ग्राम सिरोंज में रहने वाली रानी यादव बताती है कि, खेती किसानी उनके परिवार की आजीविका का मुख्य साधन हैं। हालाकिं खेती किसानी से परिवार का भरण पोषण तो होता है परंतु अन्य खर्चे के लिए पैसों की कमी महसूस होती थी। वर्ष 2016 में राधे कृष्ण स्वसहायता समूह का गठन किया और समूह की गति विधियों से निरंतर जुडी रही। अधिकारियों से मार्ग दर्शन मिलता रहा और वर्ष 2017 में 1 लाख 10 हजार रुपए आजीविका राशि प्राप्त हुई। इससे घर में ही अगरबत्ती बनाना शुरु कर दिया। इस व्यवसाय से गांव की छह महिलाएं और जुडी है। अगरबत्ती व्यवसाय से 60 से 70 हजार रुपये सालाना प्रति महिला की आमदानी बढ गई है।
ग्राम प्रतापपुरा में रहनें वाली संगीता अहिरवार ने वर्ष 2014 में भीम स्व सहायता समूह तैयार किया था। समूह से गांव की 15 महिलाएंं और जुडी। महिलाओं ने बैठकर रोजगार की योजना तैयार की। आजीविका मिशन के अधिकारियों के समक्ष महिलाओं ने सिलाई करनें का प्रस्ताव रखा। कागजी कार्रवाई के उपरांत सिलाई प्रशिक्षण केंद्र नौगांव में महिलाओं को एक माह का प्रशिक्षण दिया गया। काम का हुनर सीखने के बाद उन्हें 95 हजार रुपए आजीविका राशि मिली और महिलाओं ने इन पैसों से ही सिलाई का काम शुरु कर दिया। महिलाएं बताती हैं कि, इस समय वह गणवेश बनाने के काम में लगी है और इससे वह प्रति माह प्रति महिला 6 से 7 हजार रुपए प्रति माह कमा रहीं है।
बडी बडी फैक्ट्रियों में बनकर छोटे व बडे पैकटों में भरकर आने वाला वाशिंग पावडर की पैकिंग अब गांव में भी होने लगी है। पैकिंग के बाद सीधे ग्राहकों के हाथ आने वाला वाशिंग पावडर काम व दाम में काफी कियायती है। ग्राम खटोला में रहने वाली फूला कुशवाहा बतातीं है कि, उनका दिन चर्चा पहले साग भाजी तक ही सीमित थी वह अपने परिवार के साथ दिन भर खेत में काम करके साग भाजी उगाया करती थी। काफी मेहनत के बाद भी परिवार को अपेक्षाकृत मेहनताना नहीं मिल पाता था। वाशिंग पावडर पैकिंग के काम से उन्हें 60 हजार रुपए सालाना अतिरिक्त मुनाफा होने लगा है। आमदानी बढने से पारिवारिक रहन सहन में बदलाव आना शुरु हो गया हैं। फूला कुशवाहा बताती है कि, वर्ष 2017 से वह स्वसहायता समूह में अध्यक्ष हैं। स्वयं का रोजगार स्थापित करने के लिए वर्ष 2019 में उन्हें 40 हजार रुपए आजीविका राशि मिली थी। गांव की 4अन्य महिलाओं ने उस पैसा से वाशिंग़ पावडर पैंकिंग का काम शुरु किया।
विकासखंड प्रबंधक प्रेमचंद्र यादव कहते है कि, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा गठित स्व सहायता समूह की महिलाओं को स्वालंवन की राह दिखानें में सार्थक साबित होता नजर आ रहे हैं। कई समूहों की महिलाएं सफल रोजगार कर न सिर्फ अपनी तकदीर को संवारा बल्कि घर का सहारा भी बनीं। प्रशासनिक सहायता से कोई महिला सिलाई कर रही तो कोई अपने उत्पादों को बनाकर बेच रहीं है। तकदीर के भरोसे रहनें वाली महिलाओं को यह महिलाएं आइना दिखा रहीं है। आत्मनिर्भर योजना अंतर्गत स्ट्रीट वेंडर योजना के तहत विकासखंड में 10 हजार से अधिक आवेदन प्राप्त हुए, इनमें 407 हितग्राहियों के खाते में राशि भेजी जा चुकी है।