हिंडोरिया गढ़ी परिवार की सियासत में दलबदल की स्थिति पहले से चली आ रही है। प्रद्युम्न सिंह के पिता प्रताप नारायण सिंह राजा भैया पहले कांग्रेस में रहे, फिर बसपा से चुनाव लड़े। इसके बाद भाजपा में आ गए थे। इसी के चलते उनका पूरा परिवार ही भाजपा में शामिल हो गया। पर नगरीय निकाय चुनाव में हालात बदल गए।
प्रद्युम्न सिंह की मां शकुंतला देवी अम्मा व बड़े भाई हेमंत सिंह ने राजगढ़ी में इस मसले पर कोई भी अपनी प्रतिक्रिया देने से इंकार कर दिया है। इन्होंने प्रद्युम्न द्वारा स्वयं उठाया गया कदम बताया है, इस मामले में वह कुछ भी नहीं कहना चाहते हैं।
कांग्रेस के दमोह विधायक राहुल सिंह लोधी रिश्ते में प्रद्युम्न के चचेरे भाई हैं। उन्होंने कहा कि प्रद्युम्न के इस कदम के बारे में उन्हें जानकारी नहीं थी, भनक नहीं लगने दी। राहुल ने स्वीकार किया कि उन्हें ऑफर दिए गए थे, लेकिन वे अपना सम्मान नहीं बेच सकते। मैं कांग्रेसी था और रहूंगा। राहुल ने यह भी बताया कि प्रद्युम्न पहले भाजपा में थे और उमा भारती से उनके नजदीकी संबंध हैं, सदस्यता लेने से पहले उमाजी के बंगले पर जाते दिखे थे। रहा मेरा सवाल तो मैं जो आज कुर्सी पर बैठा हूं, वह कांग्रेस की देन है। भाजपा का यह खरीदफरोख्त का खेल अब भी जारी है। आगामी उपचुनाव में जनता इसका जवाब देगी।
दमोह से आकर छतरपुर जिले की बड़ा मलहरा सीट से तब मंत्री रहीं भाजपा प्रत्याशी ललिता यादव को हराकर सभी को चौंका दिया था। इससे पहले ललिता छतरपुर सीट से लड़ती रहीं हैं लेकिन 2018 में पार्टी ने उन्हें बड़ा मलहरा भेज दिया था। अब प्रद्युम्न के भाजपा ज्वाइन कर विधायकी से इस्तीफा देने के बाद एक बार फिर उपचुनाव की स्थिति बनी है।
हालांकि बड़ा मलहरा सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती रही है। 1985 से 20़13 तक भाजपा इस सीट पर लगातार जीतती रही है। 2003 में उमाभारती इसी सीट से जीतीं और मुख्यमंत्री बनी थीं। इस सीट से लोधी और यादव प्रत्याशी ही ज्यादातर विधायक चुने गए हैं। 2018 में भाजपा की इस जीत का सिलसिला कांग्रेस की टिकट से लड़े प्रद्युम्न लोधी ने खत्म किया था।
वर्ष 1972 में छतरपुर निवासी दसरथ जैन, 1977 में छतरपुर निवासी जंग बहादुर सिंह, 1985 में दमोह के शिवराज सिंह, 1993 में बिजावर की उमा यादव, 1998 में टीकमगढ़ के स्वामी लोधी और 2003 में उमा भारती चुनाव जीते। ये सभी उम्मीदवार विधानसभा क्षेत्र के बाहर से लाकर चुनाव लड़वाए गए थे। जबिक बड़ामलहरा निवासी रेखा यादव दो बार चुनाव जीती। इस तरह से बड़ामलहरा सीट पर ज्यादातर बाहरी उम्मीदवार ही विजयी होते रहे हैं।