scriptरंगकर्म ने शहर के युवाओं के लिए खोली कॅरियर की नई राह | rangkarma new career path for the youth of the city | Patrika News

रंगकर्म ने शहर के युवाओं के लिए खोली कॅरियर की नई राह

locationछतरपुरPublished: Sep 04, 2018 12:56:57 pm

Submitted by:

Neeraj soni

बुंदेलखंड के शोषण, उत्पीडऩ और आम जनजीवन को रेखांकित करने का सशक्त माध्यम बन रहे हैं नाटक

rangkarma new career path for the youth of the city

rangkarma new career path for the youth of the city

छतरपुर। शहर में रंगकर्म की जड़ें तेजी से मजबूत हो रही हैं। पहले कभी साल में एक या दो बार होने वाले मंचीय नाटकों की प्रस्तुतियां अब हर माह शहर में हो रही है। किसी खास प्रयोजन से लेकर महापुरुषों की जयंती, उत्सव के मौके पर भी अब रंगकर्म ने खास जगह बना ली है। यही कारण है कि शहर के युवाओं को अभिनय कला की इस फील्ड में भी कॅरियर की संभावनाएं दिखने लगी है। इस कारण बड़ी संख्या में युवाओं ने इस फील्ड में भी जबरदस्त एंट्री की है। कला के इस क्षेत्र को युवाओं की एक पूरी टीम लगातार लीडरशिप देकर नए-नए कलाकार तैयार कर रही है। शहर में ऑडिटोरियम जैसी सुविधा होने के कारण कलाकारों को नाट्य मंचन के लिए एक बड़ा एक्सपोजर भी मिला है। आने वाले दिनों में इस क्षेत्र में युवाओं का दखल बढऩा भी तय माना जाने लगा है।
महज 15 साल पहले शुरू हुआ था नाट्य का सफर :
शहर में नाट्य और रंगकर्म का सफर महज 15 साल पहले ही सृजनात्मक रूप से शुरू हुआ था। भारतीय जननाट्य संघ इप्टा के बैनर तले शिवेंद्र शुक्ला, नीरज खरे, सतीश पटैरिया, देवेंद्र अहिरवार आदि की टीम ने कार्यशालाओं, समर कैंप और छोटे-छोटे नाटकों की मंचीय प्रस्तुतियों से इस कला को निखारने से लेकर नए लोगों को जोडऩे का काम किया। महज आधा दर्जन लोगों से शुरू हुआ यह सफर इन सालों मेंं कब सैकड़ों लोगों तक पहुंच गया, पता ही नहीं चला। दर्जनों नाटकों की प्रस्तुतियों से इन कलाकारों ने अपने हुनर का लोहा न सिर्फ इस शहर में मनवाया, बल्कि दिल्ली, भोपाल, सागर, जबलपुर, दमोह, खजुराहो सहित देशभर के कई शहरों और पूरे बुंदेलखंड में रंगकर्म का डंका बजाया। यहां के कलाकारों की प्रतिभा और लगन देखकर अब शासन की ओर से भी इन्हें एक्सपोजर दिया जा रहा है। संस्कृति मंत्रालय की ओर से होने वाले कार्यक्रमों में इन कलाकारों के ग्रुपों को बुलाया जाने लगा है। वहीं कार्यशालाओं के आयोजन का भी अवसर इन्हें मिल रहा है। हालही में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से रंग चौपाल छतरपुर द्वारा 15 दिवसीय प्रस्तुतिपरक नाट्य कार्यशाला का आयोजन किया गया था। इसमें भोपाल से आए निर्मल तिवारी एवं लखन अहिरवार के मार्गदर्शन में शहर के कलाकारों ने दो नाटक तैयार किए। रंग समारोह के पहले दिन दिवस नाटक सूपना का सपना और दूसरे दिन मंशी प्रेमचंद की कहानी ईश्वरीय न्याय मंचन किया गया।
हर माह होती है प्रस्तुतियां :
रंगकर्म का हुनर शहर में तेजी से विस्तार ले रहा है। अब औषतन हर माह किसी न किसी प्रयोजन के बहाने नाटक का मंचन शहर में होता रहता है। इस कारण तेजी से शहर में इन नाटकों के देखने वाले दर्शक का एक बड़ा समूह भी बन गया है। महाराजा छत्रसाल जंयती पर ही ऑडिटोरियम में महाबली छत्रसाल का मंचन हुआ था। जयंती समारोह के मौके पर ही मऊसहानियां में भी यह नाटक खेला गया था। महाराजा छत्रसाल की प्रतिमा अनावरण समारोह के दौरान भी नौगांव में यहां के कलाकारों ने छत्रसाल पर केंद्रित नाटक को खेला था। इसके बाद तीन दिवसीय राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव शंखनाद के दौरान भी एक से बढ़कर एक नाटक की प्रस्तुतियां यहां हुई थी। समर कैंप के समापन पर भी नाट्य मंचन हुआ था। इसके बाद पिछले महीने ही मुंशी प्रेमचंद्र की जयंती पर भी त्रिवेदी नाम का आयोजन दो दिन तक चला था। सितंबर के पहले सप्ताह में ही दो दिवसीय आयोजन के तहत दो नाटक खेले गए। आने वाले महीनों में भी इसी तरह के आयोजन का पूरा कैलेंडर इन कलाकारों ने तैयार कर रखा है। शहर में नाट्य मंचन के अलावा भी यहां के कलाकारों ने भोपाल में महाबली छत्रसाल नाटक का मंचन किया।
बुंदेलखंड की गरीबी, शोषण और जनजीवन का होता है चित्रण :
शहर में होने वाले अधिकांश नाटकों में ग्रामीण क्षेत्रों की गरीबी, शोषण और जनजीवन का चित्रण होता है। कहीं न कहीं यह दृश्य बुंदेलखंड की गरीबी और शोषण को रेखांकित करता नजर आता है। तीन दिन पहले ऑडिटोरियम में हुए लेखक शाहिद अनवर के लिखे नाटक सुपनवा का सपना के मंचन में दिखाया गया कि बुंदेलखंड के ग्रामीण अंचलों में किस तरह से गरीबों के ऊपर किस तरह अत्याचार होता है और उनका कितना शोषण किया जाता है। शहर के ऑडिटोरियम में इप्टा के तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय रंगमंच के पहले दिन यह प्रस्तुति हुई थी। नाटक का निर्देशन भोपाल से आए रंगकर्मी निर्मल तिवारी द्वारा किया गया। रंगकर्मी शिवेन्द्र शुक्ला ने बताया कि सुपनवा की मुख्य भूमिका मप्र नाट्य विद्यालय के पूर्व छात्र लखन अहिरवार ने निभाई। इस नाटक के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में गरीब, शोषित और दबे-कुचले वर्गों के लोगों की तकलीफों को मंच पर बयां किया गया। दूसरे दिन मंशी प्रेमचंद की कहानी ईश्वरीय न्याय का नाट्य रूपांतरण रीता कांकर के निर्देशन में मंच पर प्रस्तुत किया गया। इस नाटक की कहानी भी बुंदेलखंड के हालातों को छूती हुई नजर आई।

यह नए कलाकार हुए तैयार :
इप्टा के प्रमुख शिवेन्द्र शुक्ला की प्रेरणा से उपासना तोमर, लखन अहिरवार, अंकुर यादव, प्रांजल पटैरिया, अंजली शुक्ला, सिद्धार्थ शुक्ला, अभिदीप सुहाने, रवि अहिरवार, अनिल रैकवार, अनिरुद्ध मिस्त्री, राहुल नामदेव, निर्मल तिवारी, खनिजदेव सिंह चौहान, नमनदीप पाटकार, जयदित्य सिंह युवी सहित तीन दर्जन से ज्यादा नए कलाकार पिछले पांच सालों में तैयार हुए हैं। शहर के रंगकर्म को बढ़ाने में यह सभी कलाकार महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

 

rangkarma new career path for the youth of the city
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो