ये है जिले में उज्जवला योजना की स्थिति
महिलाओं को खाना बनाते समय धुएं से निजात दिलाने के लिए शुरु की गई उज्जवला योजना के तहत जिले में जुलाई 2020 तक गैस कनेक्शन के लिए 2 लाख 56 हजार 776 लोगों ने आवेदन दिया था, लेकिन 2 लाख 18 हजार 402 घरों तक ही गैस सिलेंडर पहुंचा। बाकी लोगों को अभी भी गैस कनेक्शन का इंतजार है। जिन लोगों को अभी तक कनेक्शन नहीं मिले हैं। उनमें से तीन हजार लोग ऐसे हैं, जिनके कनेक्शन के लिए सभी दस्तावेज सहीं हैं। उसके बाद भी उनको कनेक्शन नहीं मिल पाया है। जिले में उज्जवला और नान उज्जवला के मिलाकर कुल 3 लाख 56 हजार गैस कनेक्शनधारी उपभोक्ता हैं। इनमें से एक लाख 38 हजार उपभोक्ता गैर उज्जवला योजना वाले हंै। जो नियमित रूप से गैस की रिफलिंग करा रहे हंै। इन उपभोक्ताओं को गैस रिफलिंग कराते समय सरकार से सब्सिडी भी मिलती है। जिन 32 हजार उपभोक्ताओं को अभी तक उज्जवला योजना का लाभ नहीं मिला है, उनमें से करीब 29 हजार आवेदकों इसलिए कनेक्शन नहीं मिला क्योंकि उनके आवेदन में कमी थी। उनके आवेदनों पर विचार ही नहीं हुआ।
शोपीस बन गए उज्ज्वला के कनेक्शन
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना योजना का मुख्य उद्देश्य गांव एवं शहरों में गरीब परिवारों को गैस क नेक्शन देकर उन्हें लकड़ी और कंडे के धुएं से निजात दिलाना रहा है। लेकिन उज्ज्वला योजना के कनेक्शन लेने में कमीशन और फिर सिलेंडर रिफिल कराने में रुपए लगने, सिलेंडर भराने के लिए गांव से दूरे जाने जैसे कारणों के चलते उज्ज्वला के कनेक्शन शोपीस बन गए हैं। उज्ज्वला योजना के तहत जिले के ग्रामीणों ने कनेक्शन तो ले लिए, लेकिन एक बार सिलेंडर खाली हो जाने के बाद दोबारा रिफिल नहीं कराए। ग्रामीण इलाके में एक बार फिर से लकड़ी पर खाना बनाने का दौर शुरु हो गया है। उज्ज्वला योजना में मिले गैस कनेक्शन केवल घर में शो-पीस बनकर रह गए हैं। गैस की तुलना में लकड़ी सस्ती पडऩे और गांव में ही उपलब्ध होने के कारण ग्रामीण गैस का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। वहीं खाने के स्वाद को लेकर ग्रामीण गैस का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। सब्सिडी नहीं मिलने से बाजार दर पर गैस भरवाने से भी गरीब हितग्राही पीछे हट गए हैं।
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना योजना का मुख्य उद्देश्य गांव एवं शहरों में गरीब परिवारों को गैस क नेक्शन देकर उन्हें लकड़ी और कंडे के धुएं से निजात दिलाना रहा है। लेकिन उज्ज्वला योजना के कनेक्शन लेने में कमीशन और फिर सिलेंडर रिफिल कराने में रुपए लगने, सिलेंडर भराने के लिए गांव से दूरे जाने जैसे कारणों के चलते उज्ज्वला के कनेक्शन शोपीस बन गए हैं। उज्ज्वला योजना के तहत जिले के ग्रामीणों ने कनेक्शन तो ले लिए, लेकिन एक बार सिलेंडर खाली हो जाने के बाद दोबारा रिफिल नहीं कराए। ग्रामीण इलाके में एक बार फिर से लकड़ी पर खाना बनाने का दौर शुरु हो गया है। उज्ज्वला योजना में मिले गैस कनेक्शन केवल घर में शो-पीस बनकर रह गए हैं। गैस की तुलना में लकड़ी सस्ती पडऩे और गांव में ही उपलब्ध होने के कारण ग्रामीण गैस का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। वहीं खाने के स्वाद को लेकर ग्रामीण गैस का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। सब्सिडी नहीं मिलने से बाजार दर पर गैस भरवाने से भी गरीब हितग्राही पीछे हट गए हैं।
इसलिए नहीं भरवा रहे गैस सिलेंडर
उज्ज्वला कनेक्शन लेने वाले ग्रामीण भी जानते हैं, कि खाना बनाते समय चूल्हे से निकलने वाले धुएं से उनकी आखों, फेंफड़ों में कई प्रकार की बीमारियां हो जाती है, इसके अलावा और भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसलिए ग्रामीणों ने गैस कनेक्शन तो ले लिए लेकिन एक बार सिलेंडर खत्म हो जाने के बाद दोबारा रिफिल नहीं कराए। बिलहरी, दौरिया समेत कई गांव की महिलाओं श्यामबाई अहिरवार, कृष्णा राजपूत, शिला प्रजापति, मीना प्रजापति, गायत्री, रानी, गीता प्रजापति ने बताया कि हमने एक साल पहले गैस कनेक्शन लिया था, कनेक्शन के बाद आज तक गैस नहीं भरवाई। गैस न भरवाने की वजह पूछने पर उनका कहना है कि, गैस मंहगी है जिसके कारण उसको भराना मुश्किल होता है, सब्सिडी मिलती भी है तो बाद में, पहले तो रुपए लगाने पड़ते हैं। लीलाबाई ने बताया की पति मजदूरी करते है, मजदूरी में इतना पैसा ही मिल पता है जिसमें परिवार का भरण पोषण बड़ी मुश्किल से होता है। गैस के लिए पैसे ही नहीं बचते इसलिए मजबूर होकर कंडे एवं लकड़ी जला कर चूल्हे से खाना बनाना पड़ता है।
उज्ज्वला कनेक्शन लेने वाले ग्रामीण भी जानते हैं, कि खाना बनाते समय चूल्हे से निकलने वाले धुएं से उनकी आखों, फेंफड़ों में कई प्रकार की बीमारियां हो जाती है, इसके अलावा और भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसलिए ग्रामीणों ने गैस कनेक्शन तो ले लिए लेकिन एक बार सिलेंडर खत्म हो जाने के बाद दोबारा रिफिल नहीं कराए। बिलहरी, दौरिया समेत कई गांव की महिलाओं श्यामबाई अहिरवार, कृष्णा राजपूत, शिला प्रजापति, मीना प्रजापति, गायत्री, रानी, गीता प्रजापति ने बताया कि हमने एक साल पहले गैस कनेक्शन लिया था, कनेक्शन के बाद आज तक गैस नहीं भरवाई। गैस न भरवाने की वजह पूछने पर उनका कहना है कि, गैस मंहगी है जिसके कारण उसको भराना मुश्किल होता है, सब्सिडी मिलती भी है तो बाद में, पहले तो रुपए लगाने पड़ते हैं। लीलाबाई ने बताया की पति मजदूरी करते है, मजदूरी में इतना पैसा ही मिल पता है जिसमें परिवार का भरण पोषण बड़ी मुश्किल से होता है। गैस के लिए पैसे ही नहीं बचते इसलिए मजबूर होकर कंडे एवं लकड़ी जला कर चूल्हे से खाना बनाना पड़ता है।
खाना का स्वाद भी गैस चूल्हे से दूर होने की वजह
मौराहा, गठेवरा, चुरारन की रामाबाई, कलावती, राधा रानी आदि महिलाओं ने बताया कि गैस से खाना बनाने पर खाना का स्वाद लकड़ी जैसा नहीं रहता है। इसके अलावा पेट में गैस की शिकायत होने लगी थी, इसलिए भी गैस सिलेंडर दोबारा नहीं भरवाए। लकड़ी गांव में आसानी से मिल जाती है। हमारे खेतों में लगे पेड़ों से निकली जलावन हमें फ्री में ही मिलती है। जबकि गैस के लिए रुपए देने होते हैं। इन्ही कारणों से हमने गैस का इस्तेमाल बंद कर दिया है।
मौराहा, गठेवरा, चुरारन की रामाबाई, कलावती, राधा रानी आदि महिलाओं ने बताया कि गैस से खाना बनाने पर खाना का स्वाद लकड़ी जैसा नहीं रहता है। इसके अलावा पेट में गैस की शिकायत होने लगी थी, इसलिए भी गैस सिलेंडर दोबारा नहीं भरवाए। लकड़ी गांव में आसानी से मिल जाती है। हमारे खेतों में लगे पेड़ों से निकली जलावन हमें फ्री में ही मिलती है। जबकि गैस के लिए रुपए देने होते हैं। इन्ही कारणों से हमने गैस का इस्तेमाल बंद कर दिया है।
वर्ष 2016 में शुरु हुई थी योजना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 मई 2016 को उत्तर प्रदेश के बलिया में इस योजना का शुभारंभ किया था। इस योजना में ग्रामीण क्षेत्र की बीपीएलधारी महिलाओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखा गया है ताकि खाना बनाने के दौरान वो धूंए से परेशान न हों। योजना के तहत गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर कर रही महिलाओं को गैस कनेक्शन दिया गया। इस योजना के तहत सिर्फ महिलाएं ही आवेदक हो सकती हैं, जिनका नाम बीपीएल सूची में है। इसके अलावा आवेदक का नाम सामाजिक-आर्थिक जातीय जनगणना-2011 की लिस्ट में भी नाम होना जरुरी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 मई 2016 को उत्तर प्रदेश के बलिया में इस योजना का शुभारंभ किया था। इस योजना में ग्रामीण क्षेत्र की बीपीएलधारी महिलाओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखा गया है ताकि खाना बनाने के दौरान वो धूंए से परेशान न हों। योजना के तहत गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर कर रही महिलाओं को गैस कनेक्शन दिया गया। इस योजना के तहत सिर्फ महिलाएं ही आवेदक हो सकती हैं, जिनका नाम बीपीएल सूची में है। इसके अलावा आवेदक का नाम सामाजिक-आर्थिक जातीय जनगणना-2011 की लिस्ट में भी नाम होना जरुरी है।
फैक्ट फाइल
उज्ज्वला कनेक्शन – 2 लाख 18 हजार 402
उज्ज्वला डिस्ट्रीब्यूटर- 27
सिलेंडर रिफिलिंग प्रतिशत- 40
उज्ज्वला कनेक्शन – 2 लाख 18 हजार 402
उज्ज्वला डिस्ट्रीब्यूटर- 27
सिलेंडर रिफिलिंग प्रतिशत- 40