पर्यावरण एक्टिविस्ट डॉ. पुष्पराग शर्मा का कहना है कि बकस्वाहा जंगल में हीरा खनन का निर्णय पर्यावरण को नष्ट करने वाला है। इतनी बड़ी संख्या में पेड़ कटने से बुंदेलखंड सहित आसपास क्षेत्रों में आपदा को आमंत्रण मिलेगा। उन्होंने बताया कि जंगल बचाने के लिए हर स्तर पर संघर्ष जारी रहेगा। देश के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण विदों और संगठनों का सहयोग मिल रहा है। वहीं, बकस्वाहा जंगल के पेड़ों को काटने पर एनजीटी द्वारा लगाई गई रोक और यहां के बेहद दुर्लभ शैल चित्रों-रॉक पेटिंग को लेकर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा केंद्र व मध्य प्रदेश सरकार से जवाब मांगने से पर्यावरण पैरोकारों की लड़ाई नए मोड़ पर आ गई है।
बकस्वाहा जंगल व केन-बेतवा नदी जोड़ा परियोजना के लिए लाखों पेड़ों को काटने की योजना के विरोध में पीपल, नीम, तुलसी अभियान संस्थापक डॉ. धर्मेंद्र और मुजफ्फरपुर की एक टीम 24 जुलाई से साइकिल यात्रा शुरू करेगी। टीम के सदस्य और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के छात्र सिद्धार्थ झा ने बताया कि साइकिल यात्रा पटना के रास्ते से होकर आरा, बनारस, मिर्जापुर, प्रयागराज और बांदा होते हुए छतरपुर के बकस्वाहा जंगल पहुंचेगी।
बकस्वाहा जंगल में ३८२ हेक्टेयर भूमि को मध्य प्रदेश सरकार द्वारा हीरा खदान के लिए बिरला ग्रुप की एक्सल माइनिंग एडं एंडस्ट्रीज को 50 साल के पट्टे पर दिया है। हीरा खनन के लिए जंगल में लगे 2.15 लाख से ज्यादा हरे पेड़-पौधे काटे जाना है। एनजीटी ने डॉ. पीजी नाजपांडे और उज्ज्वल शर्मा द्वारा दायर रिट पर सुनवाई के बाद 30 जून को पेड़ों की कटान पर रोक लगाकर चार हफ्ते में प्रदेश सरकार से जवाब मांगा हुआ है।