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समावेशी संस्कृति समेटे हुए हैं खजुराहो के जैन मंदिर

locationछतरपुरPublished: Feb 22, 2021 11:40:41 pm

कलावार्ता में सामने आए जैन मंदिर के अनूठे राज

Jain temples of Khajuraho boast of inclusive culture

Jain temples of Khajuraho boast of inclusive culture

छतरपुर। डांस फेस्टिवल में कलावार्ता के जरिए भारतीय कलाओं और उनमें निहित दर्शन को पर्यटकों तक पहुंचाने की पहल की गई है। सोमवार को कला समीक्षक प्रोफेसर मारुति नंदन तिवारी ने खजुराहो के दसवीं सदी के पाŸवनाथ मंदिर की समावेशी संस्कृति के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि जैन मंदिर में वैदिक-पौराणिक परंपरा के देवी-देवताओं को भी स्थान दिया गया है। जो उस समय की समावेशी संस्कृति की पहचान हैं। अशोक वाटिका में सीता बैठी है, उसका भी चित्रण जैन मंदिर में है। राम-सीता और हनुमान की मूर्ति है। सीताहरण का दृश्य भी है। यमलार्जुन की मूर्ति है। मदिर में इरॉटिक फिगर भी है, जिसमें मिथुन और मैथुन को दर्शाया गया है।
उन्होंने बताया कि खजुराहो के जैन मंदिर चंदेलों के समय खजुराहो के माहौल और समावेशी संस्कृति को समेटने वाले मंदिर है। इसपर अप्सराओं की मूर्ति भी है, जो सौन्दर्य का प्रतीक हैं। काजल लगाती हुई, पत्र लिखती हुई और दर्पण देखते हुए अप्सराएं मंदिर पर अंकित हैं। मंदिरों में पर्यावरण प्रेम को भी दर्शाया गया है। पशु, पक्षी का चित्रण उस समय की इसी संस्कृति का उदाहरण हैं। कुल मिलाकर पर्यावरण, आम जीवन, देव देवताओं का संसार भी है, जो धार्मिक व आध्यत्मिक महत्व को दर्शाता है। मंदिर में पूरा चर-अचर जगत की समावेशी रुप में अभिव्यक्ति है।
पर्यटकों को पुरातन काल से सीधा जोड रहा हेरीटेज वॉक
-चंदेलकालीन पाषण कला से लोग हो रहे रु-ब-रु
विश्व धरोहर खजुराहो के प्राचीन मंदिरों के रु-बरू होकर लोग पुरातन काल की पाषाण कला की समृद्धि से परिचित हो रहे हैं। 9वीं से 10 वीं सदी के दौरान बनाए गए दुनिया के सबसे अनूठे मंदिर मध्य भारत की कला के उदाहरण हैं। खजुराहो के मंदिर ऐतिहासिक वास्तुकला, प्रेम और जुनून के प्रतीक हैं। इसी कला से रु-ब-रु कराने के लिए खजुराहो में हैरीटेज वॉक का आयोजन खजुराहो डांस फेस्टिवल के दौरान रोजाना किया जा रहा है। हेरीटेज वॉक में अधिकृत गाइड खजुराहो डांस फेस्टिवल में आए लोगों को खजुराहो के सभी मंदिर एक-एक कर घुमाते हैं। हेरीटेज वॉक के जरिए खजुराहो के मंदिर, उसके इतिहास, इसकी जीवंत संस्कृति के बारे में बताया जा रहा है।
खजुराहो डांस फेस्टिवल में बुंदेली नोकनृत्य की धूम
– लोकरंजन के जरिए स्थानीय लोकनृत्य का हो रहा प्रमोशन
– बुंदेली संस्कृति को नजदीक से जान रहे लोग, कलाकारों को मिला मंच
खजुराहो डांस फेस्टिवल में जहां मुख्य मंच पर पारंपरिक क्लासिकल डांस की अंतरराष्ट्रीय प्रस्तुति दी जा रहा हैं, वहीं दूसरी ओर खजुराहो के आसपास के इलाके में दिन के समय लोकरंजन कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। लोकरंजन के अंतर्गत बुंदेलखंड के लोक नृत्य को मंच प्रदान कर स्थानीय कलाकारों और कला को प्रमोट किया जा रहा है। डांस फेस्टिवल के दौरान जिले के स्थानीय कलाकार बुंदेली फोक डांस बधाई, दिवारी, नौरता नृत्य की प्रस्तुति दे रहे हैं।
रोजाना अलग-अलग स्थान पर शाम 4 बजे मंच सजाया जाता और स्थानीय कलाकार लोकरंजन के इस मंच से बुंदेली संस्कृति की छठा विखेरते हैं। इससे न केवल स्थानीय कलाकारों को अवसर मिल रहा है, बल्कि ड्रांस फेस्टिवल में आने वाले लोग बुंदेली संस्कृति को नजदीक से जान पा रहे हैं। बुंदेली रसोई से बुंदेलखंड के भोजन की महक और स्वाद देशभर के लोगों तक पहुंच रहा है। वहीं, लोकरंजन के जरिए बधाई, दिवारी और नौरता जैसे पारंपरिक नृत्य का भी लुफ्त उठा रहे हैं। लोकरंजन कार्यक्रम में कलाकारों के संयोजक राजेन्द्र सिंह का कहना है कि लोकरंजन के जरिए बुंदेली लोक नृत्य को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल रही है। स्थानीय कलाकार को मंच और देश-दुनिया को स्थानीय संस्कृति से जोडऩे का काम डांस फेस्टिवल कर रहा है।
मांगलिक अवसरों पर होता है बधाई नृत्य
बधाई नृत्य मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड अंचल का प्रसिद्ध लोक नृत्य है। पुरुष एवं महिलाओं द्वारा किया जाने वाला यह नृत्य पुत्र जन्म और विवाह जैसे मांगलिक अवसरों पर शीतला माता की आराधना में किया जाता है। इसमें महिला और पुरुष कलाकार समूह में नृत्य करते है। इस नृत्य में कन्याएं लहंगा चुन्नी पहनकर सिर पर झिझिमा यानी छिद्रमय मटके में दीपक रखकर मां दुर्गा की स्तुति करती हैं।यहाँ के लोगों की ऐसी मान्यता है कि प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा शीतला देवी करती है।
मार्शल आर्ट है दिवारी नृत्य
दिवारी नृत्य बुन्देलखण्ड में ‘दीपावली’ के अवसर पर किया जाता है। गांव के निवासी, विशेषत: अहीर ग्वाले लोग इस नृत्य में भाग लेते हैं। ढोल-नगाड़े की टंकार के साथ पैरों में घुंघरू, कमर में पट्टा और हाथों में लाठियां ले बुन्देले जब इशारा होते ही जोशीले अंदाज़में एक-दूसरे पर लाठी से प्रहार करते हैं, तो यह नज़ारा देख लोगों का दिल दहल जाता है। इस हैरतंगेज कारनामे को देखने के लिए लोगों का भारी हुजूम उमड़ता है। सभी को आश्चर्य होता है कि ताबड़तोड़ लाठियां बरसने के बाद भी किसी को तनिक भी चोट नहीं आती। बुन्देलखंड की यह अनूठी लोक विधा ‘मार्शल आर्ट’ से किसी मायने में कम नहीं है।
नौरता नृत्य के जिरए मा दुर्गा की होती है उपसना
वहीं नौरता नृत्य नवरात्री के समय किया जाता है। यह नृत्य कुंवारी लड़कियों के द्वारा किया जाता है। सुआटा नाम का राक्षस कुवारी कन्याओं को मारने के लिए ले जाता था। देवी की आराधना करके कुंवारी कन्याओं ने उन्हे प्रसन्न करने के लिए यह नृत्य किया।
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