इन 32 प्रजातियों को बचाने की कवायद सतपुड़ा अंचल में बसा छिंदवाड़ा एक समय में अपनी वनसंपदा के कारण पूरे देश में विख्यात था। आयुर्वेद पद्धति से इलाज में उपयोग में लाई जाने वाली कई औषधियों के पौधे यहां के वनांचल में ही पाए जाते हैं और उनकी बहुत मांग भी बताई जाती है। तेजी से खत्म होती इस वन सम्पदा को बचाने की कोशिश अब हो रही है। इनमें बीजा, अचार, हल्दू, मैदा, सलई, कुल्लू, गुग्गल, दहिमन, शीशम, लोध्र, पाडर, सोनपाठा, तिन्सा, धनकट, कुसुम, भारंगी, मालकांगनी, कलिहारी, माहुल, गुणमार, निर्गुण, हकंद, केवकंद, गुलबकावली, मंजिष्ठ, ब्राम्हनी आदि जाति के पौधों की उपयोगिता आज भी बहुत है।
19 प्रजातियों पर खतरा सबसे ज्यादा वन विभाग ने जो जानकारी इकट्ठा की है उसमें 19 प्रजातियों के खत्म होने का संकट बन गया है। इनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है। दहिमन, सोनपाठा, लोध्र और गुग्गल प्रजाति के पौधे ज्यादा संकट में है और इनमें से ज्यादातर अब जंगलों में दिखाई ही नहीं दे रहे हैं। वहीं लगातार कटाई और संरक्षण की अनदेखी और बदलते पर्यावरण के कारण संवेदनशील माने जा रहे शीशम, बीजा, पाडर अर्धकपारी, कुल्लू और कैथा प्रजाति के पेड़ हैं। इनमें से शीशम और बीजा की लकड़ी तो उपयोगी सामान बनाने के लिए काम भी लाई जाती है। इसकी ज्यादा कटाई भी इनके खत्म होने का एक कारण बन रही है। इधर सलई, अचार या चिरौंजी, धनकट, धामिन, अंजन, तिन्सा, हल्दू और कुसुम प्रजाति के वृक्षों को भी सहेजा नहीं गया तो निकट भविष्य में इनके भी खत्म होने का संकट मंडराने लगेगा।