प्रमुख समस्याएं शहर में बेहाल होता यातायात और सडक़ों के किनारे पसरा अतिक्रमण।
साफ-सफाई का अभाव, पेयजल की समस्या से ग्रस्त है शहर।
उद्योग, व्यापार में भारी मंदी का आलम है इन दिनों पांढुर्ना में।
दुनिया भर में प्रसिद्ध संतरे की खेती पर खतरा, रकबा कम हुआ।
व्यापार से संबंधित कोई नया प्रोजेक्ट नहीं, पहले किए वादे पूरे नहीं।
साफ-सफाई का अभाव, पेयजल की समस्या से ग्रस्त है शहर।
उद्योग, व्यापार में भारी मंदी का आलम है इन दिनों पांढुर्ना में।
दुनिया भर में प्रसिद्ध संतरे की खेती पर खतरा, रकबा कम हुआ।
व्यापार से संबंधित कोई नया प्रोजेक्ट नहीं, पहले किए वादे पूरे नहीं।
राजनीति में अब त्रिकोणीय संघर्ष किसी समय यह क्षेत्र जिले की राजनीति का केंद्र बिंदु रहा। नागपुर से सटा होने के कारण राजनीतिक गतिविधियों के लिए जिले का मुख्य स्थल पांढुर्ना ही रहा है। बावजूद इसके आजादी के बाद यहां का विकास जिस तरह होना चाहिए था वह नहीं हुआ। यहां पर कांग्रेस और भाजपा चुनाव में हमेशा ही आमने सामने रही हैं, लेकिन कुछ समय से गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने संघर्ष को त्रिकोणीय बना दिया है। कांग्रेस अपनी लड़ाई आदिवासियों के दम पर अधिक लड़ती आई है, लेकिन गोंगपा के आने से अब शहर और बहुत बड़े वर्ग से जुड़ा कुनबी समाज निर्णायक भूमिका में रहने लगा है। भाजपा पवार समाज को अपना अधिक हितैषी मानती है।
‘जीवन दायिनी’ सूखी शहर के अंदर से ब्राम्हनी होकर गोटमार मेला स्थल पर जाने का मार्ग है। यहां जाम नदी है, जो इन दिनों सूखा मैदान बन गई है। पानी की यहां गंभीर समस्या बन रही है। शहर को पानी पिलाने वाला जूनेवानी जलाशय इस बार कम बारिश के कारण सिर्फ 40 प्रतिशत भरा है। ये सबे प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता को दर्शाता है।
आमजन के मुद्दे महिलाओं के बीच प्रमुख मूद्दा पानी है। महंगाई घर काबजट बिगाड़ रही है। युवा रोजगार और स्थानीय संसाधनों के लिए भटक रहे हैं। क्षेत्र उपजाउ है लेकिन कृषि से जुड़े व्यापार विकसित नहीं हो पा रहे हैं। नौकरी और शिक्षा के लिए महाराष्ट्र की आेर ज्यादातर परिवारों को ताकना पड़ रहा है।
नेता भूले अपना वादा 2008 के चुनाव में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने 55 करोड़ रुपए की लागत से पेयजल संकट खत्म करने जलाशय बनाने की घोषणा की थी जिसके बाद जनता ने रामराव कवड़ेती को सर्वाधिक वोटों से जीताया था। इसके बाद हुए नगर पालिका चुनाव में भी भाजपा की प्रत्याशी मीनाक्षी खुरसंगे को जनता ने जिताया, लेकिन मुख्यमंत्री की घोषणा धरी की धरी ही रही। 2013 में जनता ने अपना रुख साफ किया और भाजपा को हरवा दिया। पिछले साल हुए नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा का प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहा।