scriptटीका आया तो 10 महीने के संघर्ष को मिला मुकाम | When the vaccine came, 10 months of struggle got the status | Patrika News

टीका आया तो 10 महीने के संघर्ष को मिला मुकाम

locationछतरपुरPublished: Jan 16, 2021 06:16:33 pm

Submitted by:

Dharmendra Singh

डर के साथ शुरु किया पहले कोरोना मरीज का इलाजटीकाकरण शुरु होने पर जिले के पहले मरीज का इलाज करने वाले डॉक्टर ने जताई खुशी व राहतपहले मरीज की मौत पर अंतिम संस्कार करने वाले ने कहा- अब नहीं देनी होगी किसी को यूं अंतिम विदाई

ऐसा लगा जैसे ईनाम मिल गया

ऐसा लगा जैसे ईनाम मिल गया

छतरपुर। वैश्विक महामारी कोरोना के खिलाफ पिछले 10 महीने से दिन रात संघर्ष कर रहे मेडिकल स्टाफ ने राहत की सांस ली है। लोगों ने भी अब संघर्ष और मौत के खौफ से काफी हद तक राहत महसूस की है। टीकाकरण शुरु होने से कोरोना से मौत का सिलसिला थमने के साथ ही बेपटरी हो चुकी जिंदगी को रफ्तार मिलने की उम्मीद जगी है। पिछले 10 महीने से दिन रात काम कर रहे डॉक्टर, मेडिकल स्टाफ ही नहीं बल्कि महामारी की चपेट में आने से परिजनों को खोने वाले और उनको अंतिम विदाई देने वाले कर्मचारी तक राहत महसूस कर रहे हैं।
ऐसा लगा जैसे ईनाम मिल गया
नौगांव में जिले का पहला कोरोना मरीज सामने आने पर उसका इलाज करने वाले मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. एमके गुप्ता ने पत्रिका से बातचीत में बताया कि जब पहला मरीज आया तो वैश्विक महामारी को लेकर टेरर का माहौल था, अनजान व घातक बीमारी के मरीज को देखने जाने पर डर लग रहा था। लेकिन मन में जिम्मेदारी का भाव था, जिससे हौसला मिला और संक्रमित मरीज का इलाज शुरु किया। 10 दिन तक लगातार मरीज के पास जाते और उनके स्वास्थ का ख्याल रखते रहे। मरीज जब स्वस्थ हुआ तो खुशी हुई और हौसला इतना बढ़ गया कि नए-नए आने वाले मरीजों के इलाज की हिम्मत व अनुभव मिला। मरीज ठीक होकर घर जाते तो खुशी होती। बीमारी से संघर्ष का ये सिलसिला 10 महीने तक दिन-रात चला और अब कोविड का वैक्सीन आया तो एक सकून हैं, कि अब लोग एक हद तक इस बीमारी से सुरक्षित हो जाएंगे। पूरे संघर्ष में मेडिकल स्टाफ से लेकर सफाई कर्मियों की विशेष भूमिका रही। आज मेडिकल स्टाफ को टीका लगा तो ऐसा लगा जैसे बड़ा ईनाम मिल गया हो, कोई बड़ा सम्मान मिल गया हो। 10 महीने के संघर्ष को एक पड़ाव मिल गया है।
अब अपने नहीं होंगे बेगाने
जिले में कोरोना संक्रमण से मौत के बाद शासन द्वारा जारी की गई गाइडलाइन के मुताबिक पार्थिव शरीर को परिजनों को न देकर उनका अंतिम संस्कार कोविड गाइडलाइन के तहत किया जाना था। परिजन चाहकर भी पास नहीं आ सकते थे। ऐसे में परिजन की तरह ही जिम्मेदारी के भाव से अंतिम विदाई देने वाले सुरेश कहते है कि अब टीका आ गया है तो अब किसी को उस तरह से अंतिम विदाई नही देना होगी। सुरेश का कहना है कि शवों का अंतिम संस्कार हमेशा करते रहते हैं, लेकिन संक्रमण वाले शवों का अंतिम संस्कार करने में डर तो था ही, लेकिन हमारे अंदर जिम्मेदारी का भाव है, इसलिए डर महसूस नहीं हुआ। सुरक्षा के संसाधन तो साथ में थे ही, मन में बस एक भाव था, कि बीमारी से जान गंवाने वाले इस सख्स की अंतिम विदाई सम्मानजनक तरीके से हो जाए। जिम्मेदारी के इसी भाव के चलते कठिन कार्य की राह आसान हो गई। लेकिन अब खुशी है कि किसी को इस तरह से अब दुनिया से नहीं जाना पड़ेगा।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो