हालात यह है कि विभाग के पास सीपेप (सी-पीएपी) व्यवस्था में उपलब्ध नहीं है। जानकारी के अनुसार ऐसी ही स्थिति पीआइसीयू (पीकू) विभाग की भी है, लेकिन जिम्मेदार आवश्यक प्रशिक्षण उपलब्ध नहीं होने का कारण बता कर पल्ला झाड़ लेते है। पीडि़त मोहम्मद अहमद ने बताया कि छिंदवाड़ा में एक निजी हॉस्पिटल में वेंटीलेटर की सुविधा है, जहां के डॉक्टर जिला अस्पताल में भी सेवाएं देते है।
संभवता उन्हें लाभ देने के कारण उक्त सेवाएं शासकीय हॉस्पिटल में शुरू नहीं की जा रही है। बता दें कि मरीज को जब सांस लेने में दिक्कत होती है, तब उसे वेंटीलेटर पर रखा जाता है। यह स्थिति काफी गंभीर व नाजुक मानी जाती है तथा थोड़ी भी लापरवाही मरीज की जान ले सकती है।धूल खा रही मशीन – जिले में शिशु मृत्यु दर पर नियंत्रण लाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से एसएनसीयू में वेंटीलेटर मशीन उपलब्ध कराई गई, लेकिन अब तक मशीन को विभाग में इंस्टॉल नहीं किया गया।
इस वजह से लाखों रुपए की उक्त मशीन विभाग में बिना उपयोग के धूल खा रही है। प्रशिक्षण के अभाव में बनी स्थिति – उक्त मामले में सिविल सर्जन डॉ. सुशील राठी ने बताया कि डॉक्टर या स्टाफ को वेंटीलेटर मशीन का संचालन करना नहीं आता है तथा शासन से किसी प्रकार का प्रशिक्षण भी नहीं दिलाया गया है। इस वजह से वेंटीलेटर मशीन को इंस्टॉल नहीं किया जा सका है।
डेढ़ लाख से अधिक हो गए खर्च – नगर के राममंदिर क्षेत्र के समीप निवासी पीडि़त मो. अहमद ने बताया कि कुछ दिन पहले सात महीने की प्री-मीच्योर बेबी ने जन्म लिया। डॉक्टर ने बेबी के लंग्स में समस्या बताई तथा वेंटीलेटर पर रखने की सलाह दी, लेकिन उक्त सुविधा नहीं होने से उन्हें नगर के निजी नर्सिंग होम्स में जाने के लिए दबाव बनाया गया। पीडि़त ने बताया कि उन्होंने मजबूरी में बेबी को नागपुर उपचार के लिए ले गए तथा वर्तमान में मरीज की हालत स्थिर है, लेकिन अब तक उन्हें डेढ़ लाख से अधिक का खर्च आ गया है। आर्थिक स्थिति उचित नहीं होने से मित्र तथा रिश्तेदारों से मदद ली है।
इस वजह से रखा जाता है वेंटीलेटर पर – 1. फेंफड़ों में ऑक्सीजन भेजती है। 2. शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड निकालती है। 3. मरीज को सांस लेने में दिक्कत होने पर।
4. ऑक्सीजन का सर्कुलेशन पूरी तरह से नहीं हो पाने पर। 5. हेड इंजरी, एक्सीडेंट, दौरा पडऩे, अद्र्धबेहोशी आदि स्थिति शामिल है। फैक्ट फाइल – जिला अस्पताल की नवजात गहन चिकित्सा इकाई (एसएनसीयू) में वित्तीय वर्ष अप्रैल से मार्च 2018-19 में 279 शिशुओं की मौत हो गई है। मतलब हर महीने औसत 23 शिशु जन्म लेने के बाद दुनिया छोड़ रहे है। प्रबंधन भले ही इसकी वजह कुपोषण, संक्रमण, प्री-मीच्योर बताए, लेकिन हकीकत यह है कि फेंफड़ों की बीमारी से पीडि़त बच्चों को आवश्यक उपचार नहीं मिल पाता है।