महोबा रोड कोविड सेंटर प्रभारी डॉक्टर महर्षि ओझा का कहना है कि 23 अप्रेल को रात 12.30 बजे कलेक्टर शीलेन्द्र सिंह का फोन आया और चौबे कॉलोनी निवासी शिवानी तिवारी व उनकी बेटियों के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने तीनों मरीजों को कोविड केयर सेंटर में भर्ती करने और उनकी परिस्थितियों को देखते हुए विशेष ख्याल रखने के निर्देश दिए। तीनों को कोविड सेंटर लाने के लिए घर के बाहर 10 घंटे तक टीम खड़ी रही, लेकिन तीनों बाहर नहीं निकल रही थी। उन्हें समझाइश देकर जैसे तैसे घर से लाया गया। जब 45 वर्षीय महिला और 22 व 19 साल की दोनों बेटियां कोविड सेंटर पहुंची तो वे इतने ज्यादा डिप्रेशन में थी कि बेटियां रट लगाए हुए थी, कि जब पापा नहीं रहे तो हम जी कर क्या करेंगे? हालात ये थे कि कोविड सेंटर आने के बाद तीन दिन तक मां-बेटियां सिर्फ रोती रही, खाना तक नहीं खाया।
तीनों की मानसिक स्थिति को देखते हुए डॉ. महर्षि ओझा तीनों से लगातार बात करते रहे। बेटियां ज्यादा डिप्रेशन में थी। इसलिए डॉक्टर ने शिवानी तिवारी की काउंसलिंग शुरु की। उन्हें प्रेरित किया कि वे हिम्मत नहीं रखेंगी, तो परिवार कैसे सम्झलेगा। डॉक्टर ओझा की काउंसलिंग व नर्सिंग स्टाफ की सेवा के चलते महिला की मानसिक स्थिति में सुधार हुआ। इसके बाद मां के सहयोग से बेटियों का हौसला बढ़ाया गया। योग, दवा और देखभाल की दम पर तीनों स्वस्थ हो गए। लेकिन जब डिस्चार्ज का दिन आया तो दोनों बेटियां पिता के न रहने से सूने हुए घर में दोबारा जाने के नाम पर घबरा गई। स्थिति ये हो गई कि छोटी बेटी मूर्छित हो गई। जिसे एक दिन जिला अस्पताल में इलाज के लिए रखा गया। फिर अगले दिन बेटी को दोबारा कोविड सेंटर लाए और मां व दोनो बेटियों को एक सप्ताह और सेंटर में रखकर उन्हें मोटिवेट किया गया। अंतत मां और दोनों बेटियां कोविड सेंटर से डिस्चार्ज होकर घर पहुंच गई है और अब कोविड व डिप्रेशन से ऊबरकर जिंदगी की नई शुरुआत कर रही हैं।
कोविड काल में ये सबसे अलग केस हमारे सामने आया। कोविड संक्रमण के साथ डिप्रेशन के कारण सभी की हालत क्रिटकल थी। बच्चियों में तो जीने की चाह खत्म हो गई थी। हमने परिवार के सदस्य की तरह उनकी देखभाल की, कोशिश रही कि तीनों को नया जीवन मिले। दवा के साथ काउंसलिंग व सेवा भाव के सहारे हमे सफलता मिली है। हम खुश है कि हम कुछ कर पाए।
डॉ. महर्षि ओझा, प्रभारी कोविड सेंटर
शिवानी तिवारी, कोरोना योद्धा