script32 प्रजाति की वन सम्पदा पर आए संकट को टालने एक करोड़ पौधे कराए तैयार | 1 crore saplings ready to avert crisis over forest wealth of 32 specie | Patrika News

32 प्रजाति की वन सम्पदा पर आए संकट को टालने एक करोड़ पौधे कराए तैयार

locationछिंदवाड़ाPublished: Jun 01, 2020 06:03:41 pm

Submitted by:

Rajendra Sharma

वन विभाग की पहल: कई पेड़-पौधों से बनती हैं औषधियां

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In the riparian zone, cultivation is done by cutting the plants inside the wire fencing

छिंदवाड़ा/ वन विभाग इन दिनों संकट में आईं 32 प्रजातियों के पेड़ों को बचाने की कवायद में जुटा है। इनको बचाने के लिए विभाग ने एक करोड़ पौधे तैयार किए हैं। इन पौधों को वन विभाग की नर्सरियों में दिया जा रहा है। लोगों से इन पौधों को लगाने का आग्रह किया जाएगा और इन्हें बेहद कम दामों में उपलब्ध कराया जाएगा। इसका उद्देश्य यह है कि अपने अस्तित्व पर आए संकट से जूझ रहीं इन वनसंपदाओं को बचाया जा सके। ध्यान रहे इनमें से कई पेड़ ऐसे हैं जिनके पत्ते और छाल का उपयोग औषधियों के रूप में या फिर औषधियों के निर्माण के लिए किया जाता है।
बताया गया कि वन विभाग ने दुर्लभ संकटापन्न 32 प्रजातियों के एक करोड़ पौधे तैयार किए हैं। जीवनोपयोगी और औषधि के रूप में प्रयोग किए जाने वाले ये पौधे ग्रामीणों और वनवासियों की आय का स्रोत भी हैं।
इन 32 प्रजातियों को बचाने की कवायद

सतपुड़ा अंचल में बसा छिंदवाड़ा एक समय में अपनी वनसंपदा के कारण पूरे देश में विख्यात था। आयुर्वेद पद्धति से इलाज में उपयोग में लाई जाने वाली कई औषधियों के पौधे यहां के वनांचल में ही पाए जाते हैं और उनकी बहुत मांग भी बताई जाती है। तेजी से खत्म होती इस वन सम्पदा को बचाने की कोशिश अब हो रही है। इनमें बीजा, अचार, हल्दू, मैदा, सलई, कुल्लू, गुग्गल, दहिमन, शीशम, लोध्र, पाडर, सोनपाठा, तिन्सा, धनकट, कुसुम, भारंगी, मालकांगनी, कलिहारी, माहुल, गुणमार, निर्गुण, हकंद, केवकंद, गुलबकावली, मंजिष्ठ, ब्राम्हनी आदि जाति के पौधों की उपयोगिता आज भी बहुत है।
19 प्रजातियों पर खतरा सबसे ज्यादा

वन विभाग ने जो जानकारी इकट्ठा की है उसमें 19 प्रजातियों के खत्म होने का संकट बन गया है। इनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है। दहिमन, सोनपाठा, लोध्र और गुग्गल प्रजाति के पौधे ज्यादा संकट में है और इनमें से ज्यादातर अब जंगलों में दिखाई ही नहीं दे रहे हैं। वहीं लगातार कटाई और संरक्षण की अनदेखी और बदलते पर्यावरण के कारण संवेदनशील माने जा रहे शीशम, बीजा, पाडर अर्धकपारी, कुल्लू और कैथा प्रजाति के पेड़ हैं। इनमें से शीशम और बीजा की लकड़ी तो उपयोगी सामान बनाने के लिए काम भी लाई जाती है। इसकी ज्यादा कटाई भी इनके खत्म होने का एक कारण बन रही है। इधर सलई, अचार या चिरौंजी, धनकट, धामिन, अंजन, तिन्सा, हल्दू और कुसुम प्रजाति के वृक्षों को भी सहेजा नहीं गया तो निकट भविष्य में इनके भी खत्म होने का संकट मंडराने लगेगा।
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