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बारिश में नया ठिकाना खोज रहे युवा बाघ, छतरपुर जिले के किशनगढ़ का कर रहे रुख

locationछतरपुरPublished: Aug 09, 2022 03:58:33 pm

Submitted by:

Dharmendra Singh

टाइगर रिजर्व प्रबंधन ड्रोन व अन्य माध्यमों से बाघों की कर रहा निगरानीकेन बेतवा लिंक परियोजना के तहत होना है विस्थापन, नए एरिया में बसने से विस्थापन होगा आसान

टाइगर रिजर्व प्रबंधन ड्रोन व अन्य माध्यमों से बाघों की कर रहा निगरानी

टाइगर रिजर्व प्रबंधन ड्रोन व अन्य माध्यमों से बाघों की कर रहा निगरानी


छतरपुर. केन बेतवा लिंक परियोजना का काम शुरु होने से पहले ही पन्ना टाइगर रिजर्व के बाध नया ठिकाना खोजने लगे हैं। हालांकि खोज की यह प्रक्रिया हर सा बारिश में होती है। बारिश के दौरान बाघ अपने लिए सुरक्षित क्षेत्र की तलाश में रहते हैं। आधा दर्जन से अधिक युवा बाघ अपना नया इलाका खोज रहे हैं। केन बेतवा लिंक परियोजना के तहत विस्थापन से पहले युवा बाघों के कोर ेएरिया छोडऩे से विस्थापन आसान हो जाएगा। किशनगढ़ बफर जोन से नौरादेही कॉरीडोर की राह आसान होने से विस्थापन सरल व सहज हो जाएगा। टाइगर रिजर्व प्रबंधन नया ठिकाना खोजने वाले इन बाघों की ड्रोन व अन्य माध्यमों से निगरानी की जा रही है।
बफर जोन में बढ़ेगी बाघों की संख्या
टाइगर रिजर्व प्रबंधन अनुमान है कि पलायन करने वाले बाघ कोर और बफर जोन के क्षेत्रों में जा सकते हैं। इन क्षेत्रों में केन नदी से पश्चिम में छतरपुर जिले के किशनगढ़ रेंज में बाघों के जाने की ज्यादा संभावना है। कोर एरिया के 90 से 100 वर्ग किलोमीटर क्षेेत्र में बाघों की अच्छी संख्या है, जबकि शेष 160 वर्ग किमी में बाघों की मौजूदगी कम होने से पलायन कर छतरपुर जिले के बफर एरिया में पहुंच सकते हैं। वहीं, एनएच 39 के उत्तर का करीब 200 वर्ग किलोमीटर का इलाका है। यह गंगऊ अभयारण्य के साथ पन्ना बफर का क्षेत्र है, जो पन्ना टाइगर रिजर्व की बाघिनों का ब्रीडिंग सेंटर भी बन सकता है।
60 से अधिक बाघ मौजूद
पन्ना टाइगर रिजर्व में करीब 60 वयस्क बाघ और 20 से अधिक एक साल से कम उम्र के शावक होने का अनुमान है। यहां 550 वर्ग किमी कोर सहित करीब 800 वर्ग मीटर क्षेत्र में बाघों का कब्जा है। यहां बाघों का औसत घनत्व प्रति 100 वर्ग किमी में सात बाघ है। वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट एसके सूरी बताते हैं कि हर साल मानसून सीजन में युवा बाघ अपने लिए सुरक्षित एरिया की खोज में निकलते हैं। वे चारों ओर पानी और शिकार की उपलब्धता के आधार पर अपना घर बनाते हैं।
नदी जोड़ो परियोजना की कार्ययोजना में भी शामिल
केन बेतवा लिंक परियोजना की कार्य योजना में वन्यजीव संरक्षण के लिए भी विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। इसमें मध्यप्रदेश के नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य और दुर्गावती वन्यजीव अभयारण्य, उत्तर प्रदेश के रानीपुर वन्य जीव अभयारण्य के मध्य संपर्क मार्ग बनाकर एक ऐसे कॉरिडोर के निर्माण की परिकल्पना की गई है, जिसकी मदद से तीन सेंचुरी में बाघ संरक्षण के लिए उपयुक्त पारिस्थितिकी तंत्र उपलब्ध हो सकेगा। इससे बाघों के संरक्षण के साथ रानीपुर में भी बाघ और दूसरे वन्यजीवों की आबादी को स्थापित करने में मदद मिलेगी।
बाघ के साथ गिद्ध और धडिय़ाल का भी होगा संरक्षण
दोनों नदियों और उनके आसपास के पूरे इलाके का व्यापक अध्ययन और डाटा विश्लेषण किया गया है। साथ ही प्रस्तावित गतिविधियों के कार्यान्वयन के लिए विस्तार पूर्वक प्रत्येक साइड का इनपुट भी एकत्र किया जिसमें बाघ, गिद्ध और घडिय़ाल जैसी प्रमुख जातियों के संरक्षण और उन्हें आवास के साथ-साथ बेहतर प्रबंधन देने के लिए भी इस एकीकृत प्लान में व्यापक प्रावधान किए गए हैं। रिपोर्ट में स्थानीय परिदृश्य में जैव विविधता संरक्षण और मानव कल्याण के साथ रोजगार सृजन पर विशेष जोर दिया गया है। इसके अलावा वन आश्रित समुदायों को समायोजित करने के लिए इसके तहत विशेष रूप से प्रावधान किए गए हैं।
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