025 तक का लक्ष्य रखा है। लेकिन जागरुकता व तंत्र की लापरवाही के कारण टीबी मुक्त होने के बजाए टीबी के मामले गंभीर होते जा रहे हैं।
टीबी के मरीजों के लिए पोषण आहार की सुविधा मुहैया कराने के लिए राशि का वितरण हितग्राहियों के खाते में किया गया था। लेकिन इस वितरण में गड़बड़ी की शिकायतें आने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने चार सदस्यीय कमेटी का गठन कर जांच कराई। डॉ. शरद चौरसिया, डॉ. महेश पहाडिय़ा, डॉ. आरपी गुप्ता और डॉ. एमके प्रजापित ने जांच की तो पता चला कि हितग्राहियों के खाते में ज्यादा रकम डाल दी गई। जांच के बाद जिन यूनिट में गड़बड़ी पाई गई, इनके प्रभारी को सीएमएचओ द्वारा रिकवरी के नोटिस जारी किए गए। सबसे ज्यादा गड़बड़ी लवकुशनगर में पाई गई, जिसमें 1 लाख 77 हजार रुपए का रिकवरी नोटिस जारी किया गया है।
सिर्फ नौगांव में भर्ती व्यवस्था
टीबी जैसी बीमारी से निपटने के लिए जिले में तीन यूनिट बनाई गई हैं। पांच लाख की आबादी पर एक यूनिट बनाई गई है। जिसमें नौगांव, बिजावर व लवकुशनगर आता है। नौगांव यूनिट में हरपालपुर, महाराजपुर, ईशानगर व नौगांव के टीबी के मरीजों का इलाज होता है। वहीं नौगांव में मरीजों की भर्ती होने की भी व्यवस्था है और टीबी के डॉक्टरों की भी नियुक्ति है। दूसरी यूनिट लवकुशनगर में है। जहां पर चंदला, लवकुशनगर, राजनगर, गढ़ीमलहरा के मरीज इलाज कराने के लिए आते हैं। वहीं बिजावर में भी एक यूनिट है जिसमें बिजावर, सटई, बड़ामलहरा, बकस्वाहा के मरीज अपना इलाज कराने के लिए आते हैं। नौगांव यूनिट में ही मरीजों के इलाज के लिए व भर्ती होने की व्यवस्था है। वहीं दो यूनिट बिजावर व लवकुशनगर में न तो टीबी के मरीजों को भर्ती होने के लिए कोई व्यवस्था और या न तो टीबी के कोई डॉक्टर हैं। लवकुशनगर व बिजावर में बीएमओ द्वारा ही ऐसे मरीजों का इलाज किया जाता है।
ये है सीबी नॉट जांच
सीबी नॉट (कार्टिरेज बेस्ड न्यूक्लिक एसिड एम्फिलकेशन टेस्ट) मशीन से मरीज में दवा के असर की जांच की जाती है। मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस (एमडीआर) यानी ज्यादा पॉवर के डोज देने के बाद भी इसका असर नहीं होने वाली दवाओं से पीडि़त मरीजों की पहचान करने इस मशीन में सेंसर लगे हुए हैं, जो आसानी से इस बात का पता लगा लेते हैं कि मरीज टीबी के किस स्टेज में है। सीबी नॉट मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस एमडीआर की जांच रिपोर्ट महज दो घंटे में मिलती है। इस मशीन से यह भी जानकारी मिलेगी कि कौन सी दवा सटीक होगी।इस जांच के लिए प्राइवेट सेक्टर में 2700 रुपए फीस लगती है, जबकि शासकीय अस्पतालों में ये जांच फ्री में होती है।
अधूरे इलाज से मुसीबत

&दो कारणों से जिले में टीबी के मरीज बढ़ रहे हैं। पहला कारण हैं टीबी के बैक्टिीरिया का म्यूटेशन और दूसरा कारण मरीजों द्वारा अनियमित इलाज कराना। मरीज प्राइवेट अस्पताल में न जाकर सरकारी अस्पताल से फ्री इलाज व फ्री जांच सुविधा का लाभ लेकर जल्द ठीक हो सकते हैं।
डॉ. शरद चौरसिया, जिला क्षय अधिकारी

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