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राज्य सरकार ने नहीं भेजा प्रस्ताव, इसलिए छतरपुर के हाथ से निकल गया मेडिकल कॉलेज

locationछतरपुरPublished: Feb 22, 2020 09:53:35 pm

Submitted by:

Dharmendra Singh

भाजपा सरकार ने प्रशासकीय स्वीकृति दी, लेकिन बजट नहीं किया जारी, जमीन हस्तांतरण, एनओसी की भी नहीं हुई प्रक्रियावर्तमान सरकार ने भी नहीं दिया बजट, न केन्द्र को भेजा छतरपुर मेडिकल कॉलेज का प्रस्ताव

Only board named on medical college

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छतरपुर। शहर की जनता ने जिस मेडिकल कॉलेज के लिए तीन साल तक प्रदर्शन किए गए, धरने पर बैठे, मानव श्रंखला बनाई गई, कैंडल मार्च निकाला, हस्ताक्षर अभियान चलाया, वह मेडिकल कॉलेज छतरपुर के हाथ से निकल गया है। भाजपा सरकार में छतरपुर मेडिकल कॉलेज की घोषणा, शिलान्यास तो किया गया, लेकिन प्रशासकीय स्वीकृति के बाद बजट आवंटन नहीं हुआ, टेंडर प्रक्रिया रद्द कर दी गई। कैंपस के लिए विवादित जमीन प्रस्तावित कर दी गई। डीपीआर भी नहीं बना और न जरूरी एनओसी ली गईं। इसके अलावा सबसे अहम बात ये कि वर्तमान राज्य सरकार ने छतरपुर मेडिकल कॉलेज का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को नहीं भेजा। इन्हीं सब कारणों के चलते केन्द्र की टैक्निकल इवैल्यूएशन कमेटी (टीइसी) द्वारा पास किए गए प्रदेश के पांच मेडिकल कॉलेजों में छतरपुर का नाम नहीं है।
टीइसी ने केवल पांच पर लगाई मुहर
राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित मेडिकल कॉलेजों की पात्रता का मूल्यांकन करने और मंजूरी देने वाली केन्द्र सरकार की टैक्निकल इवैल्यूएशन कमेटी (टीइसी) की 24 सिंतबर 2019 को हुई बैठक में गुना, बैतूल, बालाघाट, मंडला, मंदसौर, राजगढ़, श्योपुर, महेश्वर, छतरपुर, सिंगरौली समेत 10 मेडिकल कॉलेज का नाम था। टीइसी ने इन 10 में से 6 नाम के फायनल प्रस्ताव बनाकर भेजने के लिए प्रदेश सरकार से कहा। राज्य सरकार ने जो छह प्रस्ताव भेजे, उसमें छतरपुर का नाम नहीं था। वहीं, टीइसी ने भी प्रदेश से मेडिकल कॉलेज के लिए आए 6 फायनल प्रस्ताव में से सिर्फ 5 नीमच, मंदसौर, राजगढ़, मंडला और श्योपुर में मेडिकल कॉलेज खोलने को हरी झंड़ी दी है। इस तरह से छतरपुर का नाम मेडिकल कॉलेज की लिस्ट से बाहर हो गया है।
जमीन का मसला पड़ा महंगा
मेडिकल कॉलेज के लिए भूमि का मसला ऐसा फंसा कि मेडिकल कॉलेज का निर्माण ही अटक गया है। गौरगाय में 24 एकड़ जमीन मेडिकल कॉलेज के लिए आवंटित की गई। लेकिन उस जमीन के स्वामित्त का विवाद आ गया। ये विवाद हाईकोर्ट तक गया। हाईकोर्ट ने विवाद को सुलझा दिया, लेकिन एक दूसरी अड़चन भी थी, जो आज भी है। आवंटित जमीन का फ्रंट नेशनल हाइवे पर कम है, कैंपस में जाने के लिए 30 वाई 250 फीट की जगह है, ये जगह मेडिकल कॉलेज के फ्रंट की आवश्यकता के अनुरुप न होने के चलते जगह बदलने का निर्णय लिया गया। नई जगह की खोज की गई, जमीन तय भी कर ली, हालांकि प्रशासनिक लेख में नई जमीन अभी तक फायनल नहीं हुई है। जमीन के आधार पर ही आगे की कई प्रक्रिया, अनुमति होना थी, लेकिन जमीन का मसला एक साल तक टल गया। इसके साथ ही अन्य प्रक्रियाएं भी टल गईं। इसी बीच टीइसी द्वारा फायनल प्रस्ताव मांगे जाने पर राज्य सरकार ने छतरपुर का नाम नहीं भेजा। जिससे मेडिकल कॉलेज ही अटक गया।
इन सब कारणों से पीछे खींचा हाथ
शिवराज सिंह की कैबिनेट ने छतरपुर मेडिकल कॉलेज के लिए 300 करोड़ की प्रशासकीय स्वीकृति तो दी, लेकिन राशि की उपलब्धता अनुसार बजट देने की शर्त रख दी। राज्य योजना से केवल 2 करोड़ रुपए कैंपस निर्माण के लिए स्वीकृत किए। इसके बाद टेंडर तो जारी किए गए, लेकिन बजट न होने से टेंडर प्रक्रिया ही निरस्त कर दी गई। बुंदलेखंड मेडिकल कलेज के डीन डॉ. जीएस पटेल को प्रभारी डीन बनाया गया, मेडिकल कॉलेज के लिए स्टाफ, संसाधन की रिपोर्ट भी मांगी गई। लेकिन प्रभारी डीन की रिपोर्ट पर आगे का काम नहीं हो सका। वहीं, जमीन का मसला फंसने से डीपीआर का निर्माण भी नहीं किया जा सका। इसके साथ ही नगरपालिका, टाउनएंड कंट्री प्लानिंग, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से आवश्यक अनुमतियों की कार्यवाही भी नहीं की गई। मेडिकल कॉलेज को लेकर अधूरी तैयारी व व्यवस्थाओं के साथ ही बजट न होने के कारण राज्य सरकार ने हाथ खींच लिए।
3 साल तक चले आंदोलन पर फिरा पानी
छतरपुर समेत आसपास के जिले के लोगों के लिए मेडिकल हब बन चुके छतरपुर में मेडिकल कॉलेज की मांग को लेकर जनता ने दो चरणों में बड़े आंदोलन किए। आंदोलन में सभी राजनीतिक दलों के नेता, समाजिक कार्यकर्ता, गणमान्य नागरिक, व्यापारी, नौकरी पेशा समेत सभी वर्ग के लोग शामिल हुए। प्रदर्शन किए गए, धरने पर बैठे, मानव श्रंखला बनाई गई, कैंडल मार्च निकाला गया, हस्ताक्षर अभियान चलाया गया। यहां तक कि शहर बंद रखा गया। पहले चरण की तरह ही दूसरे चरण में भी इसी तरह से आंदोलन किया गया। वर्ष 2015 से 2018 तक लगभग सौ से ज्यादा प्रदर्शन आम जनता के द्वारा किए गए थे। जिसके बाद 15 अगस्त 2018 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह लाल परेड ग्राउंड भोपाल में छतरपुर मेडिकल कॉलेज खोलने की घोषणा की। 30 सितंबर को चुनाव के पहले तात्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने छतरपुर मेडिकल कॉलेज का शिलान्यास भी किया। इसके बाद शिवराज सरकार कैबिनेट ने 4 अक्टूबर 2018 को 300 करोड़ रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति भी दी।
ये कहना है लोगों को
जिला अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष राजेन्द्र शर्मा का कहना है कि, मेडिकल कॉलेज छतरपुर की सबसे बड़ी मांग रही है। शिवराज सरकार ने मेडिकल कॉलेज को हरी झंड़ी दे दी, प्रक्रिया भी शुरु हुई, लेकिन धरातल पर इसको लेकर कोई काम नहीं हुआ है। पवन मिश्रा का कहना है कि, शहर के लोगों ने लंबे संघर्ष के जरिए मेडिकल कॉलेज को मंजूर करवाया। लेकिन कॉलेज निर्माण के नाम पर केवल बोर्ड लगा दिया गया है। मेडिकल कॉलेज का राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया गया है। डॉ. राजेश अग्रवाल का कहना है कि जनता ने मेडिकल कॉलेज की उम्मीद के साथ आंदोलन किया था, नेताओं ने जो कहा, वो आश्वासन पूरा होना चाहिए। ये विश्वास और भरोसे की बात है। मेडिकल कॉलेज क्षेत्र की जरुरत है, जो जल्द से जल्द पूरी होनी चाहिए। समाजसेवी नीलम पाण्डेय का कहना है कि, मेडिकल कॉलेज छतरपुर के लोगों के लिए सबसे बड़ा मुददा था और है। मेडिकल कॉलेज को लेकर नेताओं को गंभीरता के साथ काम करना चाहिए। वहीं विपिन अवस्थी का कहना है, कि छतरपुर के अस्पताल आसपास के कई जिलों के मरीज आते हैं, मेडिकल कॉलेज न केवल छतरपुर बल्कि आसपास के लोगों के लिए उपयोगी साबित होगा, वशर्ते मेडिकल कॉलेज का काम राजनीतिक लाभ-हानि से उठकर पूरा कराया जाए।
शासन के निर्देश का इंतजार
मेडिकल कॉलेज के लिए छतरपुर जिला चिकित्सालय में क्लीनिकल मटेरियल समेत कॉलेज के लिए आवश्यक संसाधनों की जरुरत की डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट शासन को भेजी गई थी। शासन से जैसा निर्देश मिलेगा, वैसा किया जाएगा।
डॉ. जीएस पटेल, प्रभारी डीन
मेडिकल कॉलेज भवन के लिए 300 करोड़ का बजट स्वीकृति हुआ था। पहले चरण में बॉउंड्रीवॉल के लिए 2 करोड़ की राशि की मंजूरी मिली, टेंडर भी जारी किया गया। शासन स्तर से टेंडर कैंसिल हो गया है। इसके बाद शासन से कोई निर्देश नहीं मिले हैं।
बसंत अग्रवाल, इइ, पीआइयू
मेडिकल कॉलेज के लिए छतरपुर सभी नाम्र्स पूरे करता है। मेडिकल कॉलेज हमारा हक है। पिछली सरकार ने प्रशासकीय स्वीकृति दी, टीइसी की बैठक में भी छतरपुर का नाम था। फिर केन्द्र को भेजे गए फायनल प्रस्ताव में छतरपुर का प्रस्ताव क्यों नहीं भेजा गया, मैं पता करता हूं कि जमीन विवाद और पिछली सरकार की प्रशासकीय स्वीकृति व प्रक्रिया में कमी की वजह से प्रस्ताव नहीं भेजा गया या कोई और कारण है।
आलोक चतुर्वेदी, विधायक, कांग्रेस
मेडिकल कॉलेज जनहित में बनाया जा रहा था। किसी व्यक्ति विशेष के लिए मेडिकल कॉलेज नहीं बनाया जा रहा था। कांग्रेस सरकार को छतरपुर की जनता का हित देखना था। कांग्रेस सरकार ने छतरपुर का प्रस्ताव न भेजकर छतरपुर की जनता से छलावा किया है। जबकि कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता छतरपुर मेडिकल कॉलेज का समर्थन देते रहे हैं। अब चिकित्सा शिक्षा मंत्री बजट न होने की बात कह रही हैं।
ललिता यादव, पूर्व राज्य मंत्री, भाजपा

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