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चंद्रशेखर आजाद का शहीद दिवस मनाया, आप भी जानें बलिदान की गाधा

locationछिंदवाड़ाPublished: Feb 29, 2020 11:59:51 am

Submitted by:

Rajendra Sharma

याद किया बलिदान, शहीद स्मारक पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए

Celebrated the Martyrdom Day of Chandrashekhar Azad

Celebrated the Martyrdom Day of Chandrashekhar Azad

छिंदवाड़ा/ सर्व जागृृति गण (सजग) परिषद से जुड़े लोगों ने गुरुवार को चंद्रशेखर आजाद का शहीद दिवस मनाया।
संस्था के संयोजक इंजीनियर कृपाशंकर यादव ने बताया कि गुरुवार को देशभक्त चंद्रशेखर आजाद के बलिदान दिवस पर नगर के शहीद स्मारक पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए। साबलेवाड़ी बरारीपुरा वार्ड 25 में ओम-कुटी में सजग धूनी ध्यान के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इसी क्रम में एक संगोष्ठी आयोजित की गई, जिसमें सजग बुजुर्ग पंचायत, सजग प्रबुद्ध मंडल, अपना पेंशनर्स मंडल के सदस्यों ने देशभक्त चंद्रशेखर आजाद के बलिदान को याद किया।
यादव ने बताया कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा नामक स्थान पर हुआ थ। चंद्रशेखर आजाद 14 वर्ष की आयु में बनारस गए और वहां एक संस्कृत पाठशाला में पढ़ाई की। वहां उन्होंने कानून भंग आंदोलन में योगदान दिया था। 1920-21 में वे गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े। वे गिरफ्तार हुए और जज के समक्ष प्रस्तुत किए गए। जहां उन्होंने अपना नाम ‘आजाद’, पिता का नाम ‘स्वतंत्रता’ और ‘जेल’ को उनका निवास बताया। तब उन्हें 15 कोड़ों की सजा दी गई थी। हर कोड़े के वार के साथ उन्होंने ‘वन्दे मातरम’ और ‘महात्मा गांधी की जय’ का स्वर बुलंद किया। इसके बाद वे सार्वजनिक रूप से आजाद कहलाए। जब क्रांतिकारी आंदोलन उग्र हुआ, तब आजाद उस तरफ खिंचे और हिन्दुस्तान सोशलिस्ट आर्मी से जुड़े। रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद ने काकोरी षड्यंत्र (1925) में सक्रिय भाग लिया और पुलिस की आंखों में धूल झोंककर फरार हो गए। 17 दिसंबर 1928 को चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और राजगुरु ने शाम के समय लाहौर में पुलिस अधीक्षक के दफ्तर को घेर लिया और जैसे ही जेपी साण्डर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटरसाइकिल पर बैठकर निकले तो राजगुरु ने पहली गोली दाग दी, जो साण्डर्स के माथे पर लग गई, वह मोटरसाइकिल से नीचे गिर पड़ा। फिर भगत सिंह ने आगे बढकऱ 4-6 गोलियां दाग कर उसे बिल्कुल ठंडा कर दिया। जब साण्डर्स के अंगरक्षक ने उनका पीछा किया, तो चंद्रशेखर आजाद ने अपनी गोली से उसे भी समाप्त कर दिया। इतना ही नहीं लाहौर में जगह-जगह परचे चिपका दिए गए, जिन पर लिखा था- लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला ले लिया गया है। उनके इस कदम को समस्त भारत के क्रांतिकारियों खूब सराहा गया। अलफ्रेड पार्क, इलाहाबाद में 1931 में उन्होंने रूस की बोल्शेविक क्रांति की तर्ज पर समाजवादी क्रांति का आह्वान किया। उन्होंने संकल्प किया था कि वे न कभी पकड़े जाएंगे और न ब्रिटिश सरकार उन्हें फांसी दे सकेगी। इसी संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने 27 फरवरी 1931 को इसी पार्क में स्वयं को गोली मारकर मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दे दी।
कार्यक्रम में शिवम जैन, श्याम, अर्चना जैन, अरुण जैन, शिवम यादव, शशिकांता, देवकी, ज्योति, लक्ष्मीबाई, सौरभ सोनी, राम वर्मा, महेन्द्र सोनी, रामदास मंडराह, रामअवतार डहेरिया, एलआर दौडक़े आदि की सहभागिता रही।
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