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मेहनत और लगन के बूते पर ग्रामीण महिलाएं हो रही आत्मनिर्भर

locationछतरपुरPublished: Mar 07, 2021 08:44:16 pm

Submitted by:

Dharmendra Singh

स्वसहायता समूह बनाकर महिलाओं ने बदली अपनी तकदीरअगरबत्ती, फिनायल, वॉशिंग पाउडर और सिलाई के काम से जुड़कर क र रही कमाई

महिलाओं ने बदली अपनी तकदीर

महिलाओं ने बदली अपनी तकदीर

दिलीप अग्रवाल

बड़ामलहरा। मेहनत और लगन के बूते पर महिलाएं अपनी तकदीर खुद लिख रहीं हैं। चंद पैसों के लिए मोहताज महिलाएं अब आर्थिक रूप से संपन्न हो रहीं हैं। आत्मनिर्भर होकर वह घर परिवार चला रहीं हैं। सरकारी द्वारा संचालित आजीविका मिशन से जुडने बाद रामकुवर, संगीता, रानी, फूला जैसी जनपद क्षेत्र की अनेक ग्रामीण महिलाएं परिवार के लिए पालनहार बन गई हैं। जनपद क्षेत्र अंतर्गत ग्राम बंधा, सिरोंज, प्रतापपुरा व खटोला जैसे अनेक गांव की महिलाएं फिनायल, फ्लोर क्लीनर, अगरबत्ती, वाशिंग पावडर निर्माण से लेकर सिलाई तक का काम करके अपने परिवार का जीवन संवार रही हैं। स्वयं का व्यापार जमाकर वह आत्म निर्भर हो रही है और आर्थिक रूप से भी मजबूत हो रही हैं। आजीविका मिशन द्वारा ग्रामीण अंचल में करीब 6 सौ स्व सहायता समूह तैयार किए हैं। इनमें 20 गतिविधि समूह हैं जिन्होंने लघु कुटीर उद्योग की तरह रोज मर्रा की आवश्यक्ताओं वाली सामग्री बनाना शुरु किया है।
फिनायल व क्लीनर से चमका रहीं भविष्य
रामकुंवर अहिरवार निवासी बंधा कहती है कि,अपने पति के साथ वह दिल्ली में मजदूरी करतीं थी। दिन रात मेहनत करने के बाद भी परिवार का भरण पोषण भी ठीक से नहीं हो पाता था। आजीविका मिशन से जुडने के बाद जीवन में काफी कुछ बदलाव आया। आत्म निर्भर योजना अंतर्गत उन्हें 40 हजार रुपए आजीविका राशि प्राप्त हुई थी। इन पैसों से उन्होनें फिनायल व फ्लोर क्लींनर बनाना शुरु किया और बाजार में इसकी बिक्र शुरु की। फिनायल व फ्लोर क्लीनर की क्वालिटी अच्छी होने व अन्य कंपनियों की अपेक्षा कीमत कम होने से बाजार में इसकी बिक्री दिन प्रति दिन बढ रही है। वह बताती है कि, समूह से जुडकर गांव की 50 महिलाएं और भी रोजगार से जुड गईं हैं। पिछले 2 माह पहले ही उन्होनें यह व्यवसाय शुरु किया अब वह इससे अच्छा खासा मुनाफा कमाने लगी है।
एक लाख रुपये कर्ज लेकर शुरु किया रोजगार, अब कमा रही लाखों
ग्राम सिरोंज में रहने वाली रानी यादव बताती है कि, खेती किसानी उनके परिवार की आजीविका का मुख्य साधन हैं। हालाकिं खेती किसानी से परिवार का भरण पोषण तो होता है परंतु अन्य खर्चे के लिए पैसों की कमी महसूस होती थी। वर्ष 2016 में राधे कृष्ण स्वसहायता समूह का गठन किया और समूह की गति विधियों से निरंतर जुडी रही। अधिकारियों से मार्ग दर्शन मिलता रहा और वर्ष 2017 में 1 लाख 10 हजार रुपए आजीविका राशि प्राप्त हुई। इससे घर में ही अगरबत्ती बनाना शुरु कर दिया। इस व्यवसाय से गांव की छह महिलाएं और जुडी है। अगरबत्ती व्यवसाय से 60 से 70 हजार रुपये सालाना प्रति महिला की आमदानी बढ गई है।
सिलाई से संवार रही जिंदगी
ग्राम प्रतापपुरा में रहनें वाली संगीता अहिरवार ने वर्ष 2014 में भीम स्व सहायता समूह तैयार किया था। समूह से गांव की 15 महिलाएंं और जुडी। महिलाओं ने बैठकर रोजगार की योजना तैयार की। आजीविका मिशन के अधिकारियों के समक्ष महिलाओं ने सिलाई करनें का प्रस्ताव रखा। कागजी कार्रवाई के उपरांत सिलाई प्रशिक्षण केंद्र नौगांव में महिलाओं को एक माह का प्रशिक्षण दिया गया। काम का हुनर सीखने के बाद उन्हें 95 हजार रुपए आजीविका राशि मिली और महिलाओं ने इन पैसों से ही सिलाई का काम शुरु कर दिया। महिलाएं बताती हैं कि, इस समय वह गणवेश बनाने के काम में लगी है और इससे वह प्रति माह प्रति महिला 6 से 7 हजार रुपए प्रति माह कमा रहीं है।
गांव में बनने लगा, वाशिंग पावडर
बडी बडी फैक्ट्रियों में बनकर छोटे व बडे पैकटों में भरकर आने वाला वाशिंग पावडर की पैकिंग अब गांव में भी होने लगी है। पैकिंग के बाद सीधे ग्राहकों के हाथ आने वाला वाशिंग पावडर काम व दाम में काफी कियायती है। ग्राम खटोला में रहने वाली फूला कुशवाहा बतातीं है कि, उनका दिन चर्चा पहले साग भाजी तक ही सीमित थी वह अपने परिवार के साथ दिन भर खेत में काम करके साग भाजी उगाया करती थी। काफी मेहनत के बाद भी परिवार को अपेक्षाकृत मेहनताना नहीं मिल पाता था। वाशिंग पावडर पैकिंग के काम से उन्हें 60 हजार रुपए सालाना अतिरिक्त मुनाफा होने लगा है। आमदानी बढने से पारिवारिक रहन सहन में बदलाव आना शुरु हो गया हैं। फूला कुशवाहा बताती है कि, वर्ष 2017 से वह स्वसहायता समूह में अध्यक्ष हैं। स्वयं का रोजगार स्थापित करने के लिए वर्ष 2019 में उन्हें 40 हजार रुपए आजीविका राशि मिली थी। गांव की 4अन्य महिलाओं ने उस पैसा से वाशिंग़ पावडर पैंकिंग का काम शुरु किया।
बुंदेलखंड की महिलाएं हो रही आत्मनिर्भर
विकासखंड प्रबंधक प्रेमचंद्र यादव कहते है कि, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा गठित स्व सहायता समूह की महिलाओं को स्वालंवन की राह दिखानें में सार्थक साबित होता नजर आ रहे हैं। कई समूहों की महिलाएं सफल रोजगार कर न सिर्फ अपनी तकदीर को संवारा बल्कि घर का सहारा भी बनीं। प्रशासनिक सहायता से कोई महिला सिलाई कर रही तो कोई अपने उत्पादों को बनाकर बेच रहीं है। तकदीर के भरोसे रहनें वाली महिलाओं को यह महिलाएं आइना दिखा रहीं है। आत्मनिर्भर योजना अंतर्गत स्ट्रीट वेंडर योजना के तहत विकासखंड में 10 हजार से अधिक आवेदन प्राप्त हुए, इनमें 407 हितग्राहियों के खाते में राशि भेजी जा चुकी है।
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