विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर मनोचिकित्सक डॉ. रवि ढवले ने पत्रिका से विशेष चर्चा की तथा बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इन बातों को लेकर चिंतित है। मानसिक रोगों से पीडि़त कई बच्चों के परिजन उनके पास उपचार या सलाह लेने आ रहे हैं। डब्ल्यूएचओ इस वर्ष इसी थीम पर कार्य कर रहा है। डॉ. ढवले ने बताया कि किशोरावस्था एवं शुरुआती कुमारावस्था उम्र के एेसे पड़ाव हंै, जहां बदलाव देखे जाते हंै। इस समय सामाजिक तथा भावनात्मक रिश्ते बनते बिगड़ते रहते हैं।
इस उम्र में संतुलित आहार, भरपूर नींद और व्यायाम की आदत रिश्तों को सशक्त बनाए रखता है। डॉ. ढवले ने बताया कि युवा अवस्था में मानसिक स्वास्थ्य पर ‘पीयर प्रेशर’, स्वायत्तता की आवश्यकता, लैंगिकता का अविष्कार, टेक्नोलॉजी का भरपूर प्रयोग तनाव उत्पन्न
करता है।
करता है।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक
10 से 20 प्रतिशत युवा कुछ न कुछ मानसिक समस्याओं से जूझ रहे हंै। 50 प्रतिशत मानसिक समस्याएं 14 वर्ष की उम्र में ही शुरू हो जाती हैं। यह बीमारी बिना उपचार और अनजान होती हैं। युवा अवस्था में डिप्रेशन तीसरे नम्बर की बीमारी है। 15 से 29 वर्ष की आयु में आत्म हत्या करना दूसरे नम्बर की समस्या है।
शराब, नशा तथा असुरक्षित लैंगिकता के प्रति रुझान समेत चिड़चिड़ापन, जल्दी गुस्सा आना, सिर दर्द, अकेला रहना अच्छा लगना आदि भी इस समस्या का हिस्सा है। इन उपाय से कर सकते है नियंत्रण परिजन को ज्यादा समय अपने बच्चों को देना चाहिए तथा व्यसनों के दुष्प्रभावों की विस्तृत जानकारी देना चाहिए।
लैंगिक शिक्षण देकर गलत धारणाओं से अवगत कराया जा सकता है। इसके अलावा काउंसलिंग कर भी पीडि़त की मन: स्थिति में बदलाव किया जा सकता है। समय-समय पर स्कूल, कॉलेज तथा अन्य संस्थाओं में भी जागरुकता कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।