एसडीएम सिंह ने बताया कि जिला अस्पताल के ड्रेनेज सिस्टम में बने जाम और गंदगी को दूर करने के लिए इससे पहले भी कई बार बैठकें हुई, लेकिन संतोषजनक कार्य नहीं किया गया। इस अवसर पर महिला बाल विकास विभाग के अधिकारी समेत मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. जेएस गोगिया, सिविल सर्जन डॉ. सुशील राठी, आरएमओ डॉ. सुशील दुबे, सभी डीएचओ, ब्लाक मेडिकल ऑफिसर, डीपीएम शैलेंद्र सोमकुंवर समेत अन्य अधिकारी-कर्मचारी मौजूद थे।
तीन दिन में मांगा स्टीमेट –
जिला अस्पताल के 15 वर्षों से ब्लाक डे्रनेज सिस्टम को दुरुस्थ करने के लिए पीआइयू तथा पीडब्ल्यूडी विभाग ने आवश्यक बजट उपलब्ध नहीं होने की बात पर कार्य करने से इनकार कर दिया। इसके बाद एसडीएम सिंह ने उन्हें तीन दिवस के भीतर डे्रनेज सिस्टम की मरम्मत में होने वाले खर्च का स्टीमेट तैयार करने को कहा है, जिसे कलेक्टर के अनुमोदन पर स्वीकृति दिलाई जाएगी।
जिला अस्पताल के 15 वर्षों से ब्लाक डे्रनेज सिस्टम को दुरुस्थ करने के लिए पीआइयू तथा पीडब्ल्यूडी विभाग ने आवश्यक बजट उपलब्ध नहीं होने की बात पर कार्य करने से इनकार कर दिया। इसके बाद एसडीएम सिंह ने उन्हें तीन दिवस के भीतर डे्रनेज सिस्टम की मरम्मत में होने वाले खर्च का स्टीमेट तैयार करने को कहा है, जिसे कलेक्टर के अनुमोदन पर स्वीकृति दिलाई जाएगी।
डिस्पोजल बनी समस्या –
बताया जाता है कि प्लास्टिक बॉटल और गिलास का उपयोग वर्तमान में बढ़ गया है, लेकिन इसके प्रबंधन को लेकर अब तक लोगों में जागरूकता नहीं आई है। डिस्पोजल का उपयोग कर लोग कही भी फेंक देते है, जो कि पानी के माध्यम से नालियों में जाकर फंस जाता है। इस वजह से ब्लाकेज बनते है।
बताया जाता है कि प्लास्टिक बॉटल और गिलास का उपयोग वर्तमान में बढ़ गया है, लेकिन इसके प्रबंधन को लेकर अब तक लोगों में जागरूकता नहीं आई है। डिस्पोजल का उपयोग कर लोग कही भी फेंक देते है, जो कि पानी के माध्यम से नालियों में जाकर फंस जाता है। इस वजह से ब्लाकेज बनते है।
रेफरल पर होगी कार्रवाई – कलेक्टर सभा कक्ष में हुई समीक्षा बैठक में सामने आया है कि इमरजेंसी एंबुलेंस 108 द्वारा सीधे मरीजों को जिला अस्पताल लाया जाता है। इसकी वजह से जिला अस्पताल में अनावश्यक दबाव बनता है, जिसे रोकने के लिए एसडीएम ने सभी बीएमओ को स्थानीय स्तर पर मरीजों को उपचार देने तथा गंभीर अवस्था में होने पर रेफर करने के निर्देश दिए है।