बबलू स्थानीय स्तर से लेकर बडे-बड़े शहरों तक रंगीन गोभी के बीज तलाशते रहे, लेकिन सफल नहीं हुए। आखिरकार छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर में उनकी यह तलाश पूरी हुई। आमतौर पर सर्द के सीजन में ही रंगीन गोभी की खेती की जाती है। बबलू ने भी अपने 20 डिसमिल खेत पर रंगीन गोभी के बीज रोप डाले।
बबलू ने बताया अपेक्षाकृत रंगीन गोभी की खेती में बीज से लेकर उत्पादन तक ज्यादा लागत आती है। उत्पादन भी 60-70 प्रतिशत ही मिलता है, लेकिन जब सब्जी की कई गुना कीमत मिलती है तो मेहनत सफल हो जाती है। फिलहाल छोटे स्तर पर खेती कर रहे हैं इसीलिए उनकी पीली और गुलाबी-बैंगनी फूल गोभी नागपुर मंडी भेजी जाती है। वहां उन्हें चार गुना कीमत ज्यादा मिलती है। अब उनकी योजना अगले सीजन में स्थानीय बाजार में भी रंगीन गोभी बेचने की है।
इम्युनिटी बढ़ाने में ज्यादा मददगार:
बताया जाता है कि पीले रंग की गोभी कैरोटेना जबकि गुलाबी-बैंगनी गोभी एलेंटीना तत्व पाया जाता है। यह गोभी आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए फायदेमंद है। कैंसर से बचाव के लिए भी इसका सेवन लाभदायक माना जाता है। वहीं रंगीन गोभी में अधिक मात्रा में प्रोटीन होता है। इसमें कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम, जिंक जैसे गुण पाए जाते हैं। यह बुजुर्ग और गर्भवती महिलाओं काफी फायदेमंद है। साथ ही इससे इम्युनिटी भी काफी मजबूत होती है।
पारम्परिक खेती से ज्यादा फायदेमंद
बबलू ने बताया कि छोटे किसानों के लिए इस तरह की खेती ज्यादा फायदेमंद है। यदि छोटे किसान पारम्परिक खेती ही करते रहेंगे न तो उनकी आय बढ़ेगी न ही वह कुछ नया जान पाएंगे। वर्तमान में यदि कोई छोटा किसान पांच-दस एकड़ में भी गेहूं की खेती करता है तो उसकी लागत निकालने के बाद उसके हाथ कुछ भी नहीं बचता बल्कि नए-नए प्रयोग कर वह भी काफी मुनाफा कमा सकता है।
डिग्री नहीं ली, लेकिन ज्ञान समेटते रहे
बबलू 12वीं कृषि विषय से उत्तीर्ण हैं। उन्होंने बताया कि आगे की पढ़ाई के लिए जिले में पर्याप्त संसाधन नहीं थे। इसी वजह से उन्होंने खेती का रुख कर लिया। उन्होंने बताया कि मैंने भले ही आगे की पढ़ाई जारी नहीं रखी लेकिन शिक्षा से दूर नहीं रहा। जहां से जो ज्ञान मिलता गया उसे अपनाता रहा। इसी वजह से वे खेती में भी नवाचार पर जोर देते हैं। इसके पहले वे ब्रोकली, लेटिस पत्तागोभी की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा चुके हैं।