वैज्ञानिकों का कहना- सोच बदलें किसान
कृषि अनुसंधान केंद्र के सहायक संचालक और वरिष्ठ मक्का वैज्ञानिक डॉ. वीके पराडकर ने बताया कि ये कीट खत्म नहीं होते। इधर-उधर मंडराते रहते हैं। फॉल आर्मी वर्म अभी भी जिंदा है। गेहूं में भी इनका प्रकोप दिखा है, लेकिन इसको मक्का, गन्ना ज्यादा प्रिय है। अनुकूल मौसम मिला तो वह फिर से सक्रिय हो जाएगा। ऐसे में किसान अपनी परंपरागत सोच को बदलें। यदि मक्का की फसल को आगे भी जिले में बचाए रखना है तो किसानों को स्थिति को देखते हुए निर्णय लेना चाहिए।
जरा से लाभ के लिए ज्यादा खतरा न लें किसान
कृषि विभाग किसानों को सुझाव दे रहा है कि किसान जरा-सा लाभ पाने भविष्य के लिए ज्यादा खतरा पैदा न करें। इस साल वे स्वीट और बेबी कॉर्न या फिर हाइब्रीड मक्का को नहीं बोएं। साथ ही अपने आसपास ऐसा करने वाले किसानों को भी समझाएं। ध्यान रहे यह वार्म एक जगह से दूसरी जगह को भी प्रभवित करता है। इसके बजाय किसानों को दहलन फसल खेतों में लगाने के लिए कहा गया है। उपसंचालक कृषि जेआर हेडाऊ ने बताया कि हम किसानों तिलहन के लिए पूरे बीज और सरकारी लाभ देने के लिए तैयार हंै। इसके लिए वे मुख्य कार्यालय या फिर अपने क्षेत्र के अधिकारियों से भी चर्चा कर सकते हैं।
पिछले साल जुलाई में किया था आक्रमण
साल 2019 की जुलाई में अचानक फॉल आर्मी वर्म का प्रकोप मक्का की फसल में देखा गया था। चिंता की बात इसलिए भी है क्योंकि इसका प्रकोप पूरे जिले में दिखाई दिया था। पिछले जुलाई माह में इसका प्रकोप हुआ तो एक पखवाड़े में यह जिले के 400 गावों की हजारों हैक्टेयर की फसल को अपनी चपेट में ले चुका था। राहत की बात यह रही थी कि उसी दौरान तेज बारिश शुरू हो गई। जिले में 2019 में समान्य से ज्यादा और लगातार हुई बारिश ने वर्म के आक्रमण के समय उसे नष्ट कर दिया। उसके बावजूद 25 से 30 प्रतिशत मक्का की फसल को यह कीट चट कर चुका था।
विभागीय अधिकारियों और कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि सामान्य बारिश के हालात ही रहते तो मक्का की फसल 80 से 90 प्रतिशत तक खत्म हो जाती। जहां पिछले साल मक्का लगी थी वहां अभी भी ये कीट हो सकता है और गर्मी के दो-तीन महीने में यदि वह फिर से पनप गया या उसने अंडे दे दिए तो यह पिछले साल जैसे हालात पैदा कर देगा। पिछले बार तो बारिश ने बचा लिया इस बार वैसी स्थिति नहीं रही तो हालात क्या होंगे, समझा जा सकता है।
ध्यान रहे मक्का जिले में अब तक के सबसे ज्यादा रकबे में लिया जा रहा है। पिछली खरीफ में सवा तीन लाख हैक्टेयर तक यह फसल लगी थी। इस बार भी इसी के आसपास किसान इसकी बोवनी करेंगे।
साल 2019 की जुलाई में अचानक फॉल आर्मी वर्म का प्रकोप मक्का की फसल में देखा गया था। चिंता की बात इसलिए भी है क्योंकि इसका प्रकोप पूरे जिले में दिखाई दिया था। पिछले जुलाई माह में इसका प्रकोप हुआ तो एक पखवाड़े में यह जिले के 400 गावों की हजारों हैक्टेयर की फसल को अपनी चपेट में ले चुका था। राहत की बात यह रही थी कि उसी दौरान तेज बारिश शुरू हो गई। जिले में 2019 में समान्य से ज्यादा और लगातार हुई बारिश ने वर्म के आक्रमण के समय उसे नष्ट कर दिया। उसके बावजूद 25 से 30 प्रतिशत मक्का की फसल को यह कीट चट कर चुका था।
विभागीय अधिकारियों और कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि सामान्य बारिश के हालात ही रहते तो मक्का की फसल 80 से 90 प्रतिशत तक खत्म हो जाती। जहां पिछले साल मक्का लगी थी वहां अभी भी ये कीट हो सकता है और गर्मी के दो-तीन महीने में यदि वह फिर से पनप गया या उसने अंडे दे दिए तो यह पिछले साल जैसे हालात पैदा कर देगा। पिछले बार तो बारिश ने बचा लिया इस बार वैसी स्थिति नहीं रही तो हालात क्या होंगे, समझा जा सकता है।
ध्यान रहे मक्का जिले में अब तक के सबसे ज्यादा रकबे में लिया जा रहा है। पिछली खरीफ में सवा तीन लाख हैक्टेयर तक यह फसल लगी थी। इस बार भी इसी के आसपास किसान इसकी बोवनी करेंगे।