आज देश भर में 62 करोड़ किसान-मजदूर व 250 से अधिक किसान संगठन काले कानूनों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, पर प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी व उनकी सरकार सब ऐतराज दरकिनार कर देश को बरगला रहे हैं। अन्नदाता किसान की बात सुनना तो दूर, संसद में उनके नुमाईंदों की आवाज को दबाया जा रहा है। 62 करोड़ लोगों की जिंदगी से जुड़े काले कानून को संसद के परिसर के अंदर सिक्योरिटी गार्ड लगाकर, सांसदों के साथ धक्का मुक्की कर बगैर किसी मतविभाजन के पारित कर लिया गया। कृषि उपज खरीद व्यवस्था पूरी तरह नष्ट हो जाएगी। ऐसे में किसानों को न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलेगा और न ही बाजार भाव के अनुसार फसल की कीमत। इसका जीता जागता उदाहरण भाजपा शासित बिहार है। साल 2006 में अनाज मंडियों को खत्म कर दिया गया। आज बिहार के किसान की हालत बद से बदतर है। किसान की फसल को दलाल औने-पौने दामों पर खरीदकर दूसरे प्रांतों की मंडियों में मुनाफे पर बेचते हैं।
किसान नजदीक की मंडी में बेचता है उपज
अगर पूरे देश की कृषि उपज मंडी व्यवस्था ही खत्म हो गई, तो इससे सबसे बड़ा नुकसान किसान-खेत मजदूर को होगा और सबसे बड़ा फायदा कुछ पूंजीपतियों को मिलेगा। मोदी सरकार का दावा कि अब किसान अपनी फसल देश में कहीं भी बेच सकता है, पूरी तरह से सफेद झूठ है। आज भी किसान अपनी फसल किसी भी प्रांत में ले जाकर बेच सकता है। परंतु वास्तविक सत्य यह है कि कृषि सेंसस 2015-16 के मुताबिक देश का 86 प्रतिशत किसान 5 एकड़ से कम भूमि का मालिक है। जमीन की औसत मल्कियत 2 एकड़ या उससे कम है। ऐसे में 86 प्रतिशत किसान अपनी उपज नजदीक की अनाज मंडी-सब्जी मंडी के अलावा कहीं और ट्रांसपोर्ट कर न ले जा सकता न बेच सकता है। मंडी प्रणाली नष्ट होते ही सीधा प्रहार स्वाभाविक तौर से किसान पर होगा। इसी तरह दस बिन्दुओं पर कांग्रेस ने कृषि बिल की विसंगतियों के बारे में विस्तार से बताया। प्रेस कॉन्फ्रेंस में जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गंगा प्रसाद तिवारी सहित अन्य वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एवं पदाधिकारी उपस्थित थे।