scriptमातमी धुनों के साथ इमाम हुसैन की शहादत की याद में निकाले ताजिए | Remove the memory of Imam Hussain's moharram with melodious tunes | Patrika News

मातमी धुनों के साथ इमाम हुसैन की शहादत की याद में निकाले ताजिए

locationछतरपुरPublished: Sep 11, 2019 01:08:45 am

मोर्हरम: अखाड़ा दलों ने दिखाए हैरत अंगेज करतब

मातमी धुनों के साथ इमाम हुसैन की शहादत की याद में निकाले ताजिए

मातमी धुनों के साथ इमाम हुसैन की शहादत की याद में निकाले ताजिए

नौगांव. मुहर्रम शुरु होते ही इस्लामी साल पहला महीना शुरु होता है, जिसे हिजरी भी कहा जाता है। हिजरी सन की शुरूआत इसी महीने से होती है, इतना ही नहीं इस्लाम के चार पवित्र महीनों में इस महीने को भी शामिल किया जाता है।
नगर में सोमवार की रात व मंगलवार की दोपहर को मोहर्रम का जुलूस इमाम हसन हुसैन की याद में निकाला गया जुलूस मंगलवार शाम 4 बजे सैय्यद बदर्स तिराहे पर इकत्रित हुआ। जहां से मुसाफिर खाना चौराहा, एसडीओपी कार्यालय, मैन बाजार, बस स्टैंड के पीछे, तहसील चौराहे होते हुए कर्बला भड़ार नदी पहुंचा। जुलूस में ताजिया के अलावा बुर्राख घोड़ा, अलम ढोल नगाड़े व इमाम बाड़े के अखाड़े के कार्यकर्ता अपना जोहर दिखाते हुए निकले। कर्बला में अलाव व तकरीर के साथ नात का प्रोग्राम हुआ और ताजियों व अलम को सलामी दी गई।
ईशानगर में चल रहे 10 दिनों के मोहर्रम पर्व पर मुस्लिम समुदाय द्वारा शहीद इमाम हुसैन की याद में ताजिए निकाले गए और जियारत की गई। मुस्लिम समुदाय के लोग द्वारा बड़ी ही अकीदत के साथ ताजियों की जियारत की गई। आयोजित कार्यक्रमों के दौरान जामा मजिस्द में शहीद इमाम हुसैन की शहादत कर्बला का जिक्र कर दसवें दिन हजरत इमाम हुसैन की याद में ताजिये निकाले गए।
इस दौरान नगर के मुख्य मार्गों से होते हुए रामराजा चौराहे पर अखाड़े में देर रात तक शांतिपूर्वक अपने करतब दिखाते रहे। जिसमें भारी जनसमूह के साथ पुलिस प्रशासन मौजूद रहा।

शहर में मंगलवार को मोहर्रम का पर्व भी मनाया गया। मातमी धुनों पर शहर में ताजिया निकाले गए। विमान यात्रा के समापन के बाद देर शाम संकट मोचन क्षेत्र से ताजियों का जलसा निकलना शुरू हुआ। मुस्लिम बस्तियों से होते हुए यह ताजिया चौक बाजार पर एकत्र हुए। यहां अखाड़ों की करतवबाजी के साथ लोगों ने लोहान देकर ताजियों के सामने मनोती मांगी। यहां ये ताजिया सिटी कोतवाली होते हुए महल रोड पर पहुंचे। महल परिसर में भी जलसा चलता रहा। इसके बाद देर रात ताजियों का विसर्जन करबला में किया गया।
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