पुत्र के लिए रखते हैं व्रत पुत्र की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लए हलषष्ठी का व्रत माताएं करतीं हैं। व्रतधारी महिलाएं सुबह उठकर महुआ की दातुन करती हैं। पेड़ों के फ ल, बिना बोए अनाज, भैंस का दूध व दही का सेवन किया जाता है। निर्जला व्रत रखने के उपरांत शाम को पसाई के चावल व उबले महुए का सेवन कर परायण किया जाता है। इस व्रत में हल से जोता-बोया अन्न या कोई फल नहीं खाया जाता। हलछठ में झरबेरी कांस, कुश और पलास तीनों की एक-एक डालियां एक साथ बंधी होती हैं। जमीन को लीपकर वहां पर चौक बनाया जाता है। उसके बाद हलछठ को वहीं पर लगा देते हैं।
भगवान बलभद्र का मनेगा जन्मोत्सव हलछठ के दिन भगवान बलभद्र का जन्मदिन भी माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी के दिन माता रोहिणी के गर्भ से बलराम का जन्म हुआ था। श्री बलभद्र को श्री कृष्ण के बड़े भाई के रूप में जाना जाता है ये शेषनाग के अवतार हैं एवं ये त्रेता युग मे लक्ष्मण के रूप में प्रगट हुए थे। नागों का खेत के साथ विशेष एवं गहरा सम्बंध है। कहा जाता है कि जन्म के समय उनके हाथ में हल था और उस दिन षष्ठी तिथि थी इस कारण से इस पर्व का नाम हलधरषष्ठी या हलषष्ठी रखा गया। शहर में वर्धमान सिटी में इस मौके पर विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा।