दरअसल, लॉक डाउन के समय अन्य राज्यों से गांव वापस लौट रहे मजूदरों को रोजगार दिलाने का प्रयास किया जा रहा हैं। जबकि जलसंरक्षण व स्रोतों को बचाने भी सरकार प्रयासरत हैं। जिले के पिछड़े क्षेत्र और मुख्यालय से करीब १३० किलोमीटर दूर नैनागिरी के प्राचीन तालाब को योजना के चिन्हित किया जाता हैं तो इससे सैकड़ों मजूदरों को काम भी मिलेगा। जो कि रोजगार की तलाश में यहां-वहां भटकने मजबूर हैं। वहीं आसपास के लगे जंगलों के पशुओं को पानी मिलने लगेगा।
यह है मंदिर सरोवर उपयोजना का उद्देश्य
ऐसे धार्मिक स्थल जिनसे लोगों को उनके जीवन में शुचिता लाए जाने व सामाजिक दायित्वों के निर्वाहन के लिए सतत रूप से उर्जा प्राप्त होती है। इन धार्मिक स्थलों के प्राचीन तालाबों का मरम्मत किए जाने की आवश्यकता है। जिससे भूमि द्विफसली हो सके व उत्पादकता में वृद्धि होवें साथ ही पशुओं के पानी पीने के लिए भी यह संरचनाएं उपयोग हो सके। इसके अलावा मंदिर के समीप पानी के विभिन्न उपयोग के दृष्टिगत जल संरचनाओं का धार्मिक महत्व भी है। नरेगा अंतर्गत जल संरक्षण व जल संवर्धन के कार्य प्राथमिकता से लिए जाने का प्रावधान है। जिससे ग्रामीण जॉब कार्डधारी परिवारों को अकुशल श्रम का रोजगार प्राप्त हो और स्थाई परिसंपत्तियां निर्मित हों। इसे दृष्टिगत रखते हुए राज्य स्तर पर मंदिर सरोवर उपयोजना क्रियान्वयन किए जाने का निर्णय लिया गया है।
मंदिर समिति करेगी निर्देशों की पूर्ति
मंदिर सरोवर उपयोजना के तहत भी कुछ दिशा-निर्देश दिए गए हैं। जिसमें मंदिर चयन, स्थल चयन, जल सरंचनाएं के अलावा तालाब मरम्मत के निर्देशों का नैनागिरी तीर्थ समिति द्वारा पूर्ति कराया जाएगा। मंदिर सरोवर का निर्माण करते वक्त मंदिर के समिति की अनुशंसा, सहमति भी लिखित में दी जाएगी। तालाब के जीर्णोद्धार के लिए अधिकतम ५० लाख का बजट जारी हो सकता हैं। जिसे विभागीय इंजीनियर द्वारा तैयार किए गए स्टीमेट के आधार पर निकाला जाएगा।
वर्जन
उपयोजना के नियमों के तहत अगर तालाब आता हैं तो इसके लिए प्रस्ताव तैयार किया जाएगा। तालाब के संबंध में जानकारी आई है।
हिमांशु चंद्र, सीइओ जिला पंचायत छतरपुर