पूरे प्रदेश में सरकार ने जिले के भीतर बसों के आवागमन की अनुमति 1 जून से ही जारी कर दी थी लेकिन छतरपुर में 1 भी बस सड़क पर नहीं उतरी। इसके तीन बड़े कारण बताए जा रहे हैं। सबसे बड़ा कारण है सरकार का टैक्स में रियायत न देना। छतरपुर बस यूनियन के संरक्षक आबिद सिद्दीकी बताते हैं कि कोरोना संक्रमण काल में सरकार ने सभी वर्गों को कुछ न कुछ राहत दी लेकिन बस मालिकों की समस्याओं के बारे में नहीं सोचा जा रहा है। 25 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा होते ही अप्रेल, मई, जून तीन महीने कोरोना की महामारी के कारण बसों का संचालन नहीं हो सका, लेकिन सरकार को इन तीन महीनों का भी पूरा टैक्स चाहिए है। बस यूनियन इस बात पर अड़ी है कि सरकार को इन तीन महीनों के टैक्स में रियायत देनी चाहिए। दूसरा बड़ा कारण यह है कि अनलॉक के साथ ही बस संचालन को अनुमति दी गई लेकिन उसके साथ यह शर्त रखी गई कि बसों में 50 फीसदी की सवारियां भरी जाएं। पहली बात तो यह कि डीजल की बढ़ती कीमतों के साथ 50 फीसदी सवारियों पर बस चलाना भारी घाटे का सौदा होगा। दूसरी बात यह कि आधी सीटों के ऊपर यदि जबरन सवारियां बैठ गईं तो गाइडलाइन के तहत ड्राइवर, क्लीनर और बस मालिकों पर मुकदमे ठोकना कहां का न्याय होगा।
बस से लगते थे 150 रुपए अब कार से झांसी के 300 रुपए मांगे जा रहे
एक तरफ यात्री बसें बंद हैं तो वहीं दूसरी तरफ सड़कों पर निजी टैक्सियों की लूट शुरु हो गई है। मौके का फायदा उठाकर लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए मनमानी कीमत वसूली जा रही है। यात्री बस छतरपुर से झांसी तक की 125 किमी की यात्रा लगभग 150 रुपए में पूरी कराती थी, लेकिन अब बस स्टैंड पर मौजूद निजी गाडिय़ां लोगों से 300 रुपए ऐठ रही हैं। बस स्टैंड पर मौजूद एक यात्री पप्पू अनुरागी ने बताया कि वे डहर्रा से किसी तरह छतरपुर बस स्टैंड पहुंचे और अब उन्हें झांसी जाने के लिए 300 रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। यही हालत जिले के भीतर यात्रा करने वालों की है। जिला मुख्यालय से जिले के विभिन्न हिस्सों तक टैक्सियां और पिकअप बेरोकटोक चल रही हैं और इनके द्वारा यात्रियों से 4 गुना तक मनमानी वसूली की जा रही है। छतरपुर से नौगांव 24 किलोमीटर के लिए टैक्सियों में प्रति सवारी 100 रुपए देने पड़ रहे हैं। इसी तरह नौगांव से हरपालपुर 30 किलोमीटर के लिए 100 रुपए हर सवारी को देना पड़ रहे हैं।
बसों के न चलने के कारण सिर्फ परिवहन व्यवसाय ही नहीं बल्कि इससे जुड़े अन्य व्यवसाय भी प्रभावित हो रहे हैं। जिस बस स्टैंड पर प्रतिदिन 500 बसों की आवाजाही होती थी वहां अब सन्नाटा पसरा हुआ है। बसों के न चलने से यात्रियों की आवाजाही भी कम हो चुकी है जिसके कारण बस स्टैंड के आसपास मौजूद 200 से अधिक दुकानदार और इतने ही फुटपाथ कारोबारियों का कामकाज ठप है। पिछले 3 महीने से इन 400 कारोबारियों को आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। बस स्टैंड पर जनरल स्टोर चलाने वाले प्रशांत चौरसिया बताते हैं कि बस स्टैंड पर सन्नाटा ऐसा है कि दुकान खोलने का ही मन नहीं करता। पिछले 3 महीने से दुकान का किराया और बिजली का बिल भी नहीं निकाल पा रहे।
सरकार को जल्द हल निकालना चाहिए। बस मालिक अपनी मर्जी से बसों को बंद नहीं किए हैं बल्कि सरकार की गलत नीतियों के कारण बसें बंद पड़ी हैं। कोरोना लॉकडाउन के तीन महीने का टैक्स बस मालिक कहां से दें। 50 सीटों पर बसें कैसे चलाएं और सवारियां ज्यादा बैठीं तो बस मालिक को जेल भेजा जाए? यह प्रश्न हैं जिनके जवाब सरकार को खोजने पड़ेंगे अन्यथा तब तक बसें बंद रहेंगी।
आबिद सिद्दीकी, बस ऑपरेटर
टैक्स में रियायत का मामला सरकार से जुड़ा विषय है। कोविड गाइडलाइन भी सरकार द्वारा जारी की गई है। निश्चित रूप से बसों के न चलने से लोग परेशान हैं। जनहित से जुड़ी समस्या होने के बावजूद हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं। सरकार और यूनियन के बीच बात चल रही है। संभव है कि जल्द ही नतीजा निकल आएगा।
सुनील राय सक्सेना, आरटीओ, छतरपुर