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देशभर के वैज्ञानिक जुटे इस संकट के समाधान के लिए, जानिए क्या है मामला

locationछिंदवाड़ाPublished: Jul 14, 2019 09:53:44 pm

Submitted by:

prabha shankar

आर्मी वर्म ने बढ़ाई चिंता, बारिश न होने से बिगड़े हालात, वैज्ञानिकों व अधिकारियों की टीम ने देखे मक्का के खेत

Chhindwara

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छिंदवाड़ा. इस वर्ष जिले में अब तक के सबसे ज्यादा रकबे में बोई मक्का की फसल पर आर्मी फाल वर्म के प्रकोप ने चिंता बढ़ा दी है। किसान तो पौधों के सुरक्षित बढऩे को लेकर ही आशंकित हैं तो कृषि वैज्ञानिक और विभाग के अधिकारियों के माथे पर भी पसीना आ रहा है। देशभर के वैज्ञानिक यहां का दौरा कर रहे हैं और इस कीट से छुटकारे और बचाव का तरीका ढूंढ रहे हैं। रविवार को कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के वैज्ञानिकों और अधिकारियों की टीम फिर छिंदवाड़ा पहुंची और लिंगा, खूनाझिरखुर्द क्षेत्र के कई खेतों में जाकर वैज्ञानिकों और कीट विशेषज्ञों ने पौधों की स्थिति देखी। दल में संयुक्त संचालक कृषि केएस नेताम, जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. भौमिक, आंचलिक अनुसंधान केंद्र के डॉ. विजय पराडकर, केविके के डॉ. सावरकर, एसडीओ एनके पटवारी, धीरज ठाकुर शामिल थे। दल ने अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर कई एकड़ में बोए मक्का के हालात और उसमें लगे कीटों का निरीक्षण भी किया। किसानों के साथ भ्रमण के दौरान उन्होंने कीट के प्रकोप से बचाव से सम्बंधित जानकारी दी और कीट से बचने दवाओं की जानकारी भी दी।


300 से ज्यादा गांवों को लिया चपेट में
एक सप्ताह में आर्मी वर्म फाल कीट ने मक्का उत्पादन वाले 300 से ज्यादा गांवों में बोई गई मक्का को अपनी चपेट में ले लिया है। मुख्य रूप से छिंदवाड़ा, चौरई, परासिया, अमरवाड़ा और बिछुआ में कीट ने आक्रमण ज्यादा किया है। इसके अलावा अन्य क्षेत्रों में भी अभी इक्का- दुक्का गांवों में यह कीट मक्का में दिखाई दे रहा है।

अवर्षा और बिगाड़ रही है हालात
कीट विशेषज्ञों और कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि बारिश न होने के कारण हालात और बिगड़ते दिख रहे हैं। यह कीट उमस और गर्मी के वातावरण और जल्दी पनपता और फैलता है। जिला लगातार दूसरे साल अवर्षा से जूझ रहा है। पिछले साल तो जैसे तैसे शुरुआती बारिश के कारण मक्का की फसल सम्हल गई। इस बार पानी न गिरने के कारण वैसे ही उत्पादन पर प्रभाव दिखने की आशंका बन रही थी उसपर से इस कीट के आक्रमण ने तो हालात और बेहाल कर दिए हैं। अगर तेज बारिश हो जाए तो इसके प्रकोप से मक्का को बचाया जा सकता है, लेकिन जिले में पानी बरस ही नहीं रहा। यह सबके लिए चिंता का विषय बना हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि इल्ली के रूप में यह बदल जाए तो फिर इस पर काबू पाना मुश्किल रहेगा।

किसान-वैज्ञानिकों की हुई संगोष्ठी
रविवार को आंचलिक अनुसंधान केंद्र, कृषि विभाग के सहयोग से एक संगोष्ठी का आयोजन भी किया गया। इसमें निजी कंपनियों के सहयोग से किसानों और वैज्ञानिकों ने आपस में चर्चा की। वैज्ञानिकों और अधिकारियोंने किसानों से इस आपदा से निपटने के लिए किसानों को प्रारम्भिक उपाय, दवा छिडक़ाव और लगातार निगारानी की बात कही।

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