शराब की बोलत को नजदीक से देखा
मनीष ने बताया कि एक दिन गैराज में काम करने वाला दोस्त शराब की बोलत लेकर हमलोगों के पास आया। हमलोगों ने उसे बहुत डांटा और भगा दिया। चार से पांच दिन बाद वह फिर आया और कहने लगा कि शराब पीने से पढ़ाई में बहुत अधिक मन लगता है, तुम लोग नहीं पीना चाहते तो मैं तुम पर दबाव नहीं डालूंगा, थोड़ा पीकर देखो अच्छा लगेगा। मनीष ने बताया कि उस दिन हम सभी दोस्तों ने थोड़ी-थोड़ी पी ली। इसके बाद हफ्ते में एक दिन शराब पीने का सिलसिला शुरु हो गया। हमलोगों को शराब की लत लग गई। गैराज में काम करने वाले दोस्त का हमलोग रोज शाम को इंतजार करने लगे। पैसे इतने नहीं थे कि हमलोग नशा खरीद पाएं। इसके बाद मैं शराब के खर्चे के लिए गैराज में ही काम करने लगा।
दो वर्ष तक रोज करते थे नशा का सेवन
मनीष ने बताया कि गैराज में जो भी कमाई होती थी वह पूरी नशा करने में खर्चे हो जाती थी। दो वर्ष तक मैं प्रतिदिन शराब का सेवन किया। इस दौरान मेरे नशा के बारे में घरवालों को भी पता चल गया। मैं फिर भी छुप-छुप कर शराब पीता रहा। मैं शारीरिक रूप से कमजोर भी हो चुका था। इसी दौरान पिता को हॉर्ट अटैक आ गया। घर में पैसे की तंगी भी हो गई। मां और आसपड़ोस वालों ने नशा छोडऩे के लिए मुझे बहुत समझाया। प्रारंभ में तो मैंने कई बार नशा छोडऩे की कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हुआ। नशा मुक्ति केन्द्र में भी संपर्क किया। खुद को घर में भी बंद किया। आखिरकार चार माह के प्रयास के बाद मुझे सफलता मिल गई।
मनीष ने बताया कि गैराज में जो भी कमाई होती थी वह पूरी नशा करने में खर्चे हो जाती थी। दो वर्ष तक मैं प्रतिदिन शराब का सेवन किया। इस दौरान मेरे नशा के बारे में घरवालों को भी पता चल गया। मैं फिर भी छुप-छुप कर शराब पीता रहा। मैं शारीरिक रूप से कमजोर भी हो चुका था। इसी दौरान पिता को हॉर्ट अटैक आ गया। घर में पैसे की तंगी भी हो गई। मां और आसपड़ोस वालों ने नशा छोडऩे के लिए मुझे बहुत समझाया। प्रारंभ में तो मैंने कई बार नशा छोडऩे की कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हुआ। नशा मुक्ति केन्द्र में भी संपर्क किया। खुद को घर में भी बंद किया। आखिरकार चार माह के प्रयास के बाद मुझे सफलता मिल गई।
वर्तमान स्थिति में नशा छोडऩा बहुत आसान
मनीष कहते हैं कि बुरी संगत उस कोयले के समान है, जो गर्म हो तो हाथ को जला देता है और ठंडा हो तो काला कर देता है। वहीं नशा ऐसी चीज है जो परिवार और अपनों से नाता तोड़ देती है। मनीष कहते हैं कि मैं आज प्राइवेट नौकरी कर खुशी-खुशी परिवार का जीवन यापन कर रहा हूं। प्रारंभ में मुझे लगा था कि नशा छोडऩा असंभव है, लेकिन दृढ़संकल्प से मैंने नशे से छुटकारा पा लिया। यह तब की बात है जब नशा करने के लिए साधन आसानी से उपलब्ध हो जाते थे, लेकिन वर्तमान में नशा बेचने पर प्रतिबंध है। यह समय नशा छोडऩे के लिए उपयुक्त है। मनीष ने च्पत्रिकाज् अभियान नशा मुक्त हो मध्यप्रदेश की भी सराहना की।
मनीष कहते हैं कि बुरी संगत उस कोयले के समान है, जो गर्म हो तो हाथ को जला देता है और ठंडा हो तो काला कर देता है। वहीं नशा ऐसी चीज है जो परिवार और अपनों से नाता तोड़ देती है। मनीष कहते हैं कि मैं आज प्राइवेट नौकरी कर खुशी-खुशी परिवार का जीवन यापन कर रहा हूं। प्रारंभ में मुझे लगा था कि नशा छोडऩा असंभव है, लेकिन दृढ़संकल्प से मैंने नशे से छुटकारा पा लिया। यह तब की बात है जब नशा करने के लिए साधन आसानी से उपलब्ध हो जाते थे, लेकिन वर्तमान में नशा बेचने पर प्रतिबंध है। यह समय नशा छोडऩे के लिए उपयुक्त है। मनीष ने च्पत्रिकाज् अभियान नशा मुक्त हो मध्यप्रदेश की भी सराहना की।