अधिवक्ता ऋ तम खरे ने याचिका में कहा है कि डीपीआर तकनीकी रूप से दोषपूर्ण है। रिपोर्ट में जलभराव, निर्माण योजना, सिंचाई क्षेत्र के बढ़त संबंधी आंकड़े आदि गलत हैं। इसके अलावा केन नदी की डाउन स्ट्रीम बहाव पर पडऩे वाले प्रभाव के संबंध में कुछ आंकड़े भी गलत हैं। ढोढऩ बांध और केन नदी के बीच की दूरी और लेवल सही नहीं दिखाया गया है। प्राकृतिक वातावरण के बिंदुओं को भी नजरंदाज किया गया है। याचिका में परियोजना पर पुनर्विचार करके नई डीपीआर तैयार करने के आदेश की मांग करते हुए किसी भी तरह के निर्माण पर रोक लगाने की मांग की गई है।
केन-बेतवा नदी लिंक परियोजना वर्ष 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में स्वीकृत हुई थी। तब से आज तक इस परियोजना को कई विरोधों और चुनौतियों का सामना करना पड़ा। जल बंटवारे को लेकर यूपी-एमपी में तनातनी रही। कई वर्षों बाद पिछले साल पानी बंटवारे के मुद्दे पर सहमति बनी, अब दिसंबर में प्रधानमंत्री के हाथों परियोजना का शिलान्यास की तैयारी चल रही है, इसी बीच सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिका पर सुप्रीम कोर्ट निर्माण पर रोक लगाता है तो 16 साल से चल रही कवायद एक बार फिर थम सकती है।
केन-बेतवा लिंक परियोजना की लागत समय बीतने के साथ बढ़ती जा रही है। शुरुआत में यह योजना 8000 करोड़ रुपए की थी। अब लगभग 75 हजार करोड़ की बताई जा रही है। वर्ष 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने देश की 37 नदियों को आपस में जोडऩे की योजना मंजूर की गई थी। इसमें केन-बेतवा पर सबसे पहले काम करने की योजना बनाई गई है।