उन्होंने बताया की होली केवल वर्ण व्यवस्था के त्यौहार का हिस्सा नहीं है बल्कि इसका आध्यात्मिक महत्व भी है। यह पर्व क्षमा करने और क्षमा मांगने का त्यौहार है पूर्व के पापों का प्रायश्चित करने का भी यह पर्व है। इस मौके पर गुनगुन और साक्षी ने होली गीतों पर मनोहारी नृत्य प्रस्तुत किए। बाद में संस्था का ध्वज फहराया गया और आध्यात्मिक तरीके से बुराइयों की होली जलाई गई। अंत में सभी लोगों को प्रसाद वितरित किया गया। कार्यक्रम का संचालन बीके विद्या ने किया। आभार बीके माधुरी ने जताया। कार्यक्रम में शहर के लोग बड़ी संख्या में मौजूद रहे। गौरतलब है कि शहर का पहला होली उत्सव ब्रम्हाकुमारी संस्था में मनाया जाता है। उसी परंपरा के तहत गुरुवार को शहर में सबसे पहली होली इस संस्था द्वारा चलाई गई।
यह है होली का आध्यात्मिक महत्व
ब्रह्माकुमारी संस्था की क्षेत्रीय अध्यक्ष बीके शैलजा ने बताया कि वर्णों के आधार पर पहले त्योहारों का विभाजन था। होली पर्व शूद्रों का त्योहार मना जाता है। लेकिन वास्तव में इसका अर्थ अलग है। होली का अर्थ गहरा है। कलियुग में जब चारों तरफ दुख का वातावरण होता है तब मन को अल्हादित, आपसी सौहार्द, प्रफुल्लित करने के लिए होली का पर्व मनाया जाता है। इसलिए होली का अर्थ है जो हो गया उसे भूलकर और सब बैर भुलाकर उत्साह व उमंग में पर्व मनाएं। उन्होंने बताया कि नई दुनिया में जाने के लिए बीता छोडऩा पड़ेगा। आध्यात्मिक यात्रा की तैयारी के लिए मन-वुद्धि की यात्रा के द्वारा हम परमात्मा के सानिध्य में जाते हैं। पुराना भूल जाते हैं। उन्होंने बताया कि यह पर्व क्षमा करने और क्षमा मांगने का भी उत्सव है। इसीलिए पहले होली जलाते हैं और फिर मनाते हैं। यह पर्व लोगों को संगठित करने का उत्सव है। उन्होंने बताया कि पहले घर-घर से लकड़ी-कंडा एकत्र करके होली जलाई जाती थी, इससे सामाजिक सौहार्द बनता था। उन्होंने यह भी कहा कि जब अभिषाप वरदान बनता है तो नल-नील के फेंके हुए पत्थर समुद्र में तैरकर रामसेतु बना देते हैं। और जब वरदान अभिषाप बनता है तो होलिका भी आग में जल जाती है।
15 तरह की बुराईयों की होली जलाई
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी संस्था ने गुरुवार को शहर में परंपरा अनुसार सबसे पहले होली जलाई। इस बार 15 तरह की बुराईयों की होली जलाई गई। सबसे पहले होली का पूजन किया गया। इकसे बाद कपूर-इलायची और शुद्धघी डालकर आहुति दी गई। बीके शैलजा ने होली को आग लगाई। इसके बाद लोगों ने परिक्रमा करके अच्छे विचारों का संकल्प लिया और बुराई छोडऩे की शपथ ली। यहां पर मन की गंदगी, गंदी द्रष्टि, ईष्या, क्रोध, अहंकार, अशुद्धता, झूठ, कपट, छल, आरोप, आलस्य, घृणा, प्रकृति प्रदूषण, व्यर्थ चिंतन, व्यर्थ संग्रह की होलिका बनाकर उसका दहन किया गया।