कभी तीन जिलों को मिलाकर था छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र
सन् 1952 से जब से देश में संसदीय चुनाव शुरू किए गए तब से अब तक छिंदवाड़ा लोकसभा सीट प्रदेश और देश में हमेशा चर्चा का विषय बनी रही। पहले संसदीय चुनावों के समय क्षेत्रों का सीमांकन हुआ करता था। 1971 तक छिंदवाड़ा सिवनी और बैतूल जिले के साथ मिलकर संसदीय क्षेत्र बनता रहा। सबसे पहले 1952 के पहले चुनाव में संसदीय क्षेत्र बनाया गया तो छिंदवाड़ा के साथ सिवनी और बैतूल के भी कुछ क्षेत्रों को शामिल किया गया। जिले के अमरवाड़ा, छिंदवाड़ा, तामिया और परासिया क्षेत्र को शामिल किया गया।
पहले चुनाव में कुल तीन लाख 81 हजार 555 मतदाता थे, इनमें से 34 प्रतिशत यानी तीन लाख 31 हजार से कुछ ज्यादा मतदाताओं ने ही वोट डाला था। पांच साल बाद 1957 में हुए चुनाव में भैंसदेही, बैतूल, मुलताई, परासिया, पगारा, छिदंवाड़ा, सौंसर, सिवनी, बरघाट और भोमा को संसदीय क्षेत्र में शामिल किया गया। इस चुनाव में मतदाताओं की संख्या लगभग दोगुनी होकर सात लाख 65 हजार से ज्यादा की हो गई। इस बार हालांकि मतदान प्रतिशत 33.26 प्रतिशत ही रहा।
1962 के तीसरी संसदीय चुनाव में सिवनी जिले को अजजा के लिए आरक्षित कर छिंदवाड़ा से अलग कर दिया गया। छिंदवाड़ा में परासिया, दमुआ, मसोद, मुलताई, घोड़ाडोंगरी, बैतूल और भैंसदेही को शामिल किया गया। इस चुनाव में मतदान प्रतिशत बढ़ा और 38 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया। 1967 के लोकसभा चुनाव के निर्वाचन में छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र के सीमांकन में फिर छपारा, केवलारी, बरघाट, सिवनी को शामिल किया गया। इस बार बैतूल को अलग कर दिया गया।
इस चुनाव में मतदाताओं का रुझान चुनाव की तरफ फिर बढ़ा और 39.13 प्रतिशत मतदान हुआ। इस बार नागपुर के गार्गीशंकर मिश्र यहां से सांसद चुने गए। वर्ष 1971 में छिंदवाड़ा से सिवनी और बैतूल जिले को पूरी तरह अलग कर दिया। इसके बाद जिले के विधानसभा क्षेत्रों को मिलकार छिंदवाड़ा संसदीय सीट घोषित हुई।
सन् 1952 से जब से देश में संसदीय चुनाव शुरू किए गए तब से अब तक छिंदवाड़ा लोकसभा सीट प्रदेश और देश में हमेशा चर्चा का विषय बनी रही। पहले संसदीय चुनावों के समय क्षेत्रों का सीमांकन हुआ करता था। 1971 तक छिंदवाड़ा सिवनी और बैतूल जिले के साथ मिलकर संसदीय क्षेत्र बनता रहा। सबसे पहले 1952 के पहले चुनाव में संसदीय क्षेत्र बनाया गया तो छिंदवाड़ा के साथ सिवनी और बैतूल के भी कुछ क्षेत्रों को शामिल किया गया। जिले के अमरवाड़ा, छिंदवाड़ा, तामिया और परासिया क्षेत्र को शामिल किया गया।
पहले चुनाव में कुल तीन लाख 81 हजार 555 मतदाता थे, इनमें से 34 प्रतिशत यानी तीन लाख 31 हजार से कुछ ज्यादा मतदाताओं ने ही वोट डाला था। पांच साल बाद 1957 में हुए चुनाव में भैंसदेही, बैतूल, मुलताई, परासिया, पगारा, छिदंवाड़ा, सौंसर, सिवनी, बरघाट और भोमा को संसदीय क्षेत्र में शामिल किया गया। इस चुनाव में मतदाताओं की संख्या लगभग दोगुनी होकर सात लाख 65 हजार से ज्यादा की हो गई। इस बार हालांकि मतदान प्रतिशत 33.26 प्रतिशत ही रहा।
1962 के तीसरी संसदीय चुनाव में सिवनी जिले को अजजा के लिए आरक्षित कर छिंदवाड़ा से अलग कर दिया गया। छिंदवाड़ा में परासिया, दमुआ, मसोद, मुलताई, घोड़ाडोंगरी, बैतूल और भैंसदेही को शामिल किया गया। इस चुनाव में मतदान प्रतिशत बढ़ा और 38 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया। 1967 के लोकसभा चुनाव के निर्वाचन में छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र के सीमांकन में फिर छपारा, केवलारी, बरघाट, सिवनी को शामिल किया गया। इस बार बैतूल को अलग कर दिया गया।
इस चुनाव में मतदाताओं का रुझान चुनाव की तरफ फिर बढ़ा और 39.13 प्रतिशत मतदान हुआ। इस बार नागपुर के गार्गीशंकर मिश्र यहां से सांसद चुने गए। वर्ष 1971 में छिंदवाड़ा से सिवनी और बैतूल जिले को पूरी तरह अलग कर दिया। इसके बाद जिले के विधानसभा क्षेत्रों को मिलकार छिंदवाड़ा संसदीय सीट घोषित हुई।