जटाशंकर धाम पर लगे शिलालेख के मुताबिक प्राचीन स्थल होने के प्रमाणिक दस्तावेज तो उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन लोगों की मान्यता है कि देवासुर संग्राम में जरा दैत्य को मारने के बाद भगवान शिव यहां आकर ध्सान मग्न हो गए थे। शंकर जी को जो संताप था उसकी तृप्ति के लिए भगवान शंकर यहां आकर विराजे और यह जटाशंकर नाम से प्रसिद्घ होकर पावन तीर्थ बना। इसके अलावा ये भी मान्यता है कि माता पार्वती ने शिव को पाने के लिए विध्य पर्वत की इन्ही कंदराओं में आकर तप किया था। तब भगवान शंकर प्रकट हुए और पार्वती को दर्शन दिए।
जटाशंकर ट्रस्ट के अध्यक्ष अरविंद अग्रवाल का कहना है कि मान्यता है कि एक चरवाहे को कुष्ठरोग था। उसकी बकरियां जंगल, पहाड़ उतरकर गुम हो गई, चरवाहा उन्हें तलाशते हुए इस स्थान पर पहुंचा। यहां गुफा में झाडिय़ों के बीच एक पिंडी थी और पास में ही शीतल जल का झरना बह रहा था। चरवाहे ने पानी पीकर अपनी प्यास शांत की इसके बाद इसी जल में स्नान किया जिससे उसे चमत्कारिक लाभ हुआ और कुष्ठरोग दूर हो गया। चरवाहे ने गुफा की साफ सफाई की और शिव पिंडी को जल चढ़ाया, इसके बाद वह नियमित रूप से यहां आकर स्नान के बाद जल अर्पण करने लगा। जब यह खबर क्षेत्र में फैली तो भगवान शिव की महिमा और जल के गुणों को प्रसिद्घि मिली।